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महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों से पहले राज्य चुनाव आयोग ने एक बड़ा फैसला लिया है। अब मुंबई महानगरपालिका (BMC) सहित राज्य की अन्य महानगरपालिकाओं, नगरपालिकाओं, नगर परिषदों और नगर पंचायतों के चुनाव में उम्मीदवार अधिक राशि खर्च कर सकेंगे। चुनाव आयोग ने पार्षदों की खर्च सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये कर दी है।
चुनाव आयोग का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी सामग्रियों—जैसे प्रचार सामग्री, बैनर, पोस्टर, वाहन किराया, ईंधन, जनसंपर्क उपकरण, और डिजिटल प्रचार की लागत—में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। इसी कारण मौजूदा सीमा उम्मीदवारों के लिए व्यवहारिक नहीं रह गई थी। इसलिए अब नए निर्देशों के तहत उम्मीदवार अधिकतम 15 लाख रुपये तक खर्च कर पाएंगे।
मुंबई महानगरपालिका (BMC) जो देश की सबसे अमीर नगर निकाय है, वहां के पार्षद चुनाव हमेशा से ही अत्यधिक प्रतिस्पर्धी रहे हैं। 10 लाख रुपये की सीमा में चुनाव प्रबंधन करना मुश्किल माना जा रहा था, खासकर उस समय जब सोशल मीडिया और डिजिटल प्रचार के खर्च में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इस बदलाव से उम्मीदवारों को प्रचार अभियान को अधिक प्रभावी तरीके से संचालित करने में मदद मिलेगी।
इसी तरह, पुणे, नागपुर, ठाणे, नाशिक और औरंगाबाद महानगरपालिकाओं में भी चुनाव खर्च की सीमा में समानुपातिक वृद्धि की गई है। छोटे नगर निकायों जैसे नगर परिषद और नगर पंचायत चुनावों में भी खर्च की सीमा को बढ़ाया गया है, हालांकि इनकी राशि क्षेत्र की जनसंख्या और निर्वाचन क्षेत्र के आकार के अनुसार तय की जाएगी।
चुनाव आयोग के मुताबिक, यह संशोधन पारदर्शिता बनाए रखते हुए लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किया गया है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि उम्मीदवारों को अपने चुनाव खर्च का पूरा ब्यौरा निर्धारित प्रारूप में देना होगा और किसी भी प्रकार की गड़बड़ी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय चुनावी परिदृश्य पर व्यापक असर डालेगा। मुंबई, ठाणे और पुणे जैसे शहरी क्षेत्रों में चुनाव अब अधिक संसाधन-आधारित हो जाएंगे। जहां एक ओर यह बदलाव उम्मीदवारों के लिए राहत की खबर है, वहीं दूसरी ओर छोटे और सीमित संसाधन वाले प्रत्याशी इस बढ़ी हुई सीमा से असहज महसूस कर सकते हैं।
चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, स्थानीय निकायों के चुनाव अगले वर्ष के मध्य में प्रस्तावित हैं। इन चुनावों में बीएमसी, ठाणे और नाशिक जैसे प्रमुख नगर निकायों में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच जोरदार मुकाबला होने की संभावना है। महाराष्ट्र की राजनीति में बीएमसी का चुनाव हमेशा से अहम रहा है, क्योंकि यह न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि राजनीतिक शक्ति संतुलन के लिहाज से भी निर्णायक माना जाता है।
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना, भाजपा और कांग्रेस — सभी दलों ने इस बार बीएमसी चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। बढ़े हुए खर्च की सीमा के चलते अब उम्मीद है कि प्रचार अभियानों में डिजिटल माध्यमों, बड़े जनसंपर्क कार्यक्रमों और प्रचार सामग्रियों का उपयोग पहले से कहीं अधिक होगा।
वहीं, कुछ नागरिक संगठनों ने इस फैसले पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि खर्च की सीमा बढ़ने से राजनीति में पैसे का प्रभाव और बढ़ सकता है, जिससे सामान्य उम्मीदवारों के लिए प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाएगा। चुनाव सुधार कार्यकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि खर्च सीमा बढ़ाने के साथ-साथ चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता के लिए भी कड़े कदम उठाए जाएं।
चुनाव आयोग ने हालांकि यह स्पष्ट किया है कि खर्च सीमा बढ़ाना सिर्फ एक प्रशासनिक आवश्यकता थी, न कि किसी राजनीतिक दबाव का परिणाम। आयोग का कहना है कि वे प्रत्येक उम्मीदवार के खर्च की जांच करेंगे और नियमों का उल्लंघन पाए जाने पर कार्रवाई से पीछे नहीं हटेंगे।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, बीएमसी चुनाव में लगभग 227 सीटों पर मतदान होगा और प्रत्येक सीट पर औसतन 8 से 10 उम्मीदवार उतर सकते हैं। ऐसे में बढ़े हुए खर्च की सीमा से चुनावी माहौल और अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकता है।
यह निर्णय न केवल मुंबई बल्कि पूरे महाराष्ट्र में स्थानीय स्तर पर राजनीति की प्रकृति को प्रभावित करेगा। अब देखना यह होगा कि बढ़ी हुई सीमा से क्या चुनावी पारदर्शिता और निष्पक्षता में सुधार आता है या फिर यह सिर्फ संसाधन संपन्न उम्मीदवारों का खेल बनकर रह जाएगा।

 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		






