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पिछले कुछ महीनों में लगातार ऊँचाई छूने के बाद अब सोने की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना जहां एक समय 2,500 डॉलर प्रति औंस के करीब पहुंच गया था, वहीं अब इसकी कीमत में धीरे-धीरे कमी आने लगी है। घरेलू बाजार में भी सर्राफा दुकानों और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर सोने के कीमतें शुक्रवार सुबह के कारोबार में 1% गिरकर ₹1,23,222 प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गईं, जबकि चांदी की कीमत 1.5% घटकर ₹1,46,365 प्रति किलोग्राम हो गई। ऐसे में निवेशकों और आम लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर सोने की चमक क्यों फीकी पड़ रही है?
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारक हैं, जिनमें डॉलर की मजबूती, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी, और केंद्रीय बैंकों की ब्याज दरों में संभावित स्थिरता प्रमुख कारण हैं।
सबसे बड़ा असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति का पड़ रहा है। अमेरिका में महंगाई दर अपेक्षा से अधिक बनी हुई है, जिसके चलते फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) ने ब्याज दरों में तत्काल कटौती की संभावना से इनकार किया है। जब ब्याज दरें ऊँची रहती हैं, तो निवेशक सुरक्षित और उच्च रिटर्न देने वाले साधनों, जैसे सरकारी बॉन्ड में निवेश करना पसंद करते हैं। इससे सोने की मांग घटती है, क्योंकि सोना ब्याज नहीं देता—यह केवल मूल्य संरक्षण का साधन है। यही वजह है कि वैश्विक बाजार में सोने की कीमतें दबाव में आ गई हैं।
डॉलर इंडेक्स में मजबूती भी सोने की गिरावट का एक बड़ा कारण है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने की कीमतें डॉलर में तय होती हैं। जब डॉलर मजबूत होता है, तो अन्य मुद्राओं में सोना महंगा पड़ता है, जिससे इसकी मांग कम हो जाती है। हाल के दिनों में डॉलर इंडेक्स 106 के स्तर के पार चला गया है, जिससे सोने पर दबाव और बढ़ गया है।
भारत में सोने के दामों पर इसका सीधा असर दिख रहा है। रुपये में गिरावट और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के बावजूद घरेलू मांग में कमी आई है। त्योहारी सीजन में भी पहले जैसी खरीदारी देखने को नहीं मिली। शादियों के मौसम में भी उपभोक्ता उच्च कीमतों के चलते निवेश को टाल रहे हैं।
एक और बड़ा कारण चीन की ओर से मांग में कमी आना बताया जा रहा है। पिछले वर्ष चीन ने वैश्विक स्तर पर सोने की भारी खरीदारी की थी, जिससे कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थीं। लेकिन इस वर्ष चीन के केंद्रीय बैंक ने गोल्ड रिजर्व बढ़ाने की रफ्तार धीमी कर दी है। इसके साथ ही अन्य एशियाई देशों में भी सोने की मांग में सुस्ती देखने को मिल रही है।
वित्त विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट एक “स्वाभाविक करेक्शन” है, जो लंबे समय से बढ़ते दामों के बाद देखा जा रहा है। पिछले एक वर्ष में सोना लगभग 20 प्रतिशत बढ़ चुका था, इसलिए बाजार में एक अस्थायी गिरावट सामान्य मानी जा रही है। हालांकि, इसका अर्थ यह नहीं है कि सोने का भविष्य समाप्त हो गया है। दीर्घकालिक निवेशकों के लिए यह गिरावट “खरीदारी का अवसर” भी साबित हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, जो निवेशक अपने पोर्टफोलियो में स्थिरता चाहते हैं, उनके लिए 10–15 प्रतिशत तक सोने में निवेश एक समझदारी भरा कदम हो सकता है। हालांकि, अल्पावधि में कीमतों में और उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। इसलिए निवेशकों को जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेना चाहिए।
एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं कि 2026 से पहले फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना बढ़ सकती है। उस स्थिति में डॉलर कमजोर होगा और सोने की कीमतों में फिर से उछाल आ सकता है। इसलिए निवेशक अगर दीर्घकालिक दृष्टिकोण से निवेश करें तो सोना अभी भी एक सुरक्षित और स्थिर विकल्प बना रहेगा।
भारत जैसे देशों में सोना सिर्फ निवेश का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक मूल्य भी रखता है। इसलिए इसके बाजार में स्थायित्व हमेशा बना रहता है। हालांकि, विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि निवेशक केवल भावनात्मक कारणों से नहीं, बल्कि उचित वित्तीय योजना के तहत सोने में निवेश करें।
निवेशकों को यह समझना चाहिए कि सोना एक ऐसा एसेट है जो जोखिमपूर्ण बाजार परिस्थितियों में सुरक्षा देता है, लेकिन तेजी के दौर में अन्य निवेश साधनों की तुलना में सीमित रिटर्न देता है। इसलिए सोने में निवेश करते समय अपने वित्तीय लक्ष्यों, जोखिम क्षमता और निवेश अवधि को ध्यान में रखना चाहिए।
कुल मिलाकर, सोने की कीमतों में मौजूदा गिरावट को “पैनिक सिचुएशन” के रूप में नहीं, बल्कि एक “स्वस्थ करेक्शन” के रूप में देखा जाना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले कुछ महीनों में स्थिति स्थिर होने के बाद सोने के भाव फिर से उभर सकते हैं।
इसलिए, अगर आप सोने में निवेश करने की सोच रहे हैं, तो यह समय दीर्घकालिक निवेश के लिए उपयुक्त हो सकता है—बस सावधानी, योजना और धैर्य के साथ।





