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अगस्त में घोषणा हुई थी कि परेश रावल की नई फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ 31 अक्टूबर 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। लेकिन रिलीज से ठीक पहले यह फिल्म एक बड़े विवाद में घिर गई है। भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ने इस फिल्म के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है और उसे सार्वजनिक रूप से रिलीज़ करने पर रोक लगाने की मांग की है।
एयोध्य के भाजपा प्रवक्ता राजनीश सिंह ने स्पष्ट किया है कि उनकी शिकायत इस बात पर आधारित है कि फिल्म में इस्तेमाल की गई कथन-रचना, प्रचार सामग्री तथा कथानक उसके द्वारा 2022 में दायर एक याचिका से मिलते-जुलते हैं। उन्होंने कहा है कि उन्होंने 2022 में ताजमहल के अंदर “22 ताले बन्द कमरों” को खोलने और वहाँ होने वाले दावों की समीक्षा कराने हेतु अदालत में याचिका डाल रखी थी, जो बाद में वापस हुई थी। उनके अनुसार, फिल्म उसी याचिका पर आधारित है, लेकिन इसके निर्माण-प्रचार में उन्हें कोई अनुमति नहीं दी गई।
राजनीश सिंह ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) को लिखित में कहा है कि फिल्म की रिलीज़ से पहले उसका पूरा स्क्रिप्ट, प्रचार-सामग्री एवं पोस्टर्स निष्पक्ष रूप से जाँचे जाएँ क्योंकि उनके विचार में यह फिल्म «अपराधी घटनाओं, इतिहास के तथ्यों तथा धार्मिक भावनाओं को प्रभावित करने वाली सामग्री» है। उन्होंने कहा कि फिल्म का प्रमोशन जारी रहने से सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील स्थितियों में वृद्धि हो सकती है और न्यायालयीय प्रक्रिया पर भी असर पड़ सकता है।
वहीं, परेश रावल और फिल्म की टीम ने अभी तक इस शिकायत पर विस्तृत सार्वजनिक जवाब नहीं दिया है, मगर पहले ही उन्होंने यह बयान जारी किया है कि फिल्म किसी धार्मिक विवाद को बढ़ावा नहीं देती बल्कि एक ऐतिहासिक-कथात्मक परिदृश्य प्रस्तुत करती है। अभिनेता ने कहा था कि यह फिल्म “धार्मिक मसलों को लेकर नहीं है” बल्कि “इतिहास-संदर्भ में” एक कथानक प्रस्तुत करती है।
यह विवाद इस फिल्म की रिलीज से ठीक पहले उठा है और इससे स्पष्ट हो रहा है कि सिनेमाई काम, ऐतिहासिक दावों तथा सोशल-सेंसेटिव विषयों के बीच किस प्रकार टकराव संभव है। फिल्म के पोस्टर्स में विवादित प्रतीक दिखाए गए थे — ताजमहल के गुंबद से शिवलिंग का चित्र निकलता हुआ देखा गया, जिसने सोशल मीडिया और इतिहास-विश्लेषकों में तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न की थी।
फिल्मकारों को इस तरह की स्थिति के लिए पूर्व-तैयारी करनी पड़ती है क्योंकि जब कोई फिल्म सार्वजनिक समकालीन इतिहास-यानि “मॉन्यूमेंट”, “स्मारक” या “धार्मिक स्थल” से जुड़ी होती है, तब उस पर संवेदनशीलता, विरासत-संरक्षण तथा सामाजिक सौहार्द की दृष्टि से अधिक सतर्कता आवश्यक होती है। इस मामले में ताजमहल जैसा विश्व-प्रसिद्ध स्मारक होने के कारण विवाद को और गहराई मिली है।
अब यह देखना होगा कि आगे क्या होगा। शिकायत में फिल्म का प्रमोशन तुरंत रोकने की मांग की गई है, साथ ही फिल्म की तुलना शिकायतकर्ता की याचिका-हस्तांतरण से की गई है। यदि न्यायालय या संबद्ध प्राधिकरण फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगा देते हैं या संशोधन का निर्देश देते हैं, तो फिल्म की रिलीज़ रणनीति पर असर पड़ेगा। इसके विपरीत अगर निर्माताओं को राहत मिलती है, तो दर्शक तय तारीख पर ही फिल्म देख सकेंगे।
समय अगले कुछ दिनों में बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि रिलीज तिथि बेहद निकट आ चुकी है। फिल्म निर्माता-प्रोड्यूसर्स को तय करना होगा कि क्या वो मोशन-पोस्टर, ट्रेलर तथा प्रचार-कार्य बन्द करें या शिकायत का सामना करते हुए आगे बढ़ें। वहीं, दर्शक-प्रेक्षक भी इस विवाद को लेकर उत्सुकता के साथ इंतज़ार कर रहे हैं कि आखिर भविष्य में यह फिल्म किन रूपों में सामने आएगी।
इस तरह, ‘द ताज स्टोरी’ सिर्फ एक मनोरंजन फिल्म नहीं रह गई, बल्कि एक सामाजिक-कानूनी परिघटना बन गई है जहाँ फिल्म, इतिहास, राजनीति एवं सामाजिक दृष्टिकोण आपस में मिलकर जटिल रूप धारण कर गए हैं। आने वाले दिनों में यह मामला इंडस्ट्री के लिए एक उदाहरण बन सकता है कि कैसे फिल्मों में विषय-चयन और प्रचार-निति को न्याय-संगत तथा संवेदनशील रूप से प्रबंधित किया जाना चाहिए।








