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कल, अर्थात् 24 अक्टूबर 2025 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के समस्तीपुर जिले में चुनावी सभा करने जा रहे हैं। यह सभा सिर्फ एक सामान्य चुनावी कार्यक्रम नहीं बल्कि रणनीतिक मायने रखती है क्योंकि यहां से एनडीए गठबंधन उन पाँच विधानसभा सीटों पर अपनी स्थिति मज़बूत करना चाह रही है जहाँ पिछली बार हार का सामना करना पड़ा था।
समस्तीपुर का चुनावी परिदृश्य इस बार कुछ खास वजहों से चर्चा में है। पहली वजह यह कि यह इलाका उस सामाजिक समीकरण से जुड़ा है जिसमें अति-पिछड़ा वर्ग (EBC) एवं सामाजिक वर्चस्व-वर्गों की भूमिका नितांत अहम है।
दूसरा यह कि प्रधानमंत्री ने अपनी बिहार दौरे की शुरुआत समस्तीपुर से करने का फैसला किया है — जो संकेत देता है कि इस क्षेत्र को उनकी दृष्टि में अंकित माना गया है।
कार्यक्रम के दौरान मोदी पहले सुबह कर्पूरी ग्राम (जिला समस्तीपुर) में जाएंगे, जहाँ वे पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी मार्गप्रदर्शक कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। कर्पूरी ग्राम के चुनावी महत्व को भाजपा रणनीतिक रूप से देख रही है क्योंकि यह EBC वोट बैंक के बीच असरशाली माना जाता है।
इसके बाद पीएम मोदी चुनावी रैली के मंच से जनसभा को संबोधित करेंगे, जिसके माध्यम से पार्टी कार्यकर्ताओं को जुटाया जाए और जनता को आगामी चुनाव में मतदान के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
विश्लेषकों के अनुसार, ये पाँच सीटें जिन्हें एनडीए इस दौरे के माध्यम से निशाना बना रही है, उनमें कुछ वो हैं जो पिछले चुनाव में हार गई थीं और कुछ वो-जिनमें बढ़त बनी हुई थी। इस रणनीति के अंतर्गत पहले से जीती हुई सीटों को बचाना तथा पिछली हार के बाद कमजोर हुई सीटों को फिर से जीत की दिशा में ले जाना शामिल है।
इस रणनीति का राजनीतिक अर्थ यह भी है कि भाजपा एवं उसके गठबंधन साथी राज्य में विपक्षी दलों के परंपरागत वोट बैंक विशेष रूप से EBC और अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। इस दिशा में समस्तीपुर जैसे स्थान इसलिए चुने गए हैं क्योंकि यहाँ सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य ऐसे समीकरण से जुड़ा है जहाँ परंपरागत वोट बैंक बदलते नजर आ रहे हैं।
चुनावी देखा जाए तो, बिहार विधानसभा चुनाव इस बार दो चरणों में होंगे — पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को तथा दूसरे चरण का 11 नवंबर को प्रस्तावित है। इसके पहले मोदी का यह दौरा बड़ी रूप से अहम माना जा रहा है क्योंकि इससे गठबंधन को जन-उत्साह तथा राजनीतिक दिशा दोनों मिल सकती है।
रैली से पहले तैयारियों का स्तर भी ऊँचा है। रैली स्थल, प्रचार सामग्री, जनसम्पर्क एवं कार्यकर्ता जुटान-सक्रियता पहले से तेज हो चुकी है। कार्यकर्ता यह उम्मीद कर रहे हैं कि इस कार्यक्रम से ऊर्जावान माहौल बनेगा तथा स्थानीय मतदाताओं में सकारात्मक स्वर पैदा होगा।
विश्लेषणकर्ताओं का कहना है कि समस्तीपुर जैसे जिले में विकास आधारित अभियान-वाणी, सामाजिक न्याय के संदेश तथा सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाली रणनीति विशेष प्रभावी हो सकती है। क्योंकि विपक्षी दलों ने पिछले चुनाव में वहाँ कुछ बढ़त बनाई थी, अब एनडीए को चुनौती यह है कि वह सिर्फ विरोध के एजेंडे से आगे निकलकर सकारात्मक संदेश दे सके।
इस रैली का महत्व सिर्फ प्रत्यक्ष जनसभा तक सीमित नहीं है — यह भविष्य की चयनित सीटों पर आगामी अभियान की दिशा का सेट-अप भी है। जहां तक बयानबाजी है, पार्टी शीर्ष नेतृत्व जल्द ही आगे की घोषणाएँ भी करने वाला है, जिससे यह संकेत मिलता है कि समस्तीपुर से शुरू हुआ यह अभियान राज्य-स्तर पर आगे बड़े पैमाने पर फैल सकता है।
समस्तीपुर की धरती पर इस प्रकार से पची-सीटों के लिये रणनीति तैयार होने और प्रतिद्वंद्विता के बीच यह रैली इसलिए अहम है क्योंकि यहाँ यह तय करना है कि क्या एनडीए पिछली हार से सबक लेकर आगे बढ़ सकती है, क्या विपक्ष पुराने समीकरणों को कायम रख पाएगा, और क्या स्थानीय सामाजिक-राजनीतिक समीकरण बदलेंगे।
उपसंहार में कहा जा सकता है कि 24 अक्टूबर को समस्तीपुर में होने वाली यह रैली सिर्फ एक सभा नहीं — बल्कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एक स्टार्ट-पिस्टल है, जिसके सफल होने या न होने से यह तय होगा कि मौजूद राजनीतिक ताकतें किस ओर झुक रही हैं। और यह कि चुनावी हाव-भाव किस दिशा में जाने वाला है।








