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बिहार विधानसभा चुनाव के माहौल में जातीय जनगणना का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। इसी बीच समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक नया सुझाव देते हुए कहा है कि निर्वाचन आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया में अगर एक कॉलम और जोड़ दिया जाए, तो जातीय जनगणना अपने आप पूरी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यह एक आसान और पारदर्शी तरीका है जिससे सरकार को देश के सामाजिक ढांचे का सटीक डेटा मिल सकता है।
अखिलेश यादव ने कहा कि जातीय जनगणना को लेकर विपक्ष लगातार मांग करता रहा है, लेकिन केंद्र सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठी है। उन्होंने कहा कि जब SIR के तहत देश के कई राज्यों में मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण किया जा रहा है, तो उसी प्रक्रिया में लोगों से उनकी जाति की जानकारी भी ली जा सकती है। इससे न तो कोई अतिरिक्त खर्च आएगा और न ही कोई नई प्रक्रिया शुरू करनी पड़ेगी।
उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर सरकार जातीय जनगणना से डर क्यों रही है? यदि सभी वर्गों का सटीक डेटा सामने आएगा, तो नीतियां और योजनाएं ज्यादा पारदर्शी बन सकेंगी। उन्होंने कहा कि विकास तभी संभव है जब सरकार यह जाने कि किस वर्ग को वास्तव में लाभ की जरूरत है और किन समुदायों तक योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं।
सपा प्रमुख ने आगे कहा कि बिहार ने पहले ही जातीय जनगणना का उदाहरण पेश किया है, जिससे राज्य को सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को समझने में मदद मिली। अब वक्त है कि केंद्र और अन्य राज्य सरकारें भी इस दिशा में कदम बढ़ाएं। अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि अगर केंद्र सरकार चाहे तो SIR को एक “डुअल पर्पज प्रोसेस” बना सकती है — यानी एक ही प्रक्रिया में मतदाता सूची के साथ जातीय आंकड़े भी एकत्रित किए जा सकते हैं।
इस बयान के बाद सियासी गलियारों में हलचल मच गई है। भाजपा नेताओं ने अखिलेश यादव के सुझाव को “राजनीतिक नौटंकी” करार दिया है। पार्टी प्रवक्ताओं का कहना है कि अखिलेश यादव सिर्फ चुनावी मौसम में जाति आधारित राजनीति को हवा देना चाहते हैं। उनका दावा है कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया पूरी तरह प्रशासनिक और संवैधानिक है, जिसमें जाति आधारित डेटा जोड़ना संभव नहीं है।
दूसरी ओर, विपक्षी दलों ने अखिलेश यादव के इस बयान का समर्थन किया है। कांग्रेस, आरजेडी और कुछ क्षेत्रीय दलों ने कहा कि जातीय जनगणना लोकतंत्र के लिए जरूरी है क्योंकि इससे नीति निर्माण में समावेशिता बढ़ेगी। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी कहा कि अखिलेश का सुझाव व्यावहारिक है और सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया वर्तमान में देश के 12 राज्यों में चल रही है, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं। इस प्रक्रिया के तहत मतदाता सूचियों की सटीकता जांची जा रही है और नए मतदाताओं को जोड़ा जा रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अखिलेश यादव का यह बयान सिर्फ एक प्रशासनिक सुझाव नहीं बल्कि एक राजनीतिक रणनीति भी है। क्योंकि 2026 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले जातीय समीकरणों को साधना सपा के लिए बेहद अहम माना जा रहा है।
वहीं, जनता के बीच भी इस मुद्दे पर चर्चाएं तेज हो गई हैं। कई सामाजिक संगठनों का कहना है कि जातीय जनगणना से देश के असमान वर्गों को अपनी वास्तविक स्थिति समझने में मदद मिलेगी। वहीं, कुछ लोगों ने आशंका जताई कि इससे समाज में विभाजन और जातिगत राजनीति को और बढ़ावा मिल सकता है।
हालांकि, अखिलेश यादव ने यह स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य समाज को बांटना नहीं बल्कि उसे समझना है। उन्होंने कहा कि डेटा से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि सच्चाई जानने से ही देश आगे बढ़ सकता है।
इस बीच निर्वाचन आयोग ने इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अखिलेश यादव का यह बयान आने वाले महीनों में राजनीतिक बहस का प्रमुख मुद्दा बन सकता है। बिहार चुनाव और आने वाले लोकसभा चुनाव के संदर्भ में यह सुझाव विपक्ष की रणनीति को नया मोड़ दे सकता है।

 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		






