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महाराष्ट्र में फसल बीमा योजना एक बार फिर विवादों में आ गई है। अकोला जिले में किसानों को भारी बारिश और ओलावृष्टि से फसल नुकसान के बाद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत मात्र ₹3, ₹5, ₹8 और ₹21 तक का मुआवजा दिया गया। इस “राहत राशि” को लेकर किसानों में गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने जिला कलेक्टर कार्यालय के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। किसानों ने सरकार और बीमा कंपनियों पर “किसानों का मज़ाक उड़ाने” का आरोप लगाया है।
प्रदर्शन के दौरान किसानों ने फसल बीमा प्रमाण पत्रों की प्रतियां हवा में लहराते हुए कहा कि यह राहत नहीं, बल्कि अपमान है। एक किसान ने बताया कि उन्होंने सोयाबीन और कपास की फसल में करीब 30 हजार रुपये तक का नुकसान झेला, लेकिन मुआवजे के रूप में केवल ₹5 मिले। उन्होंने कहा, “इतने में तो एक चाय का कप भी नहीं आता, फिर सरकार हमें राहत देने का दिखावा क्यों कर रही है?”
किसानों ने आरोप लगाया कि बीमा कंपनियां और सरकार एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टाल रही हैं, जबकि नुकसान झेलने वाले किसान दोनों के बीच पिस रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों ने मांग की कि बीमा राशि की गणना पारदर्शी तरीके से की जाए और हर किसान को वास्तविक नुकसान के आधार पर मुआवजा दिया जाए।
अकोला के अलावा वाशिम, बुलढाणा, यवतमाल और अमरावती जिलों से भी ऐसी ही शिकायतें सामने आई हैं। कई जगह किसानों को ₹10 से कम का मुआवजा दिया गया, जबकि कुछ किसानों को कोई भुगतान नहीं मिला। इस पर नाराजगी जताते हुए किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को “कागज़ी योजना” बताया और इसे बंद करने की मांग की।
प्रदर्शन कर रहे एक वरिष्ठ किसान नेता ने कहा, “सरकार किसानों की पीड़ा समझने के बजाय दिखावा कर रही है। बीमा कंपनियों ने मोटा प्रीमियम वसूला, लेकिन जब भुगतान की बारी आई तो किसानों को ₹3 का एसएमएस भेज दिया गया। यह सीधे तौर पर किसानों के साथ धोखा है।”
कलेक्टर कार्यालय के बाहर किसानों ने बीमा प्रमाणपत्रों को जमीन पर फेंकते हुए नारे लगाए — “तीन रुपये का मुआवजा नहीं चलेगा!”, “किसान अपमान बर्दाश्त नहीं करेगा!”। प्रशासन ने प्रदर्शन को देखते हुए मौके पर पुलिस बल तैनात किया, लेकिन विरोध शांतिपूर्ण रहा।
इस मामले में जिला प्रशासन ने कहा है कि फसल बीमा का भुगतान पूरी तरह तकनीकी प्रक्रिया पर आधारित है, जो सैटेलाइट डेटा और कृषि विभाग की रिपोर्टों पर निर्भर करता है। अधिकारियों ने यह भी कहा कि जिन किसानों को कम राशि मिली है, उनके मामलों की दोबारा जांच की जाएगी।
वहीं, राज्य के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दे दिए हैं। उन्होंने कहा कि “किसान का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अगर किसी स्तर पर गलती हुई है तो संबंधित बीमा कंपनी और अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी।”
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं से फसल को हुए नुकसान की भरपाई करना है। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब किसानों को मामूली राशि मिलने की शिकायतें सामने आई हों। पिछले साल भी नागपुर और विदर्भ क्षेत्र में कई किसानों को ₹2 से ₹10 तक का मुआवजा मिला था, जिस पर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा था।
राजनीतिक हलकों में इस मुद्दे पर हलचल मच गई है। विपक्षी दल कांग्रेस और राकांपा ने सरकार पर “किसानों के साथ धोखा” करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा कि “भारी बारिश से हजारों एकड़ फसल बर्बाद हुई, लेकिन सरकार किसानों को ₹3 दे रही है। यह किसान नहीं, पूरे महाराष्ट्र का अपमान है।”
सोशल मीडिया पर भी यह मामला तेजी से वायरल हो रहा है। कई लोगों ने व्यंग्य करते हुए लिखा, “₹3 का मुआवजा, और सरकार कहती है — किसान हमारा अन्नदाता है!” वहीं, कुछ यूजर्स ने सवाल उठाया कि अगर सरकार और बीमा कंपनियों को लाभ होता है, तो नुकसान का पूरा बोझ हमेशा किसान पर क्यों आता है।
अकोला के प्रदर्शन के बाद अब अन्य जिलों के किसान भी आंदोलन की तैयारी में हैं। किसान संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर 15 दिनों में मुआवजा राशि की समीक्षा और पुनर्गणना नहीं की गई, तो राज्यव्यापी आंदोलन किया जाएगा।
महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में यह मामला अब किसानों की आत्मसम्मान की लड़ाई बन गया है। सरकार की योजनाओं और जमीनी हकीकत के बीच का यह अंतर एक बार फिर उजागर हो गया है — जहां कागज़ पर राहत दी जाती है, लेकिन खेतों में उम्मीदें सूख जाती हैं।

 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		






