




Google ने कैंसर अनुसंधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। Yale विश्वविद्यालय के साथ मिलकर विकसित किया गया नया AI मॉडल Cell2Sentence‑Scale 27B (C2S‑Scale 27B), कैंसर की दवा खोजने के प्रयासों में एक नया मार्ग प्रदान कर सकता है। यह मॉडल 27 अरब पैरामीटर पर आधारित है और इसे Gemma मॉडल फैमिली के तहत प्रशिक्षित किया गया है।
इस मॉडल की सबसे खास बात यह है कि इसने कैंसर कोशिकाओं के व्यवहार को लेकर एक नई हाइपोथेसिस विकसित की, जिसे बाद में प्रयोगशाला में परीक्षण कर सही पाया गया। यह केवल डेटा विश्लेषण नहीं था, बल्कि विज्ञान में नए विचारों की उत्पत्ति का उदाहरण है।
यह AI मॉडल कोशिकाओं की भाषा को “समझने” और विश्लेषण करने के लिए तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य यह है कि वह किसी एकल कोशिका से यह “पूछ” सके कि वह क्या कर रही है, वह किस जैविक वातावरण में है, और किसी दवा पर कैसे प्रतिक्रिया देगी।
मॉडल ने एक चुनौती के रूप में यह समझने की कोशिश की कि क्या कोई दवा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को “सशर्त रूप से” बढ़ा सकती है — यानी, केवल तब ही जब वह कोशिका पहले से प्रतिरक्षा संकेतों के लिए तैयार हो। यह अवधारणा दवा विज्ञान में बेहद उन्नत और बारीक मानी जाती है।
इस AI मॉडल ने 4,000 से अधिक दवाओं का वर्चुअल विश्लेषण किया, यह पता लगाने के लिए कि कौन सी दवा प्रतिरक्षा प्रणाली को संदर्भ-आधारित तरीके से सक्रिय कर सकती है। इस स्क्रीनिंग के परिणामस्वरूप कुछ दवाएं ऐसी सामने आईं, जिन्हें पहले कभी इस संदर्भ में नहीं देखा गया था।
मॉडल की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि उसने एक विशेष दवा — Silmitasertib — को चिन्हित किया, जो एक प्रोटीन काइनेज़ अवरोधक है। मॉडल ने अनुमान लगाया कि यदि इस दवा को कम मात्रा के इंटरफेरॉन (एक इम्यून-सिग्नलिंग अणु) के साथ मिलाया जाए, तो यह कैंसर कोशिकाओं की पहचान में प्रतिरक्षा प्रणाली की मदद कर सकती है।
यह भविष्यवाणी प्रयोगशाला में सत्यापित हुई। परिणाम दिखाते हैं कि Silmitasertib और इंटरफेरॉन का संयोजन, कोशिकाओं के “एंटीजन प्रेजेंटेशन” (antigen presentation) को लगभग 50% तक बढ़ा सकता है — जिससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर कोशिकाओं को बेहतर ढंग से पहचान और नष्ट कर सकती है।
इस खोज के कई गहरे वैज्ञानिक और चिकित्सकीय मायने हैं:
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नवीन दृष्टिकोण: मॉडल ने एक ऐसा विचार प्रस्तुत किया जो पूरी तरह नया था और विज्ञान में अब तक नहीं देखा गया था। यह दिखाता है कि बड़े AI मॉडल न केवल गणना कर सकते हैं, बल्कि वैचारिक स्तर पर भी योगदान कर सकते हैं।
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प्रयोगशाला पुष्टि: जो हाइपोथेसिस मॉडल ने दी थी, उसे प्रयोगशाला में मानवीय कोशिकाओं पर परीक्षण के बाद सत्य पाया गया — यह दर्शाता है कि AI से उत्पन्न विचार व्यावहारिक भी हो सकते हैं।
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“कोल्ड” ट्यूमर्स को “हॉट” बनाना: कई कैंसर ट्यूमर “कोल्ड” होते हैं यानी प्रतिरक्षा प्रणाली उन्हें पहचान नहीं पाती। यह मॉडल ट्यूमर्स को “हॉट” बनाने में मदद कर सकता है, जिससे इम्यूनोथेरेपी अधिक प्रभावी हो सकती है।
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खुला सहयोग: इस मॉडल और इसके शोध को वैज्ञानिक समुदाय के लिए खुला कर दिया गया है, जिससे दुनिया भर के शोधकर्ता इसका उपयोग और विस्तार कर सकते हैं।
हालांकि यह सफलता उत्साहजनक है, लेकिन आगे कई चरण हैं जिन्हें पार करना होगा:
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क्लीनिकल परीक्षण: फिलहाल यह खोज कोशिका स्तर पर सफल रही है, लेकिन मनुष्यों पर इसका परीक्षण आवश्यक है ताकि यह जाना जा सके कि यह इलाज के रूप में कितना कारगर है।
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सुरक्षा और नैतिकता: किसी भी नई दवा संयोजन को सुरक्षा, नैतिकता और सरकारी मंजूरी से गुजरना होगा।
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अन्य कैंसर प्रकारों पर प्रभाव: यह अध्ययन विशेष कोशिकाओं और एक कैंसर प्रकार तक सीमित था। इसके प्रभाव को अन्य प्रकारों पर भी जांचा जाना होगा।
Google और Yale द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया C2S‑Scale 27B मॉडल, केवल तकनीकी प्रगति नहीं है, बल्कि यह विज्ञान और चिकित्सा में क्रांतिकारी सोच का प्रतीक बन सकता है। इसने यह सिद्ध कर दिया है कि अब AI केवल टूल नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भागीदार की भूमिका निभाने के लिए तैयार है।