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    GST Reforms: जिम, सैलून, योगा… सब पड़ रहा महंगा, जीएसटी में हुआ ऐसा ‘खेल’ कि लेने के देने पड़ गए

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    GST (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) में हालिया सुधारों के बाद देशभर में जिम, सैलून और योगा जैसी पर्सनल ग्रूमिंग सेवाओं की कीमतें बढ़ने लगी हैं। जहां आम उपभोक्ता उम्मीद कर रहे थे कि सरकार की टैक्स रेट में कटौती से उनका खर्च कम होगा, वहीं असलियत इससे बिल्कुल उलट साबित हो रही है। दरअसल, जीएसटी संरचना में किए गए कुछ अहम बदलावों ने इन सेवाओं की लागत बढ़ा दी है, और इसका सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ रहा है।

    हाल में केंद्र सरकार ने कुछ सेवाओं पर जीएसटी दरों को समायोजित किया था, ताकि टैक्स सिस्टम को सरल और पारदर्शी बनाया जा सके। लेकिन इन बदलावों का अप्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ कि पर्सनल केयर सेक्टर में काम करने वाले व्यवसायों को अब ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (ITC) का लाभ नहीं मिल रहा। यही वजह है कि कंपनियों ने अपनी सेवाओं के दाम बढ़ा दिए हैं, ताकि बढ़ी हुई लागत की भरपाई की जा सके।

    इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) एक ऐसा प्रावधान है जो व्यवसायों को अपनी खरीद पर दिए गए टैक्स का लाभ आगे की टैक्स देनदारी से समायोजित करने की सुविधा देता है। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई सैलून अपने उपकरण या ब्यूटी प्रोडक्ट्स पर टैक्स चुका चुका है, तो वह इसे अपनी सेवाओं पर लगने वाले जीएसटी से समायोजित कर सकता है। लेकिन नए GST नियमों में इस ITC लाभ को कई सेवाओं से हटा दिया गया है।

    इस बदलाव का असर तुरंत दिखने लगा है। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में सैलून और फिटनेस सेंटरों ने अपने रेट चार्ट अपडेट कर दिए हैं। एक मध्यम वर्गीय ग्राहक जो पहले 1,000 रुपये में बाल कटवाता था, अब उसे लगभग 1,100 से 1,200 रुपये तक चुकाने पड़ रहे हैं। इसी तरह, जिम मेंबरशिप और योगा क्लासेस की फीस में भी 8 से 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने दरअसल टैक्स चोरी रोकने और इनपुट टैक्स के गलत दावे को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया है। लेकिन इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को उठाना पड़ रहा है। कर विशेषज्ञ निखिल अग्रवाल के अनुसार, “GST में ITC की कटौती से सर्विस सेक्टर की ऑपरेशनल कॉस्ट बढ़ गई है। क्योंकि व्यवसायों को अब अपने हर खर्च पर फुल टैक्स देना पड़ रहा है और वे उसे सेट ऑफ नहीं कर सकते।”

    वहीं, जिम और सैलून संचालकों का कहना है कि उनके लिए अब सेवाएं प्रदान करना पहले से कहीं महंगा हो गया है। बिजली, किराया, प्रोडक्ट्स और कर्मचारियों की सैलरी पर पहले ही काफी खर्च होता है, और अब टैक्स लाभ खत्म होने से मुनाफा घट गया है। “हम मजबूरन अपने ग्राहकों से थोड़ा ज्यादा चार्ज कर रहे हैं, क्योंकि जीएसटी नियमों ने हमें कोई दूसरा विकल्प नहीं छोड़ा,” मुंबई के एक प्रसिद्ध सैलून मालिक ने बताया।

    दूसरी ओर, उपभोक्ताओं में इस बदलाव को लेकर नाराजगी है। कई लोगों का कहना है कि जीएसटी सुधारों के नाम पर उन्हें टैक्स कटौती का फायदा तो नहीं मिला, बल्कि रोजमर्रा की सेवाएं और महंगी हो गईं। सोशल मीडिया पर #GSTReform या #ExpensiveServices जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जिनमें लोग सरकार से टैक्स नीति पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।

    हालांकि, वित्त मंत्रालय का तर्क है कि यह सुधार दीर्घकालिक रूप से टैक्स सिस्टम को सरल बनाने में मदद करेगा। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, “जीएसटी का मकसद है कि हर स्तर पर पारदर्शिता आए। कुछ सेक्टरों में ITC हटाने से राजस्व हानि कम होगी और टैक्स लीकेज पर रोक लगेगी।”

    अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह निर्णय फिलहाल उपभोक्ताओं के लिए महंगाई बढ़ाने वाला साबित होगा। लेकिन यदि सरकार भविष्य में पर्सनल सर्विस सेक्टर को राहत देती है या कुछ आवश्यक सेवाओं को फिर से ITC के दायरे में लाती है, तो खर्च में कमी आ सकती है।

    GST में हुए इस ‘खेल’ ने यह साबित कर दिया है कि टैक्स सुधार हमेशा लाभकारी नहीं होते — कम से कम तब तक नहीं, जब तक उनकी जमीनी वास्तविकता पर ध्यान न दिया जाए। वर्तमान स्थिति में, जिम, सैलून और योगा जैसी सेवाओं का इस्तेमाल करने वालों को और गहरी जेब रखनी होगी।

    सरकार जहां इसे आर्थिक सुधार की दिशा में एक कदम बता रही है, वहीं आम जनता इसे ‘जीएसटी बोझ’ का नया अध्याय मान रही है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार उपभोक्ताओं की इस बढ़ती चिंता पर ध्यान देती है या नहीं।

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