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भारत में विकास की कहानी के साथ-साथ भ्रष्टाचार की कहानी भी गहराई से जुड़ी रही है। सरकारी सिस्टम में सुधार की बातें हर दौर में होती रही हैं, लेकिन जमीन पर हालात अक्सर वैसी ही बने रहते हैं। इसी सिस्टम से तंग आकर अब एक स्टार्टअप फाउंडर और सीईओ ने अपनी पीड़ा सार्वजनिक रूप से रखी है। उनका नाम है धवल जैन, जो एक सफल उद्यमी और भारत में उभरते स्टार्टअप इकोसिस्टम का हिस्सा रहे हैं। लेकिन आज वे कहते हैं — “मैं भारत के विकास की कहानी पर कभी बहुत उत्साहित था, लेकिन अब नहीं।”
धवल जैन का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि कोई भी बदलाव अब वास्तविकता में संभव नहीं दिखता। धवल का कहना है कि उन्होंने अपने स्टार्टअप के शुरुआती दिनों में सरकार और प्रशासन से कई तरह की मदद की उम्मीद की थी। लेकिन जब वे इस सिस्टम के संपर्क में आए, तो उन्हें एहसास हुआ कि “यहां सब कुछ ‘पेमेंट’ से शुरू होता है और ‘पेमेंट’ पर खत्म।”
उन्होंने लिखा, “मैंने हमेशा माना कि भारत एक परिवर्तनशील देश है। एक ऐसा देश जो युवाओं, नवाचार और तकनीक के सहारे नई दिशा में बढ़ रहा है। लेकिन जब मैं खुद उस व्यवस्था के सामने आया, तो मुझे समझ आया कि बदलाव की बातें सिर्फ भाषणों में हैं, हकीकत में नहीं।”
धवल जैन के मुताबिक, उन्होंने अपने बिजनेस के रजिस्ट्रेशन से लेकर परमीशन और टैक्स से जुड़ी हर प्रक्रिया में किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार का सामना किया। वे कहते हैं कि “हर डेस्क पर कोई न कोई शर्त रखी जाती है — अगर आप ‘तेजी’ चाहते हैं तो ‘कुछ करना पड़ेगा’। अगर नहीं करेंगे तो आपका फाइल महीनों तक दबा दी जाएगी।”
उन्होंने आगे कहा कि यह सिस्टम न केवल आम नागरिकों को बल्कि ईमानदार उद्यमियों को भी हताश कर देता है। “मैंने जब अपने साथ काम करने वाले युवाओं को देखा, तो उनमें भारत को बदलने का उत्साह था। वे देश में रोजगार पैदा करना चाहते थे, लेकिन सिस्टम उन्हें ऐसा करने से पहले ही थका देता है। यह निराशाजनक है।”
धवल जैन का यह बयान केवल एक व्यक्ति की हताशा नहीं, बल्कि उस व्यापक भावना को दर्शाता है जो आज भारत के कई युवा उद्यमियों में देखने को मिल रही है। सरकारी स्तर पर स्टार्टअप्स के लिए योजनाएं और इंसेंटिव्स तो बहुत हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर नौकरशाही की जटिलता और भ्रष्टाचार उन सभी योजनाओं की रफ्तार को रोक देता है।
धवल कहते हैं, “मैंने कई देशों के सिस्टम को देखा है। वहां सरकारें उद्यमियों को समर्थन देती हैं ताकि वे कुछ नया कर सकें। लेकिन भारत में, अगर आप कुछ नया करना चाहते हैं, तो आपको पहले इस सिस्टम को ‘मैनेज’ करना सीखना पड़ेगा। और यही वह जगह है, जहां सपने दम तोड़ देते हैं।”
उनका यह बयान भारत के विकास की गति और उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाता है। उन्होंने लिखा कि “Change isn’t coming” — यह वाक्य सिर्फ निराशा नहीं, बल्कि उस सच्चाई की झलक है, जिसे वे हर दिन महसूस कर रहे हैं। धवल का कहना है कि जब सिस्टम ईमानदार लोगों को जगह नहीं देता, तो भ्रष्टाचार अपने आप बढ़ता जाता है। और जब भ्रष्टाचार बढ़ता है, तो समाज की नैतिकता और प्रगति दोनों ही कमजोर पड़ जाती हैं।
उन्होंने बताया कि अब वे भारत के विकास को लेकर उतने आशावादी नहीं रहे जितने पहले थे। “एक समय था जब मैं ‘न्यू इंडिया’ की सोच से प्रेरित था। मुझे लगता था कि तकनीक और पारदर्शिता सब कुछ बदल देगी। लेकिन आज मैं देखता हूं कि वही तकनीक अब भ्रष्टाचार को और आसान बना रही है — ऑनलाइन घूसखोरी, फर्जी दस्तावेज और सिस्टम की छिपी मिलीभगत, ये सब अब डिजिटल रूप में हो गए हैं।”
धवल जैन के इस बयान ने कई उद्योग जगत के लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कई लोगों ने उनकी पोस्ट पर सहमति जताई और कहा कि वे भी ऐसी स्थितियों का सामना कर चुके हैं। वहीं कुछ ने यह भी कहा कि निराशा के बावजूद प्रयास जारी रखना जरूरी है, क्योंकि अगर ईमानदार लोग हार मान लेंगे, तो बदलाव कभी नहीं आएगा।
धवल की यह कहानी आज के भारत की वास्तविक तस्वीर पेश करती है — एक ऐसा देश जहां युवा ऊर्जा, नवाचार और उम्मीद से भरे हुए हैं, लेकिन एक जर्जर प्रशासनिक व्यवस्था उन्हें लगातार रोकती जा रही है। भारत का विकास तभी संभव है जब इस सिस्टम को अंदर से बदला जाए, वरना “Change isn’t coming” जैसे शब्द सिर्फ एक उद्यमी की पीड़ा नहीं, बल्कि आने वाले कल की चेतावनी बन जाएंगे।







