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देशभर में बढ़ते आवारा कुत्तों के हमलों पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने शुक्रवार को केंद्र सरकार और राज्यों को फटकार लगाते हुए कहा कि अब राज्यों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत पेशी से राहत देने की मांग की थी।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने स्पष्ट कहा कि यह मामला जनहित से जुड़ा है और राज्यों का रवैया बिल्कुल गैर-जिम्मेदाराना है। अदालत ने कहा कि “राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं कर रहीं, इसलिए अब संबंधित मुख्य सचिवों को खुद आकर बताना होगा कि अनुपालन हलफनामे क्यों दाखिल नहीं किए गए।”
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिए गए आदेश में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा था कि वे अपने-अपने इलाकों में आवारा कुत्तों की संख्या, टीकाकरण अभियान, नसबंदी प्रक्रिया और नागरिकों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों का पूरा ब्यौरा अदालत में दाखिल करें। लेकिन अब तक अधिकांश राज्यों ने इस दिशा में कोई ठोस रिपोर्ट नहीं दी है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि मुख्य सचिवों की व्यक्तिगत पेशी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि राज्य सरकारें संबंधित विभागों के माध्यम से रिपोर्ट तैयार कर रही हैं। लेकिन अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि “जब तक शीर्ष अधिकारी जवाबदेही नहीं लेंगे, तब तक आदेशों का सही पालन नहीं होगा।”
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा —
“यह कोई मामूली मामला नहीं है। देशभर में लोग आवारा कुत्तों के हमलों का शिकार हो रहे हैं। छोटे बच्चे, बुजुर्ग और राहगीर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। अगर राज्य सरकारें इस पर गंभीर नहीं हैं तो अदालत को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय तंत्र (Coordination Mechanism) तैयार करना चाहिए ताकि सभी राज्यों में एक समान नीति लागू की जा सके। अदालत ने सवाल उठाया कि इतने सालों से दिए जा रहे निर्देशों के बावजूद अब तक कोई ठोस एक्शन प्लान क्यों नहीं बनाया गया।
इस मामले में केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों में आवारा कुत्तों के हमले लगातार सुर्खियों में रहे हैं। हाल के महीनों में कई राज्यों से बच्चों पर कुत्तों के हमलों की दर्दनाक घटनाएँ सामने आई हैं। अदालत ने इन घटनाओं को “मानवता के लिए गंभीर खतरा” बताते हुए कहा कि “सरकारें सिर्फ कागजी रिपोर्ट देने में व्यस्त हैं, जमीन पर कोई सुधार नहीं दिख रहा।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई से पहले सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर कोई राज्य इस आदेश की अवहेलना करता है, तो यह अवमानना (Contempt of Court) का मामला माना जाएगा।
इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी पूछा कि जानवरों के प्रति संवेदनशीलता और नागरिकों की सुरक्षा दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। अदालत ने कहा कि यह जरूरी है कि पशु अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ मानव जीवन की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाए।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी कहा कि नगर निगम और स्थानीय निकायों को केवल “कुत्ते पकड़ने और छोड़ने” की प्रक्रिया पर नहीं रुकना चाहिए, बल्कि टीकाकरण और नसबंदी की गति तेज करनी होगी।
इस मामले में अदालत ने 15 नवंबर 2025 की अगली तारीख तय की है, जिसमें सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को दिल्ली आकर अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख साफ संकेत देता है कि अब सरकारों को “आवारा कुत्तों की समस्या” को हल्के में नहीं लेना होगा। अदालत चाहती है कि इस मुद्दे पर ठोस, दीर्घकालिक और मानवीय नीति बनाई जाए जिससे न तो नागरिकों की सुरक्षा खतरे में पड़े और न ही जानवरों के अधिकारों का उल्लंघन हो।
देशभर में इस आदेश के बाद नागरिकों ने राहत की सांस ली है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने सुप्रीम कोर्ट की सराहना करते हुए कहा कि “अब शायद इस समस्या पर सरकारें गंभीरता से कदम उठाएं।” वहीं, कुछ पशु अधिकार संगठनों ने कोर्ट से अपील की है कि समाधान ऐसा निकाला जाए जो “संवेदनशील और वैज्ञानिक” हो।
अगली सुनवाई में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकारें अदालत के निर्देशों पर क्या जवाब देती हैं और क्या वाकई आवारा कुत्तों की समस्या पर कोई ठोस नीति सामने आती है या नहीं।

 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		






