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आने वाले दिनों में मलेशिया में आयोजित होने जा रहे आसियान (ASEAN) शिखर सम्मेलन को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। संभावना जताई जा रही है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महत्वपूर्ण क्षेत्रीय सम्मेलन में हिस्सा ले सकते हैं। इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के मलेशिया जाने की पुष्टि ने इस बात की अटकलों को और तेज़ कर दिया है कि पीएम मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की आमने-सामने मुलाकात हो सकती है।
हालांकि भारत सरकार की ओर से अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति को लेकर औपचारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस पर उच्चस्तरीय विचार-विमर्श जारी है। यदि पीएम मोदी सम्मेलन में जाते हैं, तो यह उनके दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होगा।
आसियान शिखर सम्मेलन एशिया के दस देशों का एक प्रमुख संगठन है जो क्षेत्रीय सहयोग, आर्थिक विकास और सुरक्षा पर केंद्रित है। भारत इस संगठन का रणनीतिक साझेदार है और बीते कुछ वर्षों में “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के तहत आसियान देशों के साथ अपने आर्थिक व कूटनीतिक संबंधों को नई दिशा देने में जुटा हुआ है।
डॉनल्ड ट्रंप की मलेशिया यात्रा ने इस सम्मेलन की कूटनीतिक अहमियत को और बढ़ा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दौरे से जहां एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को फिर से सुदृढ़ करने का संकेत मिलता है, वहीं भारत और अमेरिका के बीच आपसी संबंधों के नए अध्याय खुलने की उम्मीद भी जताई जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात होती है, तो यह न केवल द्विपक्षीय संबंधों बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सामरिक स्थिति को भी प्रभावित कर सकती है।
दोनों नेताओं के बीच पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुलाकातें हो चुकी हैं, जिनमें व्यापार, रक्षा और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई थी। यदि इस बार मलेशिया में दोनों की भेंट होती है, तो यह बैठक मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में विशेष महत्व रखेगी। अमेरिका और भारत दोनों ही चीन की बढ़ती क्षेत्रीय सक्रियता के मद्देनज़र एक साझा रणनीति तैयार करने के पक्ष में रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, आसियान शिखर सम्मेलन में इस बार समुद्री सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और डिजिटल सहयोग जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे। भारत के लिए यह सम्मेलन इसलिए भी अहम है क्योंकि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत का व्यापार और निवेश तेजी से बढ़ रहा है। 2024 में भारत और आसियान देशों के बीच व्यापारिक आंकड़ा 130 अरब डॉलर से अधिक पहुंच चुका है, जो दोनों पक्षों के बीच बढ़ते आर्थिक भरोसे को दर्शाता है।
कूटनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि अगर पीएम मोदी सम्मेलन में भाग लेते हैं, तो वे मलेशिया, वियतनाम और सिंगापुर के नेताओं के साथ द्विपक्षीय मुलाकातें भी कर सकते हैं। इन मुलाकातों में रक्षा सहयोग, व्यापार विस्तार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर चर्चा होने की संभावना है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में आसियान देशों के साथ रक्षा अभ्यास, साइबर सुरक्षा सहयोग और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है।
दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की यात्रा को भी कई विशेषज्ञ अमेरिका की एशिया नीति के पुनर्गठन के रूप में देख रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने बार-बार यह संकेत दिया है कि वह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत को एक प्रमुख साझेदार के रूप में देखता है। इस संदर्भ में मोदी-ट्रंप की संभावित मुलाकात क्षेत्रीय शक्ति संतुलन के लिहाज से अहम मानी जा रही है।
भारत सरकार अभी प्रधानमंत्री की भागीदारी पर अंतिम निर्णय नहीं ले पाई है, लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री की यात्रा की रूपरेखा तैयार की जा रही है और अंतिम निर्णय जल्द ही लिया जा सकता है। अगर मोदी इस सम्मेलन में शामिल होते हैं, तो यह न केवल भारत की कूटनीतिक उपस्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को भी और अधिक प्रभावशाली बनाएगा।
आसियान समिट 2025 में मोदी की संभावित भागीदारी ने न केवल भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान आकर्षित किया है। हर किसी की निगाह अब इस बात पर टिकी है कि क्या मलेशिया की धरती पर एक बार फिर मोदी और ट्रंप की ऐतिहासिक मुलाकात होगी।








