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    ₹50 लाख तक की आय पर टैक्स का बोझ घटाने की मांग तेज! बजट 2026 से पहले टैक्स स्लैब में राहत की उम्मीद बढ़ी

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    भारत में मध्यवर्गीय करदाताओं के लिए एक राहत भरी खबर की उम्मीद बढ़ गई है। वित्त वर्ष 2025-26 के बजट से पहले टैक्स स्ट्रक्चर में बदलाव की मांग जोर पकड़ रही है। देशभर के वित्त विशेषज्ञों, कारोबारी संगठनों और टैक्स एसोसिएशनों ने केंद्र सरकार से अपील की है कि ₹50 लाख रुपये तक सालाना आय वाले करदाताओं के लिए टैक्स का बोझ कम किया जाए।

    नई टैक्स रिजीम के तहत फिलहाल 12 लाख रुपये तक की इनकम टैक्स फ्री कर दी गई है, जबकि 24 लाख रुपये से ज्यादा कमाने वालों पर 30 फीसदी का अधिकतम टैक्स लगाया जाता है। हालांकि, बढ़ती महंगाई, महंगी शिक्षा और स्वास्थ्य खर्चों के कारण मध्यवर्ग अब राहत की उम्मीद कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा टैक्स ढांचा “असमान रूप से बोझिल” हो गया है, क्योंकि ऊंची आय वालों की तरह मध्य आय वर्ग भी लगभग उसी टैक्स दर के दायरे में आ जाता है।

    चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और इकोनॉमिक एक्सपर्ट्स के अनुसार, ₹15 लाख से ₹50 लाख की वार्षिक आय वाले लोगों को टैक्स के मामले में सबसे ज्यादा दबाव झेलना पड़ रहा है। उनका कहना है कि इस आय वर्ग के लोग न तो “अमीर” कहलाते हैं और न ही सरकार की सब्सिडी योजनाओं के पात्र हैं, लेकिन टैक्स के मामले में उन्हें भारी दरों का सामना करना पड़ता है।

    नई टैक्स रिजीम को सरकार ने आसान और पारदर्शी व्यवस्था के रूप में पेश किया था। इसमें टैक्स दरें घटाकर कई छूटों और कटौतियों को समाप्त कर दिया गया। लेकिन जैसे-जैसे लोग नई प्रणाली के तहत फाइल करने लगे, कई करदाताओं ने महसूस किया कि यह सिस्टम “लोअर मिडिल क्लास” के लिए ज्यादा लाभदायक नहीं है।

    इंडस्ट्री बॉडी ASSOCHAM और FICCI ने वित्त मंत्रालय को भेजे अपने सुझावों में कहा है कि 50 लाख रुपये तक की आय पर टैक्स स्लैब को पुनः संशोधित किया जाए ताकि “मिडिल क्लास की बचत और खपत क्षमता” बढ़ सके। उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि का सबसे बड़ा इंजन घरेलू खपत है, और अगर करदाताओं की जेब में ज्यादा पैसा रहेगा, तो अर्थव्यवस्था में मांग भी बढ़ेगी।

    वित्त विशेषज्ञों ने प्रस्ताव दिया है कि सरकार को 15 लाख से 30 लाख रुपये तक की आय के लिए 20% टैक्स स्लैब, और 30 लाख से 50 लाख रुपये तक की आय के लिए 25% टैक्स दर लागू करनी चाहिए। इससे टैक्स बोझ घटेगा और टैक्स अनुपालन बढ़ेगा।

    पिछले कुछ वर्षों में टैक्स कलेक्शन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में प्रत्यक्ष कर संग्रह 20% से अधिक बढ़ा है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के पास करदाताओं को राहत देने की राजकोषीय क्षमता (Fiscal Space) मौजूद है।

    नई टैक्स रिजीम बनाम पुरानी व्यवस्था की तुलना में देखा जाए तो पुराने ढांचे में निवेश और बीमा जैसे सेक्टरों को टैक्स छूट से लाभ मिलता था। लेकिन नई प्रणाली में ऐसे इंसेंटिव हटा दिए गए हैं। यही वजह है कि टैक्सपेयर्स का बड़ा हिस्सा आज भी पुरानी व्यवस्था को चुनता है।

    टैक्स विशेषज्ञ अमिताभ गुप्ता का कहना है, “सरकार ने नई टैक्स रिजीम को सरल तो बनाया, लेकिन यह उन लोगों के लिए कठिन साबित हुई जिनके खर्च स्थायी हैं। ₹50 लाख तक की आय वालों पर टैक्स का बोझ वास्तविक रूप से बहुत ज्यादा है, खासकर मेट्रो शहरों में।”

    वहीं, दिल्ली यूनिवर्सिटी की अर्थशास्त्री डॉ. मीना अरोड़ा का मानना है कि भारत में “मिडिल क्लास टैक्सपेयर्स” ही विकास की रीढ़ हैं। उन्होंने कहा, “बढ़ती शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास लागत ने इस वर्ग पर भारी दबाव डाला है। सरकार को टैक्स स्लैब में बदलाव कर उन्हें राहत देनी चाहिए।”

    सूत्रों के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने भी टैक्स रेट स्ट्रक्चर की समीक्षा शुरू कर दी है। मंत्रालय के अधिकारी अगले बजट से पहले टैक्स स्लैब पर उद्योग जगत और आम जनता के सुझावों पर विचार कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि बजट 2026 में टैक्स स्लैब में कुछ सुधार संभव हैं।

    सरकारी सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) भी इस विषय पर संवेदनशील है। सरकार चाहती है कि “ईमानदार करदाताओं” को सम्मान और राहत दोनों मिले। इसके लिए “कम टैक्स दर, ज्यादा अनुपालन” की नीति पर विचार किया जा रहा है।

    एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “सरकार टैक्स रेवेन्यू में कमी नहीं चाहती, लेकिन अगर टैक्सपेयर बेस बढ़े तो टैक्स दर घटाना भी संभव है। हमारा लक्ष्य ऐसा संतुलन बनाना है जिससे लोगों की जेब में भी पैसा रहे और देश की विकास गति भी बरकरार रहे।”

    साल 2024 में नई टैक्स रिजीम को लेकर किए गए बदलावों ने करदाताओं के बीच कुछ हद तक राहत पहुंचाई थी, लेकिन अब अगले बजट में मिडिल इनकम ग्रुप को अतिरिक्त राहत की उम्मीद है। इससे न केवल बचत बढ़ेगी, बल्कि निवेश और घरेलू खर्च को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

    अगर सरकार ₹50 लाख तक की आय वालों के लिए टैक्स दरों में कमी करती है, तो यह फैसला देश के करीब 5 करोड़ करदाताओं को सीधा फायदा पहुंचा सकता है। साथ ही, यह कदम मोदी सरकार के “विकसित भारत 2047” लक्ष्य की दिशा में मध्यवर्गीय सशक्तिकरण का बड़ा संकेत माना जाएगा।

    अभी सरकार की ओर से इस पर कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन चर्चाएं तेज हैं कि बजट 2026 में मिडिल क्लास को “टैक्स फ्रीडम” का आंशिक तोहफा मिल सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह न सिर्फ एक वित्तीय राहत होगी बल्कि करोड़ों परिवारों की आर्थिक आत्मनिर्भरता को भी मजबूती देगा।

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