




कर्नाटक कैबिनेट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसके तहत राज्य के सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक स्थलों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम बनाए जाएंगे। यह निर्णय मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के निर्देश पर लिया गया, जिन्होंने तमिलनाडु सरकार द्वारा RSS गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंधों का अध्ययन करने को कहा था।
कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच. के. पाटिल ने बताया कि कैबिनेट ने एक आदेश जारी करने का निर्णय लिया है, जिससे सरकारी संपत्तियों जैसे कि स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालय और सार्वजनिक स्थानों पर बिना अनुमति RSS या किसी अन्य संगठन द्वारा कार्यक्रम आयोजित करने पर रोक लगेगी। इस कदम का मकसद सरकारी संपत्तियों के अतिक्रमण को रोकना और सुनिश्चित करना है कि इन स्थानों का उपयोग केवल वैध गतिविधियों के लिए किया जाए।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने निर्देश दिया था कि तमिलनाडु सरकार के RSS प्रतिबंध नियमों का अध्ययन किया जाए। तमिलनाडु में सरकारी और सार्वजनिक परिसरों में बिना अनुमति राजनीतिक या वैचारिक गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं। कर्नाटक सरकार भी इसी तर्ज पर कदम उठाने की तैयारी में है ताकि राज्य में समान रूप से सार्वजनिक संपत्तियों का संरक्षण हो सके।
प्रस्तावित नियमों के अनुसार:
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सरकारी संपत्तियों और सार्वजनिक स्थलों पर कोई भी संगठन या व्यक्ति कार्यक्रम आयोजित करने से पहले प्रशासन से अनुमति लेगा।
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अनुमति न लेने पर संबंधित संगठन या व्यक्ति के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
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जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को अनुमति देने और निगरानी करने का अधिकार होगा।
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उल्लंघन करने पर दो वर्ष की जेल और जुर्माना तथा पुनरावृत्ति पर अधिक कठोर दंड का प्रावधान होगा।
इस निर्णय को लेकर राजनीतिक दलों में विभिन्न प्रतिक्रिया देखने को मिली है। कर्नाटक में विपक्षी भाजपा और RSS समर्थक संगठनों ने इसे धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाला कदम बताया है। वहीं, कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह कदम सरकारी परिसरों को अतिक्रमण और अवैध गतिविधियों से बचाने के लिए आवश्यक है।
आईटी मंत्री प्रियंक खड़गे ने कहा कि यह कदम राज्य के सामाजिक और राजनैतिक माहौल को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए उठाया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि RSS की कई शाखाएँ और कार्यक्रम बिना अनुमति के सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में चल रहे थे, जो अनुचित है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा,
“सरकारी और सार्वजनिक स्थान किसी भी संगठन द्वारा बिना अनुमति कब्जा नहीं किए जा सकते। किसी को भी लोगों को परेशान करने या विवादित गतिविधियां करने का अधिकार नहीं है। हम सभी को शांति और कानून का पालन करना चाहिए।”
हालांकि इस निर्णय का स्वागत कुछ वर्गों ने किया है, लेकिन इसकी संवैधानिक वैधता और लागू करने में आने वाली चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। संभव है कि इस फैसले को लेकर अदालतों में याचिका दायर की जाए, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों पर सवाल उठाए जा सकते हैं।
इसके अलावा, इस आदेश के सफल क्रियान्वयन के लिए प्रशासनिक तत्परता और उचित निगरानी प्रणाली की जरूरत होगी, जिससे गैरकानूनी गतिविधियों पर प्रभावी रोक लगाई जा सके।
कर्नाटक सरकार का यह कदम राज्य में सार्वजनिक और सरकारी संपत्तियों को अतिक्रमण और अवैध राजनीतिक या वैचारिक गतिविधियों से मुक्त रखने का प्रयास है। यह निर्णय तमिलनाडु के समान मॉडल को अपनाते हुए राज्य में शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में एक अहम पहल माना जा रहा है।