




ब्रिटिश सरकार ने भारत की एक प्रमुख रिफाइनरी — गुजरात स्थित नायरा एनर्जी लिमिटेड की वडीनार रिफाइनरी — पर औपचारिक रूप से आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। यह निर्णय ऐसे समय पर आया है जब भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) हाल ही में संपन्न हुआ था। इस कदम को यूके द्वारा रूस पर लगातार बनाए जा रहे आर्थिक दबाव का हिस्सा माना जा रहा है, क्योंकि नायरा एनर्जी में रूस की प्रमुख कंपनियों – Rosneft और Lukoil – की 49.13% हिस्सेदारी है।
नायरा एनर्जी एक प्राइवेट जॉइंट वेंचर कंपनी है, जिसमें रूस की Rosneft और Lukoil की मिलकर बड़ी हिस्सेदारी है। वडीनार में स्थित यह रिफाइनरी भारत की सबसे बड़ी निजी रिफाइनरियों में से एक है और रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है।
ब्रिटिश सरकार ने यह प्रतिबंध ऐसे समय में लगाया है जब वह रूस की तेल आपूर्ति श्रृंखलाओं और वैश्विक सहयोगियों को आर्थिक रूप से निशाना बना रही है, जिससे यूक्रेन युद्ध के लिए रूस की आर्थिक क्षमता को कमजोर किया जा सके।
ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा:
“नायरा एनर्जी रूसी रणनीतिक तेल व्यापार से जुड़ी हुई है, और इसके ज़रिए रूस को वित्तीय सहायता मिल सकती है। ऐसे में इसे प्रतिबंधित करना हमारी वैश्विक सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है।”
इस फैसले से भारत की ऊर्जा नीति पर भी असर पड़ सकता है। भारत सरकार अब ऐसी स्थिति में आ गई है जहां उसे अपनी ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक साझेदारी के बीच संतुलन साधना होगा। भारत ने रूस से रियायती दरों पर तेल खरीद को पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ाया है, और नायरा जैसी कंपनियाँ इसमें एक अहम कड़ी हैं।
भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा:
“यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। नायरा भारत में पंजीकृत कंपनी है और भारतीय क़ानूनों के तहत संचालित होती है। इसमें विदेशी हिस्सेदारी का मतलब यह नहीं कि वह विदेशी एजेंडा चला रही है।”
यह प्रतिबंध तब आया है जब भारत और ब्रिटेन के बीच संबंधों में गर्मजोशी देखी जा रही थी। कुछ ही दिन पहले:
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ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर एक व्यापार प्रतिनिधिमंडल के साथ मुंबई आए थे।
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24 जुलाई को दोनों देशों के बीच FTA पर हस्ताक्षर हुए।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंदन का दौरा किया था।
इन घटनाओं के आलोक में यूके द्वारा नायरा पर लगाए गए प्रतिबंधों को “कूटनीतिक असंगति” माना जा रहा है। यह सवाल खड़ा होता है कि क्या ब्रिटेन एक ओर व्यापार संबंधों को गहराने की बात करता है और दूसरी ओर ऐसे निर्णय लेता है जो भारत की ऊर्जा व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं?
इस प्रतिबंध का प्रभाव केवल कूटनीतिक नहीं, व्यावहारिक स्तर पर भी गंभीर हो सकता है:
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विदेशी भुगतान प्रणालियों तक पहुँच बाधित हो सकती है
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कच्चे तेल की खरीद-फरोख्त में दिक्कतें आ सकती हैं
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बीमा और जहाजरानी सेवाओं में रुकावटें उत्पन्न हो सकती हैं
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कंपनी की आयात-निर्यात क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है
कई विश्लेषकों का मानना है कि इससे रिफाइनरी की उत्पादन क्षमता घट सकती है और यह देश की ऊर्जा आपूर्ति पर प्रतिकूल असर डाल सकता है।
नायरा एनर्जी ने इस प्रतिबंध को “एकतरफा और भ्रामक” करार देते हुए कहा है कि:
“हम पूरी तरह से भारतीय क़ानूनों और नियामकों के अंतर्गत कार्य करते हैं। इस तरह का फैसला कंपनी की प्रतिष्ठा और परिचालन को नुकसान पहुंचा सकता है। हम कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।”
भारत अब इस मामले को राजनयिक स्तर पर सुलझाने का प्रयास कर सकता है। संभावित रणनीति:
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ब्रिटेन से औपचारिक बातचीत और स्थिति स्पष्ट करना
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FTA में विवाद निवारण प्रक्रिया को सक्रिय करना
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अन्य ऊर्जा स्रोतों की तलाश और विविधीकरण
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राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत ऊर्जा कंपनियों को संरक्षण
इस घटना ने भारत को यह संकेत दिया है कि अंतरराष्ट्रीय निवेश में भू-राजनीतिक जोखिम कितने गहरे हो सकते हैं।
ब्रिटेन द्वारा गुजरात की नायरा रिफाइनरी पर प्रतिबंध लगाना न सिर्फ एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक घटनाक्रम है, बल्कि यह भारत की ऊर्जा नीति और व्यापार संबंधों के लिए भी एक बड़ा संकेत है।