




भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले शुरुआती कारोबार में 21 पैसे की बढ़त के साथ 87.75 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। यह मजबूती अमेरिकी मुद्रा की कमजोरी, विदेशी निवेश में बढ़ोतरी और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण हुई है।
विदेशी मुद्रा बाजारों में अमेरिकी डॉलर की कमजोरी ने भारतीय मुद्रा को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाई। साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा मुद्रा विनिमय दर को स्थिर रखने के लिए संभावित हस्तक्षेप की भी जानकारी मिली है, जिसने रुपया को मजबूती प्रदान की।
दुनिया के प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर कमजोर हुआ है, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को लाभ मिला है। डॉलर की इस कमजोरी का असर रुपये पर भी देखने को मिला है। विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौजूदा ब्याज दर नीतियां और आर्थिक आंकड़े डॉलर की स्थिति को प्रभावित कर रहे हैं।
पिछले कुछ हफ्तों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय शेयर बाजारों में निवेश बढ़ाया है, जिससे रुपये की मांग में इजाफा हुआ है। विदेशी निवेशकों का भारत की आर्थिक संभावनाओं और सुधारों में विश्वास बढ़ने से यह प्रवृत्ति बनी हुई है। इसके परिणामस्वरूप, रुपये की विनिमय दर में मजबूती आई है।
भारत तेल का एक बड़ा आयातक देश है, इसलिए कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का भारतीय रुपये पर सीधा प्रभाव पड़ता है। हाल ही में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है, जिससे भारत के व्यापार घाटे को नियंत्रित करने में मदद मिली है। यह गिरावट रुपया मजबूत होने का एक प्रमुख कारण रही है।
वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये की विनिमय दर कई बाहरी और आंतरिक कारकों पर निर्भर करती है। वैश्विक आर्थिक स्थिरता, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियां, कच्चे तेल की कीमतें, तथा भारत में आर्थिक सुधार रुपये के मूल्य को प्रभावित करते हैं। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि निवेशकों को बाजार की संभावित उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहना चाहिए।
मजबूत रुपये का निर्यातकों पर मिश्रित प्रभाव पड़ता है। निर्यात करने वाली कंपनियों के लिए मजबूत रुपये महंगा साबित हो सकता है क्योंकि इससे उनकी वस्तुएं अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगी हो जाती हैं। वहीं, आयातक कंपनियां सस्ते रुपयों की मदद से कच्चा माल और उत्पाद सस्ते दामों पर खरीद सकती हैं, जिससे उनकी लागत कम होती है।
भारतीय रिजर्व बैंक अक्सर मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है ताकि रुपया अत्यधिक उतार-चढ़ाव से बचा रहे और आर्थिक स्थिरता बनी रहे। इस बार भी बाजार विशेषज्ञ मान रहे हैं कि RBI ने रुपया सुदृढ़ करने के लिए कदम उठाए हैं।
आने वाले महीनों में रुपये के भविष्य की स्थिति वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर निर्भर करेगी। यदि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में स्थिरता बनाता है और तेल की कीमतें नियंत्रण में रहती हैं, तो रुपये में और मजबूती देखने को मिल सकती है। हालांकि, वैश्विक अस्थिरता और व्यापार युद्ध जैसी परिस्थितियां रुपये पर दबाव डाल सकती हैं।
शुक्रवार के शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की 21 पैसे की मजबूती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है। विदेशी निवेश में बढ़ोतरी और कच्चे तेल की कीमतों में कमी ने रुपया को मजबूती प्रदान की है। हालांकि, बाजार के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए निवेशकों और व्यापारियों को सतर्क रहना होगा।