




पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरिफ ने बृहस्पतिवार को एक अहम बयान देते हुए कहा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन यह संवाद केवल “वैध और आपसी सम्मान” की शर्तों पर ही किया जाएगा।
यह बयान तब आया है जब हाल ही में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर भारी झड़पें हुई थीं, जिनमें दर्जनों नागरिक और सुरक्षाकर्मी घायल हुए। दोनों देशों के बीच 48 घंटे का संघर्षविराम लागू किया गया था, जिसे अफगानिस्तान की अपील पर पाकिस्तान ने स्वीकार किया।
हालिया सीमा संघर्षों ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और जटिल बना दिया है। पाकिस्तान ने अफगान सरकार पर आतंकवादी समूहों को पनाह देने का आरोप लगाया, जबकि अफगानिस्तान ने पाकिस्तान की ओर से किए गए ड्रोन हमलों को ‘आक्रामक कार्रवाई’ करार दिया।
संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) की रिपोर्ट के अनुसार, सीमा संघर्ष के दौरान कम से कम 18 नागरिकों की मौत हुई और 360 से अधिक लोग घायल हुए हैं। पाकिस्तान की सेना ने यह भी बताया कि कुछ आतंकवादी समूह अफगान सीमा के पास सक्रिय हैं, जिनके खिलाफ कार्रवाई की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री शहबाज़ शरिफ ने इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाते हुए कहा:
“हम शांति चाहते हैं, लेकिन हमारी संप्रभुता और सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा। हम अफगानिस्तान से वार्ता के लिए तैयार हैं, बशर्ते बातचीत वैध, पारस्परिक सम्मान और ईमानदारी पर आधारित हो।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब “गेंद काबुल के पाले में है” और अब यह अफगान नेतृत्व पर निर्भर है कि वह संघर्ष की बजाय शांति का रास्ता अपनाता है या नहीं।
पाकिस्तान सरकार ने जिन बिंदुओं को वार्ता की पूर्व शर्त बताया है, वे इस प्रकार हैं:
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अफगान भूमि का उपयोग पाकिस्तान विरोधी आतंकवाद के लिए न हो।
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तालिबान शासन आतंकी संगठनों को समर्थन देना बंद करे।
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सीमा सुरक्षा और नियंत्रण पर सहयोग की नीति अपनाई जाए।
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संवाद में पारदर्शिता और आपसी सम्मान सुनिश्चित किया जाए।
प्रधानमंत्री शरिफ ने कहा कि पाकिस्तान की ओर से अफगानिस्तान को कई बार सकारात्मक संकेत भेजे गए हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला।
पाकिस्तान ने अफगान सरकार की मांग पर 48 घंटे का संघर्षविराम घोषित किया था, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में शांति बहाल करना था। अधिकारियों का कहना है कि यह निर्णय अस्थायी है और आगे की स्थिति काबुल के रुख पर निर्भर करेगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान का यह कदम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देने का प्रयास है कि वह संघर्ष से बचना चाहता है और कूटनीति के जरिए मसले सुलझाना चाहता है।
अब तक तालिबान सरकार की ओर से इस बयान पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि, अफगान विदेश मंत्रालय ने हाल में कहा था कि वे सभी पड़ोसी देशों से सम्मानजनक और सहयोगी रिश्ते बनाना चाहते हैं। तालिबान ने अपने क्षेत्र में आतंकियों की मौजूदगी से इनकार किया है।
लेकिन पाकिस्तान बार-बार कह चुका है कि अफगानिस्तान की जमीन का उपयोग “टीटीपी (Tehrik-i-Taliban Pakistan)” जैसे समूहों द्वारा हो रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस समय पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों को ही आंतरिक और बाहरी दबावों का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है और अफगानिस्तान में भी तालिबान शासन अंतरराष्ट्रीय मान्यता से वंचित है।
ऐसे में अगर दोनों देश संवाद की दिशा में बढ़ते हैं तो यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सकारात्मक कदम होगा। लेकिन अगर शर्तों को लेकर कोई सहमति नहीं बनती, तो सीमा संघर्ष और कट्टरपंथी हमलों में और बढ़ोतरी हो सकती है।
प्रधानमंत्री शहबाज़ शरिफ का यह बयान स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान अब रणनीतिक और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर संतुलन बनाए रखना चाहता है। शांति वार्ता का यह प्रस्ताव अफगानिस्तान के लिए एक अवसर है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब तालिबान सरकार पाकिस्तान की चिंताओं को गंभीरता से लेगी और आतंकवाद पर ठोस कदम उठाएगी।