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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर बड़ा बयान देकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि “आरएसएस पर प्रतिबंध लगना चाहिए” और इसके समर्थन में उन्होंने देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के पुराने पत्र का हवाला दिया। खरगे ने कहा कि पटेल ने खुद आरएसएस की गतिविधियों को लेकर चेतावनी दी थी और देश की एकता पर इसके प्रभाव को लेकर चिंता जताई थी।
खरगे का यह बयान उस समय आया है जब देश में कई राज्यों में चुनावी माहौल गर्म है और राजनीतिक दल लगातार एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। कांग्रेस प्रमुख का यह वक्तव्य न केवल आरएसएस बल्कि भाजपा पर भी सीधा हमला माना जा रहा है, क्योंकि भाजपा संगठनात्मक रूप से संघ की विचारधारा से जुड़ी हुई है।
खरगे ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा —
“मेरा व्यक्तिगत विचार है कि आरएसएस पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। सरदार पटेल ने भी एक बार आरएसएस को बैन किया था और अपने पत्र में स्पष्ट लिखा था कि संघ की गतिविधियाँ देश के हित में नहीं हैं। हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्रता के बाद देश को जोड़ने में सरदार पटेल ने अहम भूमिका निभाई थी और वह इस बात को लेकर चिंतित थे कि विभाजन के बाद कुछ संगठनों की गतिविधियाँ समाज में नफरत फैला सकती हैं। खरगे ने कहा कि पटेल का वह पत्र आज भी प्रासंगिक है और हर भारतीय को पढ़ना चाहिए।
दरअसल, मल्लिकार्जुन खरगे ने जिस घटना का जिक्र किया, वह 1948 की है। महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। बाद में संघ ने संविधान का पालन करने का आश्वासन दिया, जिसके बाद 1949 में प्रतिबंध हटा लिया गया था। खरगे ने इसी ऐतिहासिक संदर्भ का उल्लेख करते हुए कहा कि “अगर तब देश के हित में यह कदम उठाया गया था, तो आज भी उस पर विचार होना चाहिए।”
खरगे के इस बयान के बाद भाजपा ने तुरंत पलटवार किया। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि “कांग्रेस हमेशा से हिंदू संगठनों के खिलाफ रही है। यह बयान बताता है कि कांग्रेस अब भी वोट बैंक की राजनीति से बाहर नहीं निकल पाई है। जिस संगठन ने सेवा कार्यों के जरिए देश के हर हिस्से में योगदान दिया है, उस पर सवाल उठाना राष्ट्रविरोधी सोच को दर्शाता है।”
वहीं, कांग्रेस ने अपने अध्यक्ष के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि खरगे का यह बयान उनके व्यक्तिगत विचारों पर आधारित जरूर है, लेकिन इसमें सच्चाई है कि आरएसएस की विचारधारा समाज में विभाजन पैदा करती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया —
“खरगे जी ने जो कहा, वह इतिहास पर आधारित है। सरदार पटेल के पत्र को कोई भी पढ़ सकता है, जिसमें उन्होंने संघ को लेकर अपनी चिंताएं जताई थीं। कांग्रेस आज भी उसी विचारधारा पर कायम है जो देश को जोड़ती है, तोड़ती नहीं।”
विश्लेषकों का मानना है कि खरगे का यह बयान आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। पार्टी चाहती है कि भाजपा और आरएसएस की विचारधारा को सीधे निशाने पर लिया जाए ताकि विपक्षी एकजुटता को नई दिशा मिल सके।
राजनीतिक विशेषज्ञ प्रवीण दुबे कहते हैं, “यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं बल्कि कांग्रेस की वैचारिक स्थिति को मजबूत करने का प्रयास है। पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर अपनी पकड़ मजबूत की है। अब कांग्रेस उस नैरेटिव को चुनौती देने की कोशिश कर रही है।”
आरएसएस की ओर से इस पूरे विवाद पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि “संघ राजनीति से ऊपर है और उसका उद्देश्य समाज सेवा है। ऐसे बयानों से संगठन के काम पर कोई फर्क नहीं पड़ता।”
खरगे के बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस तेज हो गई है। कई यूजर्स ने कहा कि कांग्रेस को पुराने मुद्दों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए, जबकि कुछ ने खरगे की तारीफ की कि उन्होंने साहसपूर्वक संघ पर सवाल उठाया।
इतिहासकारों के अनुसार, सरदार पटेल ने 11 सितंबर 1948 को संघ प्रमुख एम.एस. गोलवलकर को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने आरएसएस की गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि अगर संगठन देश के लोकतांत्रिक ढांचे में विश्वास नहीं रखता तो वह नुकसानदायक साबित हो सकता है।
मल्लिकार्जुन खरगे का यह बयान आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर राजनीतिक बहस को और तेज करेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस मुद्दे को आगे बढ़ाती है या इसे सिर्फ एक वैचारिक टिप्पणी के रूप में छोड़ देती है।

 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		






