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    दो पीढ़ियों का डॉक्टर बनने का सपना पूरा — जब उत्कर्ष अवधिया ने नीट यूजी में ऑल इंडिया रैंक-2 लाकर परिवार की उम्मीदें पंख लगाईं

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    मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से निकलकर आए उत्कर्ष अवधिया ने इस साल के NEET UG 2025 में ऑल इंडिया रैंक-2 हासिल कर आज एक बेहद प्रेरणादायक सफर पूरा किया है। इस उपलब्धि ने सिर्फ उनके अकेले नहीं बल्कि उनकी पूरी पीढ़ी की उम्मीदों को साकार किया है — क्योंकि दादा चाहते थे कि परिवार से कोई डॉक्टर बने, पिता ने उसी ख्वाहिश को आगे बढ़ाया और उत्कर्ष ने उसे हकीकत में बदल दिया।

    उत्कर्ष ने इस परीक्षा में 682 अंक हासिल किए और 99.9999095 प्रतिशताइल प्राप्त की। यह उनका पहला प्रयास था।

    पिता आलोक अवधिया बैंक मैनेजर हैं, उन्होंने स्वीकार किया कि “मेरे पिता चाहते थे मैं डॉक्टर बनूं; मैं नहीं बन पाया, अब मेरा बेटा उस ख्वाहिश को पूरा कर रहा है।”

    उनकी सफलता का सिलसिला किसी दिन-रात मेहनत से नहीं बल्कि विषय-आधारित तैयारी, नियमित अभ्यास व मानसिक दृढ़ संकल्प से जुड़ा रहा। उत्कर्ष बताते हैं कि उन्होंने पाठ खत्म करने के बाद उसी विषय से संबंधित ऑब्जेक्टिव प्रश्न हल करना अपनी दिनचर्या बनाया था।

    तैयारी के दौरान सिर्फ पढ़ाई पर नहीं बल्कि मानसिक स्थिरता पर भी उन्होंने ध्यान दिया। जब परीक्षा केंद्र में बिजली गुल हो गई थी, तब भी उन्होंने कुछ क्षण शांत बैठ कर खुद को तैयार किया और फिर निर्धारित रणनीति के अनुसार आगे बढ़े।

    उनकी इस उपलब्धि ने उनके परिवार और आसपास के लोगों में गर्व की लहर ला दी है। इंदौर-मध्य प्रदेश में यह संदेश गया कि सही दिशा में प्रयास और निरंतरता से बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। दादा-पिता की दो पीढ़ियों की अधूरी ख्वाहिश अब एक नए मुकाम पर पहुंच गई है।

    अगला चरण अब उत्कर्ष के लिए आगे बढ़ने का है। उन्होंने लक्ष्य रखा है कि वे देश के प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश लेकर चिकित्सक बनें और चिकित्सा के क्षेत्र में अपना योगदान दें।उनके लिए यह सिर्फ एक शुरुआत है।

    उनकी कहानी उन तमाम विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा बन सकती है जो बड़े लक्ष्य रखकर भी शुरुआत से ही आगे बढ़ने से हिचकते हैं। इस मिसाल ने यह याद दिलाया है कि लक्ष्य चाहे जितना ऊँचा हो, लेकिन उसे पूरा करने का रास्ता मेहनत, अनुशासन, सही प्रणाली और आत्म-विश्वास से होकर जाता है।

    उत्कर्ष की यह सफलता एक संदेश देती है — “अपने सपनों को पूरा करने का उत्तरदायित्व सिर्फ खुद का नहीं, बल्कि उन सभी का भी है जिन्होंने आपकी राह आसान करने में पीछे से विश्वास रखा है।” उन्होंने सिर्फ अपनी पीढ़ी का नहीं बल्कि पिछली दो पीढ़ियों का सपना साकार किया है।

    शिक्षा-विश्लेषकों के मुताबिक इस तरह की कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे दिखाती हैं कि परीक्षा-परिणाम से भी अधिक मायने रखता है यात्रा — कैसे एक छात्र ने चुनौतियों को अवसर में बदला, कैसे परिवार-सहायता मिली और कैसे लक्ष्य-केन्द्रित तैयारी ने सफलता सुनिश्चित की।

    अतः आने वाले समय में उस विद्यार्थी-समुदाय के लिए यह प्रेरणा स्रोत बन सकती है जो मेडिकल प्रवेश परीक्षा की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। तथा यह याद रखने योग्य है कि किसी भी ख्वाहिश को सच करने में समय की सीमा नहीं बल्कि दृढ़ संकल्प और सतत प्रयत्न मायने रखते हैं।

    इस तरह, इंदौर के इस छात्र ने सिर्फ एक परीक्षा नहीं पास की, बल्कि दो पीढ़ियों की उम्मीदों का सफल समापन किया है। उनकी सफलता ने यह प्रमाणित किया है कि जब ख्वाहिश मजबूत हो, प्रयास निरंतर हों और मनोबल ऊँचा हो — तो “संभावना” शब्द अपनी जगह छोड़ “हकीकत” बन जाता है।

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