




कर्नाटक के पश्चिमी घाट क्षेत्र में प्रस्तावित हुब्बली-अंकोला रेलवे लाइन परियोजना को लेकर राज्य वन्यजीव बोर्ड ने तगड़ा झटका दिया है। बोर्ड की सदस्य वैशाली कुलकर्णी ने बताया कि यह परियोजना पर्यावरण और वन्यजीवों के संरक्षण के लिहाज से चिंताजनक है और उसे मंजूरी देना मुश्किल होगा। यह बयान केंद्र सरकार और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के हाल के आश्वासनों के बिल्कुल विपरीत है, जिन्होंने परियोजना के लिए आवश्यक सभी मंजूरियां मिलने का भरोसा जताया था।
हुब्बली से अंकोला तक लगभग 168 किलोमीटर लंबी यह रेलवे लाइन, जो दशकों से लंबित है, अब पर्यावरणीय बाधाओं के चलते एक बार फिर अटकी हुई है। राज्य वन्यजीव बोर्ड के रुख ने परियोजना के सामने नए प्रशासनिक और कानूनी सवाल खड़े कर दिए हैं।
हुब्बली-अंकोला रेलवे लाइन मुख्य रूप से माल ढुलाई के लिए प्रस्तावित है, जिससे कर्नाटक और आसपास के इलाकों में औद्योगिक व आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। साथ ही, यह परियोजना रेल नेटवर्क को मजबूत करते हुए माल परिवहन के लिए अधिक कुशल मार्ग उपलब्ध कराएगी।
लेकिन, रेलवे लाइन के मार्ग में पश्चिमी घाट के संवेदनशील जंगल क्षेत्र आते हैं, जहां कई बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित वन्यजीव पाए जाते हैं। हाथी, तेंदुआ, और कई अन्य जीव-जंतु इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं।
वन्यजीव बोर्ड का कहना है कि रेलवे लाइन के निर्माण और संचालन से इन आवासों और प्रवास मार्गों को गंभीर खतरा होगा। इससे क्षेत्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
वन्यजीव बोर्ड की सदस्य वैशाली कुलकर्णी ने स्पष्ट किया कि परियोजना के लिए मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का गहन अध्ययन और उचित संरक्षणात्मक उपाय जरूरी हैं। उन्होंने कहा, “पश्चिमी घाट के जंगल और वन्यजीवों का संरक्षण सर्वोपरि है। यदि परियोजना इससे बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है, तो उसे मंजूरी नहीं दी जाएगी।”
बोर्ड के इस कड़े रुख ने रेलवे और राज्य सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है, क्योंकि परियोजना की प्रगति के लिए यह मंजूरी आवश्यक है।
वहीं, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने हाल ही में आश्वासन दिया था कि परियोजना के लिए सभी आवश्यक मंजूरियां मिलने में कोई देरी नहीं होगी और डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) जल्द ही तैयार की जाएगी। उनका कहना था कि यह परियोजना क्षेत्र के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाएगी।
जोशी के आशावाद के बीच वन्यजीव बोर्ड की प्रतिक्रिया से स्पष्ट हुआ है कि परियोजना को पर्यावरणीय और कानूनी मंजूरी के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है।
इस परियोजना को लेकर पहले भी कई बार अदालतों में विवाद हुए हैं। कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण को लेकर मामलों की सुनवाई की है। वन्यजीव बोर्ड की मंजूरी न मिलने से रेलवे विभाग को अपने प्रस्ताव में पर्यावरणीय सुधार करना पड़ सकता है।
परियोजना को मंजूरी मिलने के लिए रेलवे विभाग को वन्यजीव बोर्ड और संबंधित पर्यावरण संस्थाओं के सुझावों का पालन करना होगा। मार्ग परिवर्तन, कम प्रभावी निर्माण तकनीकों का उपयोग, और पर्यावरण संरक्षण के उपाय लागू करना आवश्यक होगा।
स्थानीय समुदायों और पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ संवाद बढ़ाना भी जरूरी होगा ताकि परियोजना सभी हितधारकों के हितों का संतुलन बनाए रख सके।
हुब्बली-अंकोला रेलवे लाइन परियोजना कर्नाटक में आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन का उदाहरण है। राज्य वन्यजीव बोर्ड का कड़ा रुख इस बात का संकेत है कि पर्यावरणीय हितों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।