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    7 साल में पहली बार म्यूचुअल फंड्स के रिटर्न निगेटिव, निवेशकों में बढ़ी चिंता — जानिए गिरावट की असली वजह

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    भारतीय म्यूचुअल फंड बाजार के लिए यह समय कुछ मुश्किल भरा साबित हो रहा है। बीते सात सालों में पहली बार ऐसा हुआ है जब ज्यादातर इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीमों का एक साल का रोलिंग रिटर्न निगेटिव (Negative) हो गया है। यह गिरावट निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन गई है, खासकर उन लोगों के लिए जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में नियमित रूप से SIP (Systematic Investment Plan) के माध्यम से निवेश किया है।

    पिछले कुछ महीनों में शेयर बाजार में तेज उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, विदेशी निवेशकों की बिकवाली (FII Outflow), और घरेलू बाजार में प्रॉफिट बुकिंग ने इक्विटी स्कीमों के प्रदर्शन पर सीधा असर डाला है। कई म्यूचुअल फंड कैटेगरी जैसे लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप फंडों में रिटर्न में बड़ी गिरावट देखी गई है।

    वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट अस्थायी है लेकिन इसका असर निवेशकों की भावनाओं पर जरूर पड़ा है। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही पिछले एक महीने में लगभग 5 प्रतिशत तक कमजोर हुए हैं। यही वजह है कि म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो के मूल्यांकन में गिरावट दर्ज की गई है।

    एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2025 तक भारत में सक्रिय इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीमों में लगभग 7 करोड़ निवेशक जुड़े हुए हैं। इनमें से करीब 3 करोड़ से अधिक निवेशक ऐसे हैं जो मासिक एसआईपी के माध्यम से नियमित निवेश करते हैं। इन निवेशकों के लिए यह गिरावट मानसिक दबाव का कारण बनी है, क्योंकि अब तक म्यूचुअल फंड्स को सबसे स्थिर और भरोसेमंद निवेश विकल्प माना जा रहा था।

    पिछले सात वर्षों में म्यूचुअल फंड्स का औसत वार्षिक रिटर्न 10% से 14% के बीच रहा है। लेकिन 2025 में पहली बार यह दर घटकर 0% से नीचे चली गई है। रोलिंग रिटर्न (Rolling Return) का अर्थ होता है — किसी निश्चित अवधि में निवेश पर प्राप्त औसत रिटर्न। जब यह आंकड़ा लगातार घटने लगता है, तो यह बाजार की कमजोरी का संकेत देता है।

    गिरावट की मुख्य वजहें क्या हैं?

    विशेषज्ञों के मुताबिक, इसकी सबसे बड़ी वजह विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली है। डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है, जिससे विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से पैसे निकालने शुरू कर दिए हैं। दूसरी बड़ी वजह वैश्विक ब्याज दरों में बढ़ोतरी और अमेरिका-यूरोप में आर्थिक मंदी की आशंका है, जिसने उभरते बाजारों की धारणा को कमजोर किया है।

    घरेलू स्तर पर भी निवेशकों ने हाल के महीनों में प्रॉफिट बुकिंग शुरू कर दी है। बड़ी कंपनियों के तिमाही नतीजे उम्मीद से कमजोर रहे हैं और इसका असर सीधे तौर पर म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो पर पड़ा है। मिड कैप और स्मॉल कैप फंड, जो अब तक शानदार रिटर्न दे रहे थे, उनमें 10% से 20% तक की गिरावट देखी गई है।

    हालांकि, वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि म्यूचुअल फंड निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है। म्यूचुअल फंड्स लंबी अवधि के लिए बनाए जाते हैं और बाजार में गिरावट ऐसे निवेशकों के लिए एक मौका भी हो सकती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर निवेशक अपने एसआईपी को जारी रखते हैं, तो आने वाले 2 से 3 वर्षों में औसत लागत (Average Cost) कम होगी और रिटर्न बेहतर हो सकता है।

    AMFI के चेयरमैन एन. श्रीनिवासन ने कहा, “यह बाजार का स्वाभाविक चक्र है। 2018 में भी कुछ स्कीमों में निगेटिव रिटर्न देखने को मिला था, लेकिन अगले साल ही बाजार ने रिकवरी कर ली थी। इसलिए निवेशक धैर्य बनाए रखें और अपने वित्तीय लक्ष्यों के अनुसार निवेश जारी रखें।”

    बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि अगले कुछ महीनों में म्यूचुअल फंड रिटर्न में सुधार संभव है। केंद्र सरकार की ओर से बुनियादी ढांचे (Infrastructure) पर बढ़ते निवेश और घरेलू खपत में सुधार से कॉर्पोरेट आय में तेजी आने की उम्मीद है। इसका सीधा असर इक्विटी स्कीमों के रिटर्न पर पड़ेगा।

    दूसरी ओर, निवेशकों को सलाह दी जा रही है कि वे अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें और जोखिम स्तर के अनुसार विविधता (Diversification) लाएं। इक्विटी के साथ-साथ डेब्ट फंड, लिक्विड फंड और गोल्ड ईटीएफ जैसे विकल्पों में भी संतुलित निवेश करना बेहतर रहेगा।

    हाल के समय में भारतीय म्यूचुअल फंड उद्योग ने नई ऊंचाइयां हासिल की हैं। सितंबर 2025 में कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) ₹56 लाख करोड़ के स्तर पर पहुंच गया था। हालांकि, बाजार की हालिया गिरावट के चलते इस आंकड़े में हल्की कमी आई है।

    कुल मिलाकर, 7 साल में पहली बार इक्विटी म्यूचुअल फंड्स का निगेटिव रिटर्न बाजार में अस्थिरता और वैश्विक आर्थिक दबाव का नतीजा है। लेकिन लंबी अवधि के निवेशकों के लिए यह चिंता की बात नहीं, बल्कि एक अवसर है — कम कीमत पर गुणवत्तापूर्ण स्कीमों में निवेश बढ़ाने का।

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