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    सरदार पटेल की 150वीं जयंती: जब ‘देश की एकता’ के लिए पटेल ने प्रधानमंत्री पद की कुर्बानी दी, नेहरू के हठ के आगे झुका देश का ‘लौहपुरुष’

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    भारत के लौहपुरुष, सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर आज पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर देश के तमाम नेता और नागरिक एक स्वर में सरदार पटेल के योगदान को याद कर रहे हैं। 31 अक्टूबर का दिन सिर्फ सरदार पटेल की जन्मतिथि नहीं, बल्कि यह उस अदम्य इच्छाशक्ति और त्याग का प्रतीक है, जिसने भारत को एक सूत्र में पिरो दिया।

    गुजरात के नडियाद में 31 अक्टूबर 1875 को जन्मे सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने जीवन में कई कठिन फैसले लिए, लेकिन सबसे बड़ा फैसला उन्होंने तब लिया जब देश के पहले प्रधानमंत्री के चयन का समय आया। कांग्रेस के भीतर उस समय अधिकतर प्रदेश कांग्रेस समितियों ने पटेल के नाम का समर्थन किया था। 15 प्रदेश कांग्रेस समितियों में से 12 ने स्पष्ट रूप से वल्लभभाई पटेल को अपना नेता चुना था। लेकिन अंततः जवाहरलाल नेहरू के हठ और महात्मा गांधी के आग्रह पर पटेल ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ से खुद को पीछे हटा लिया।

    ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू उस समय इस बात पर अड़े थे कि या तो उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाए, या वे सरकार में शामिल नहीं होंगे। गांधीजी के सामने स्थिति बेहद जटिल थी। वह जानते थे कि पटेल संगठन के भीतर सबसे अधिक लोकप्रिय और सक्षम नेता हैं, लेकिन राष्ट्रीय एकता और पार्टी में सामंजस्य बनाए रखने के लिए उन्होंने पटेल से त्याग करने का आग्रह किया। पटेल ने देशहित में इसे स्वीकार कर लिया और अपने सपनों को राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।

    यही वह क्षण था जिसने भारत के इतिहास की दिशा तय की। पटेल ने प्रधानमंत्री पद खो दिया, लेकिन बदले में उन्हें मिला ‘लौहपुरुष’ का दर्जा — एक ऐसा नेता जिसने 562 रियासतों को एक झंडे के नीचे लाकर भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाया।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल को हमेशा “राष्ट्र की एकता का निर्माता” कहा है। हर साल 31 अक्टूबर को देश ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाता है। गुजरात के नर्मदा जिले में स्थित ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ — दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा — पटेल के इसी त्याग और दृढ़ निश्चय का प्रतीक है। मोदी ने 150वीं जयंती पर अपने संबोधन में कहा, “अगर आज भारत एक है, तो उसके पीछे सरदार पटेल की दूरदृष्टि और अटूट समर्पण है। उन्होंने अपने निजी महत्वाकांक्षा को राष्ट्रहित में कुर्बान कर दिया।”

    सरदार पटेल ने देश की एकता को बनाए रखने के लिए कठोर निर्णय लेने से कभी परहेज नहीं किया। हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी रियासतों को भारत में मिलाने में उनकी भूमिका निर्णायक रही। उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि भारत की संप्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। उनके इसी संकल्प ने उन्हें “भारत का लौहपुरुष” बना दिया।

    इतिहासकारों का कहना है कि अगर पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री बने होते, तो देश की प्रशासनिक संरचना और भी मजबूत होती। उन्होंने स्वतंत्र भारत की नौकरशाही की नींव रखी और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) व भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।

    आज जब देश उनकी 150वीं जयंती मना रहा है, तब सरदार पटेल की वही भावना — “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” — पहले से भी अधिक प्रासंगिक है। विभाजन और राजनीतिक मतभेदों के दौर में उनका संदेश याद दिलाता है कि राष्ट्रहित सबसे ऊपर है।

    सरदार पटेल का जीवन त्याग, अनुशासन और समर्पण की मिसाल है। उन्होंने साबित किया कि सच्चे नेता वह नहीं होते जो पद की चाह रखें, बल्कि वे होते हैं जो देश की एकता के लिए अपना स्वार्थ त्याग दें। नेहरू के हठ के बावजूद पटेल ने प्रधानमंत्री पद से पीछे हटकर दिखाया कि भारत की सेवा उनके लिए किसी भी पद से बढ़कर थी।

    आज जब पूरा भारत “रन फॉर यूनिटी” के साथ उनके सम्मान में दौड़ रहा है, तो यह केवल एक आयोजन नहीं बल्कि उस महान आत्मा को श्रद्धांजलि है जिसने भारत को “अखंड” बनाया। सरदार पटेल का जीवन हमें सिखाता है — सत्ता का नहीं, सेवा का मार्ग ही सच्चे भारत का मार्ग है।

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