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    भारत-रूस के मजबूत रिश्तों पर फिर लगी मुहर, तेल खरीद को लेकर ट्रंप के दावे पर रूस का जवाब—‘नई दिल्ली अपने हितों के अनुसार करती है निर्णय’

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    भारत और रूस के बीच दशकों से चले आ रहे मजबूत संबंधों पर एक बार फिर रूस की ओर से विश्वास जताया गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में तेल खरीद को लेकर किए गए दावों के बीच, भारत के करीबी सहयोगी रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने साफ शब्दों में कहा है कि नई दिल्ली और मॉस्को के बीच ऊर्जा सहयोग पूरी तरह से भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि रूस, भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने में एक भरोसेमंद भागीदार बना रहेगा।

    डेनिस अलीपोव ने गुरुवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि भारत और रूस के संबंध केवल तेल व्यापार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक रणनीतिक साझेदारी है जो रक्षा, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और कृषि जैसे कई क्षेत्रों में फैली हुई है। उन्होंने कहा —

    “भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है और वह अपने हितों के अनुरूप फैसले लेता है। रूस का ऊर्जा सहयोग भारत की अर्थव्यवस्था और उसके दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों के लिए आवश्यक है। हमारा मकसद किसी तीसरे देश के दबाव में नहीं बल्कि परस्पर लाभ के लिए काम करना है।”

    यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत की आलोचना करते हुए कहा था कि “भारत रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है, जिससे रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है।” ट्रंप ने अपने बयान में यह भी इशारा किया था कि इससे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।

    हालांकि, रूस की ओर से यह साफ कर दिया गया है कि भारत की तेल खरीद किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं करती है। अलीपोव ने कहा कि भारत और रूस दोनों ने हमेशा न्यायसंगत व्यापार नियमों और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन किया है। उन्होंने आगे कहा —

    “भारत रूस से कच्चा तेल रियायती दरों पर खरीदता है, और यही उसकी ऊर्जा नीति का हिस्सा है। यह सहयोग पारदर्शी, कानूनी और पारस्परिक हितों पर आधारित है।”

    रूस के राजदूत ने यह भी बताया कि दोनों देशों के बीच व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। पिछले वित्तीय वर्ष में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार $65 बिलियन के आंकड़े को पार कर गया, जिसमें से अधिकांश हिस्सा ऊर्जा और उर्वरक क्षेत्र से संबंधित था। भारत द्वारा रूस से खरीदे जाने वाले कच्चे तेल की मात्रा ने न केवल घरेलू ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया है, बल्कि इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर भी नियंत्रण रखने में मदद मिली है।

    डेनिस अलीपोव ने कहा कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस ने एशियाई देशों, खासकर भारत के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को और मजबूत किया है। उन्होंने यह भी बताया कि रूस अब भारत के लिए शीर्ष पांच व्यापारिक साझेदारों में शामिल हो चुका है।

    उन्होंने कहा कि ऊर्जा सहयोग के अलावा रक्षा क्षेत्र में भी भारत और रूस की साझेदारी लगातार गहराती जा रही है। “एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी, ब्रह्मोस मिसाइल प्रोजेक्ट, और रक्षा उपकरणों के संयुक्त उत्पादन” जैसे कई क्षेत्रों में दोनों देशों की साझेदारी भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता (Atmanirbharta) को मजबूत कर रही है।

    अलीपोव ने यह भी कहा कि रूस और भारत के बीच बढ़ता सहयोग किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा —

    “हम किसी भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा नहीं हैं। हमारा लक्ष्य वैश्विक स्थिरता और समान विकास को बढ़ावा देना है। भारत और रूस दोनों बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थन करते हैं, जहां हर देश को अपने हितों के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता हो।”

    भारत ने भी कई मौकों पर साफ किया है कि वह अपनी विदेश नीति में “भारत पहले” (India First) के सिद्धांत का पालन करता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी भी स्रोत से खरीद करेगा, यदि वह “राष्ट्रीय हित” के अनुरूप है।

    इस बीच, विशेषज्ञों का कहना है कि रूस के साथ भारत की साझेदारी आने वाले वर्षों में और मजबूत होगी। खासकर जब रूस ने भारत को सुदूर पूर्व (Far East) में निवेश के नए अवसर प्रदान किए हैं, तो यह दोनों देशों के लिए आर्थिक सहयोग का नया अध्याय साबित हो सकता है।

    इसके साथ ही, भारत और रूस के बीच रुपया-रूबल भुगतान प्रणाली को लेकर भी बातचीत जारी है, जिससे दोनों देशों को डॉलर पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।

    कुल मिलाकर, ट्रंप के बयान से उपजे विवाद के बीच रूस का यह स्पष्ट रुख भारत के लिए एक राजनयिक राहत के रूप में देखा जा रहा है। अलीपोव के बयान ने यह साफ कर दिया है कि भारत और रूस के संबंध केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि विश्वसनीय रणनीतिक साझेदारी हैं, जो समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं।

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