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    यमन में मौत की सज़ा पाए भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फाँसी पर रोक, सुप्रीम कोर्ट को बताया गया: “कोई प्रतिकूल स्थिति नहीं”

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    सुप्रीम कोर्ट को गुरुवार को सूचित किया गया कि यमन में मौत की सज़ा का सामना कर रहीं भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फाँसी पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। केंद्र सरकार की ओर से पेश महान्यायवादी (Attorney General) आर. वेंकटरमणि ने अदालत को बताया कि इस मामले में अब एक नया मध्यस्थ शामिल हुआ है और “कोई प्रतिकूल परिस्थिति नहीं उत्पन्न हुई है।”

    सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई उस याचिका के संदर्भ में थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने सरकार से मांग की थी कि वह निमिषा प्रिया की जान बचाने के लिए प्रभावी कूटनीतिक हस्तक्षेप करे।

    निमिषा प्रिया, भारत के केरल राज्य की निवासी एक प्रशिक्षित नर्स हैं, जो नौकरी के सिलसिले में यमन गई थीं। वर्ष 2017 में उन पर एक यमनी नागरिक और उनके व्यावसायिक साझेदार की हत्या का आरोप लगा। अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए मौत की सज़ा (Death Sentence) सुनाई।

    माना जाता है कि निमिषा ने आत्मरक्षा में यह कदम उठाया था, लेकिन यमन की शरीयत कानून प्रणाली के तहत, उन्हें हत्या का दोषी माना गया और उनकी अपीलें 2023 में खारिज कर दी गईं।

    सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने जब यह जानना चाहा कि यमन में निमिषा प्रिया की स्थिति क्या है, तो केंद्र सरकार की ओर से वेंकटरमणि ने बताया:

    “फाँसी पर रोक लगी हुई है। अब तक कोई प्रतिकूल घटना नहीं हुई है। एक नया मध्यस्थ इस मामले में सक्रिय है और प्रयास जारी हैं।”

    अदालत ने यह भी पूछा कि क्या सरकार इस विषय में यमन सरकार से सीधे संवाद कर रही है, जिस पर महान्यायवादी ने कहा कि यमन के अभियोजक कार्यालय से संपर्क किया गया है और राजनयिक प्रयास जारी हैं।

    यमन में शरीयत आधारित कानून व्यवस्था है, जहाँ हत्या जैसे अपराधों में ‘क़िसास’ (Qisas) और ‘दियाह’ (Diyya) की व्यवस्था होती है। इसका मतलब है कि यदि मृतक के परिवार को मुआवज़ा (Blood Money) देकर क्षमा प्राप्त हो जाए, तो आरोपी की फाँसी रोकी जा सकती है।

    निमिषा प्रिया की माँ और सामाजिक संगठनों ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह इस दिशा में प्रयास करे ताकि दियाह राशि देकर समझौता किया जा सके।

    सरकार ने अदालत को बताया कि इस मामले में एक नया मध्यस्थ, जो यमन के स्थानीय समुदाय से है, वार्ता प्रक्रिया में शामिल हुआ है। इस मध्यस्थ के ज़रिए मृतक के परिवार से संवाद करने की कोशिशें की जा रही हैं।

    महान्यायवादी ने कहा कि इस प्रकार के मामलों में सरकारी स्तर पर हस्तक्षेप सीमित होता है, लेकिन भारत सरकार ने सभी संभावित चैनलों से प्रयास शुरू कर दिए हैं।

    निमिषा की माँ और परिवार की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि:

    • भारत सरकार मृत्युदंड को टालने के लिए दियाह भुगतान की अनुमति दे।

    • सुप्रीम कोर्ट केंद्र को कूटनीतिक हस्तक्षेप के लिए निर्देशित करे।

    • यमन में फाँसी की प्रक्रिया से पहले परिवार को अंतिम संवाद का अवसर दिया जाए।

    इस मामले को लेकर देशभर में सहानुभूति और समर्थन की लहर है। केरल में कई सामाजिक संगठन, महिला संगठन और मानवाधिकार कार्यकर्ता निमिषा के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं।

    उनका कहना है कि:

    “निमिषा ने गलती की हो सकती है, लेकिन उसे न्यायिक प्रक्रिया और क्षमा का अवसर मिलना चाहिए।”

    भारत का विदेश मंत्रालय यमन में भारतीय मिशन के ज़रिए इस केस पर नज़र बनाए हुए है। हालाँकि, यमन की राजनीतिक अस्थिरता और गृह युद्ध जैसे हालात के चलते बातचीत की प्रक्रिया बेहद जटिल है।

    भारत सरकार ने यमन सरकार से राजनयिक नोट (Diplomatic Note) भेजकर यह अपील की थी कि निमिषा की फाँसी पर रोक लगाई जाए और क़ानूनी व मानवीय आधार पर फिर से समीक्षा की जाए।

    सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में तय की है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि यदि तब तक कोई नई परिस्थिति उत्पन्न होती है, तो मामला शीघ्र सुनवाई (urgent hearing) के लिए फिर से सूचीबद्ध किया जाए।

    निमिषा प्रिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट को दी गई जानकारी एक अस्थायी राहत ज़रूर है, लेकिन यह फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि यमन की न्यायिक और सामाजिक प्रणाली में कितनी सहमति बन पाती है

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