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महाराष्ट्र के नासिक जिले स्थित लासलगांव मंडी, जिसे भारत की प्याज राजधानी कहा जाता है, में प्याज के औसत थोक दाम में 23.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह बढ़ोतरी पिछले कुछ हफ्तों में लगातार घटती आवक और बढ़ती मांग के कारण हुई है। कृषि मंत्रालय और बाजार समितियों के आंकड़ों के अनुसार, पिछले सप्ताह जहां प्याज का औसत थोक भाव ₹2,700 प्रति क्विंटल था, वहीं अब यह बढ़कर ₹3,330 प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है।
यह उछाल ऐसे समय में आया है जब देश के कई हिस्सों में प्याज की नई फसल की बुआई चल रही है और भंडारण में रखे पुराने प्याज की मात्रा तेजी से कम हो रही है। किसानों के लिए यह खबर राहत भरी है क्योंकि लंबे समय से उन्हें कम कीमतों का सामना करना पड़ रहा था। वहीं, खुदरा बाजारों में कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका से उपभोक्ताओं की जेब पर बोझ बढ़ सकता है।
लासलगांव कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) के अधिकारियों के अनुसार, प्याज की आवक में लगभग 20% की गिरावट देखी गई है। पिछले सप्ताह जहां रोज़ाना लगभग 14,000 क्विंटल प्याज की आवक हो रही थी, वहीं अब यह घटकर करीब 11,000 क्विंटल रह गई है। मंडी अधिकारियों का कहना है कि बारिश और जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को फसल की पैदावार में गिरावट झेलनी पड़ रही है, जिससे बाजार में आपूर्ति घट रही है।
प्याज किसानों के लिए राहत भरी खबर
कई महीनों तक कम कीमतों से जूझ रहे प्याज किसानों के लिए यह मूल्य वृद्धि किसी राहत से कम नहीं है। नासिक के किसान राजेंद्र पाटील ने बताया, “हमारी मेहनत की कीमत अब जाकर मिल रही है। कुछ समय पहले हमें प्याज ₹10-12 किलो तक बेचनी पड़ रही थी, जिससे लागत भी नहीं निकलती थी। अब दाम बढ़े हैं तो थोड़ा संतोष है।”
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार में प्याज की कीमतों में यह वृद्धि मौसमी उतार-चढ़ाव का परिणाम है। सितंबर-अक्टूबर के दौरान खरीफ प्याज की फसल मंडियों में पहुंचती है, लेकिन इस बार बारिश और भंडारण की समस्या के कारण आवक में देरी हुई है।
उपभोक्ताओं पर बढ़ेगा बोझ
दूसरी ओर, इस बढ़ोतरी ने आम उपभोक्ताओं की चिंता बढ़ा दी है। देश के कई प्रमुख शहरों — दिल्ली, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद — में प्याज की खुदरा कीमतें ₹45-₹55 प्रति किलो तक पहुंच गई हैं, जो पिछले सप्ताह की तुलना में लगभग ₹8-₹10 अधिक हैं। यदि मंडियों में यह रुझान जारी रहा, तो दिवाली के बाद प्याज ₹70 प्रति किलो तक पहुंच सकता है।
निर्यात और सरकारी हस्तक्षेप की संभावना
विशेषज्ञों का कहना है कि कीमतों में तेज उछाल के कारण सरकार फिर से निर्यात पर प्रतिबंध लगाने या निर्यात शुल्क बढ़ाने जैसे कदम उठा सकती है। हाल ही में सरकार ने प्याज के निर्यात पर 40% शुल्क लगाया था, जिससे घरेलू बाजार में स्थिरता लाई जा सके। हालांकि, यह कदम किसानों के लिए नुकसानदेह साबित हुआ था क्योंकि इससे उनके निर्यात लाभ पर असर पड़ा था।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, उपभोक्ता मंत्रालय स्थिति पर नजर रखे हुए है और जरूरत पड़ने पर बाजार में बफर स्टॉक जारी करने पर विचार किया जा सकता है। फिलहाल राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (NCCF) और नैफेड (NAFED) के पास पर्याप्त प्याज स्टॉक मौजूद है जिसे बाजार में छोड़ा जा सकता है ताकि कीमतों को नियंत्रित किया जा सके।
मौसम और उत्पादन पर असर
प्याज की फसल मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और कर्नाटक में होती है। इस बार मानसून के दौरान हुई अनियमित बारिश और कई इलाकों में जलभराव के कारण प्याज की फसल को नुकसान हुआ। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि अगले कुछ हफ्तों में मौसम सामान्य रहा तो नवंबर के अंत तक नई फसल मंडियों में पहुंच सकती है, जिससे कीमतों में स्थिरता आने की संभावना है।
आर्थिक विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विश्लेषक मानते हैं कि प्याज की कीमतों में इस तरह की वृद्धि से खुदरा मुद्रास्फीति (retail inflation) पर असर पड़ सकता है। खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतें आमतौर पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) को प्रभावित करती हैं। यदि प्याज की कीमतें लंबे समय तक ऊंची रहीं, तो यह आने वाले महीनों में महंगाई दर को ऊपर खींच सकती हैं।
लासलगांव में प्याज के थोक दामों में 23.3% की बढ़ोतरी किसानों के लिए राहत का संकेत है, लेकिन उपभोक्ताओं के लिए यह चिंता का विषय बनती जा रही है। सरकार की नीति और मौसम की स्थिति आने वाले दिनों में यह तय करेगी कि प्याज के दाम और कितना ऊपर जाएंगे या फिर बाजार में स्थिरता लौटेगी।
फिलहाल प्याज बाजार के इस उतार-चढ़ाव ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कृषि उत्पादों की कीमतें केवल मांग और आपूर्ति से नहीं, बल्कि मौसम, नीति और निर्यात नियंत्रण जैसे कई कारकों पर निर्भर करती हैं।








