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दनापुर छावनी स्थित बिहार रेजिमेंटल सेंटर ने अपने 79वें इन्फैंट्री दिवस के अवसर पर 27 अक्टूबर 1947 को हुए उस ऐतिहासिक सैन्य अभियान को याद किया, जिसने स्वतंत्र भारत की पैदल सेना की चुनौतियों और बहादुरी को अमिट कर दिया। इस दिन पैदल सेना के जवानों ने पहली बार स्वतंत्र भारत के नाम पर निर्णायक भूमिका निभाई थी, और इस वर्ष का समारोह उनकी वीरता और त्याग को सम्मान देने का एक गरिमामय अवसर बना।
शामारोह की शुरुआत युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि देने के साथ हुई, जहाँ उच्च सैन्य अधिकारियों ने गौरवशाली परंपरा के अनुरूप शहीदों को अभिवादन किया। इस अवसर पर लेफ्टिनेंट जनरल विकाश भद्रवाज सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि 27 अक्टूबर 1947 का ऑपरेशन सिर्फ एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि नए राष्ट्र की रक्षा का दृढ़ संकल्प था जिसने जम्मू‑कश्मीर की दिशा बदल दी थी।
यह दिन उन जवानों के साहस का प्रतीक है जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में, सीमावर्ती इलाके में, दुश्मन की घुसपैठ को रोका। घटना के समय कम संसाधन और कठिन मौसम के बावजूद भारतीय पैदल सेना ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई थी। इस युद्ध‑परिस्थिति में इन जवानों की तत्परता और समर्पण ने स्वतंत्र भारत की रक्षा की नींव मजबूत की थी।
समारोह के दौरान यह बात भी जोर दिए गई कि आज की चुनौतियाँ भले ही बदल गई हों — तकनीकी उन्नति, आधुनिक हथियार, साइबर खतरें — लेकिन पैदल सेना का मूल कार्य, यानी देश की सीमाओं की रक्षा और अग्रिम मोर्चों पर निर्णय लेना, उतना ही महत्वपूर्ण बना हुआ है। इस प्रकार, इन्फैंट्री दिवस सिर्फ यादगार नहीं बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए प्रेरणा भी है।
बिहार रेजिमेंटल सेंटर ने समारोह को सैनिक‑परिवारों, पूर्व सैनिकों और युवाओं के लिए प्रेरक अवसर के रूप में तैयार किया। जवानों के बीच परेड, सलामी और सम्मान समारोह ने यह संदेश दिया कि जिस धरती की रक्षा पैदल सेना करती है, उसे जनता भूले नहीं सकती। इस आयोजन ने आम नागरिकों को भी यह याद दिलाया कि देश की सुरक्षा के पीछे कितनी गहराई और कितनी मेहनत छिपी होती है।
इस अवसर पर यह विचार उठाया गया कि स्वतंत्रता के बाद पहली बड़ी कार्रवाई 27 अक्टूबर 1947 को हुई थी, जब भारतीय सेना ने जम्मू‑कश्मीर में रणनीतिक स्थिति को संभाला था। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ने इन्फैंट्री दिवस को यह विशेष स्थान दिलाया है।
सम्मानित अधिकारी‑वर्ग ने उपस्थित जवानों को यह समझाया कि सुरक्षा‑माहौल तेज‑तर्रार हो रहा है, और आगामी पीढ़ियों को इस विरासत को आगे ले जाने के लिए तैयार होना होगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह 1947 के जवानों ने अपार साहस दिखाया था, आज भी हमारी पैदल सेना उसी तरह समर्पित है और भविष्य में भी रहेगी।
समारोह का भाव इस बात पर केंद्रित था कि पैदल सेना — जिसे अक्सर “बैटल की क्वीन” कहा जाता है — वह मूल शक्ति है जो जमीन पर खड़ी रहती है, संघर्ष करती है और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है। आज भी उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
इस तरह, बिहार रेजिमेंटल सेंटर द्वारा आयोजित इन्फैंट्री दिवस ने 1947 की बड़ी लड़ाई को याद रखते हुए आज की सुरक्षा‑जरूरतों और जवानों के समर्पण को भी पुनर्स्थापित किया। यह आयोजन एक संदेश था — कि स्वतंत्रता मिले अभी थोड़ा समय हुआ है, हमें अपने सीमा‑रक्षा बलों के योगदान को लगातार याद रखना है।
देशवासियों के लिए यह दिन सिर्फ एक सरकारी अवसर नहीं है बल्कि उन अनगिनत जवानों की कहानी है जिन्होंने कठिन राह पथ पर कदम बढ़ाया, आवाज़ दी और कहा — ‘यह देश हमारा है, इसकी रक्षा हमारा फर्ज है’। आज बिहार रेजिमेंटल सेंटर ने उसी भावना को जीवित रखा।







