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राजस्थान के प्रसिद्ध कोटा स्टोन उद्योग पर अब केंद्र सरकार की निगरानी का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। केंद्र सरकार ने खनन क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ाने और अवैध खनन पर रोक लगाने के उद्देश्य से कोटा स्टोन खदानों की देखरेख अपने अधिकार क्षेत्र में लेने का निर्णय लिया है। यह फैसला भले ही नियमन और सुरक्षा के दृष्टिकोण से अहम हो, लेकिन इससे जुड़े हजारों छोटे कारोबारियों और खदान मालिकों में बेचैनी बढ़ गई है।
राजस्थान के कोटा, झालावाड़, बारां और बूंदी जिलों में फैली कोटा स्टोन की खदानें देश के सबसे बड़े प्राकृतिक पत्थर उद्योगों में शामिल हैं। यहां से हर साल हजारों करोड़ रुपये का व्यापार होता है। अब केंद्र सरकार की नई नीति के तहत, इन खदानों की लाइसेंसिंग, सुरक्षा मानक, पर्यावरण अनुपालन और उत्पादन रिपोर्टिंग की सीधी निगरानी की जाएगी।
क्या हैं नए नियम
नए प्रावधानों के तहत, कोटा स्टोन खदानों को अपने उत्पादन, परिवहन और निर्यात की जानकारी ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करनी होगी। साथ ही, खदान मालिकों को अब पर्यावरण स्वीकृति और सुरक्षा ऑडिट हर छह महीने में करवाने होंगे। यह जिम्मेदारी पहले राज्य सरकार के अधीन थी, लेकिन अब इसका नियंत्रण केंद्र के खनन मंत्रालय और भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग (GSI) के पास होगा।
इन बदलावों से खदानों में पारदर्शिता तो बढ़ेगी, लेकिन छोटे और मध्यम स्तर के कारोबारियों के लिए यह एक आर्थिक बोझ बनकर उभर रहा है।
व्यापारियों में बढ़ी चिंता
कोटा स्टोन कारोबारी संघ के अध्यक्ष रामस्वरूप गुर्जर का कहना है,
“केंद्र सरकार का उद्देश्य भले ही खनन क्षेत्र को पारदर्शी बनाना हो, लेकिन जो नए प्रावधान जोड़े गए हैं, वे छोटे कारोबारियों के लिए भारी साबित होंगे। पहले से ही खदानों पर ईंधन, मशीनरी और मजदूरी की लागत बढ़ चुकी है, अब नए निरीक्षण और रिपोर्टिंग सिस्टम से खर्च और बढ़ जाएगा।”
व्यापारियों का यह भी कहना है कि नए नियमों के चलते लाइसेंस नवीनीकरण में देरी और भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ सकती है। हर छोटी खदान को अब हर तिमाही रिपोर्ट देनी होगी, जिसके लिए उन्हें तकनीकी सहायता और अतिरिक्त कर्मचारी रखने होंगे।
स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर
कोटा स्टोन उद्योग न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रमुख रोज़गार स्रोत है। इस उद्योग में सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 2 लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं। खदानों में मजदूरों से लेकर ट्रांसपोर्ट और कटिंग यूनिट्स तक, हर स्तर पर बड़ी संख्या में लोगों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है।
कई खदान मालिकों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार जल्द ही इन नियमों को व्यावहारिक नहीं बनाती, तो छोटे व्यवसाय बंद होने की नौबत आ सकती है। इससे रोजगार पर भी असर पड़ेगा।
सरकार का पक्ष – ‘पारदर्शिता और सुरक्षा सर्वोपरि’
वहीं, केंद्र सरकार का तर्क है कि इस फैसले का उद्देश्य उद्योग को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि उसे संगठित और पारदर्शी बनाना है। खनन मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि,
“राजस्थान में कई बार अवैध खनन और पर्यावरण उल्लंघन के मामले सामने आए हैं। अब डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम से इन पर अंकुश लगाया जा सकेगा। खदान मालिकों को भी लंबी अवधि में इसका फायदा मिलेगा।”
सरकार का यह भी कहना है कि नए सिस्टम से खदानों में सुरक्षा मानकों का पालन अनिवार्य होगा, जिससे दुर्घटनाओं में कमी आएगी।
उद्योग जगत की मांग – नीति में लचीलापन लाया जाए
कोटा स्टोन उद्योग से जुड़े कारोबारियों ने केंद्र सरकार से अपील की है कि इन नियमों को लागू करने से पहले छोटे खदान मालिकों को विशेष राहत दी जाए। उनका कहना है कि 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्र वाली खदानों के लिए रिपोर्टिंग और ऑडिटिंग की शर्तें सरल की जानी चाहिए।
कोटा स्टोन माइनर्स एसोसिएशन ने इस मुद्दे पर केंद्रीय खनन मंत्री को ज्ञापन भी सौंपा है। एसोसिएशन ने कहा है कि उद्योग पहले से ही मंदी और बढ़ती लागत से जूझ रहा है, ऐसे में नए नियम लागू करने से उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कमजोर हो जाएगी।
राजस्थान का कोटा स्टोन उद्योग न केवल देश के निर्माण क्षेत्र की रीढ़ है, बल्कि यह हजारों परिवारों के रोज़गार का आधार भी है। केंद्र सरकार की नई निगरानी व्यवस्था पारदर्शिता और सुरक्षा के लिहाज से जरूरी कदम है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है।

 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		





