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भारत में हाल ही में सामने आए डिजिटल अरेस्ट स्कैम ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को ‘चौंकाने वाला’ बताया है और सरकार को इस ठगी कांड में शामिल साइबर अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। अधिकारियों के अनुसार, इस स्कैम में भोले-भाले लोगों से 3000 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की गई है।
डिजिटल अरेस्ट स्कैम के तहत अपराधी खुद को सरकारी अधिकारी या बैंक कर्मचारी बताकर लोगों को डराते और धमकाते हैं। उन्होंने झूठे कानूनी नोटिस, गिरफ्तारी की धमकी और जाली दस्तावेजों के माध्यम से पीड़ितों को ठगने की योजना बनाई। आम नागरिकों में भय फैलाकर उन्हें अपनी जमा पूंजी या बैंक खाते के विवरण अपराधियों के हाथों सौंपने पर मजबूर किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह कांड केवल साइबर अपराध नहीं बल्कि जनता की वित्तीय सुरक्षा पर बड़ा हमला है। न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि वे तुरंत प्रभाव से इस घोटाले की जांच करें और दोषियों को कानूनी रूप से जवाबदेह ठहराएं।
सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सख्त और त्वरित कार्रवाई आवश्यक है। इसमें साइबर अपराधियों के ऑनलाइन लेनदेन की निगरानी, उनके डिजिटल ठिकानों की पहचान और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के जरिए उन्हें गिरफ्तार करना शामिल है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़ितों को वित्तीय और मानसिक राहत प्रदान करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं।
विशेषज्ञों के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट स्कैम जैसी घटनाएं साइबर जागरूकता की कमी का परिणाम हैं। कई लोग तकनीकी रूप से सशक्त न होने के कारण झूठे संदेश, कॉल और ईमेल में फंस जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि इस प्रकार के स्कैम से निपटने के लिए जनता को शिक्षित और जागरूक करना भी जरूरी है।
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि अब तक 3000 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की पुष्टि हुई है और इसमें और भी मामलों की जांच जारी है। यह स्कैम मुख्य रूप से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से अंजाम दिया गया। अपराधियों ने अपने नेटवर्क का उपयोग करके लाखों लोगों को निशाना बनाया और उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर किया।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में दोषियों को सख्त सजा और संपत्ति की जब्ती की जाए ताकि भविष्य में इस तरह के साइबर अपराध की घटनाओं को रोका जा सके। न्यायालय ने कहा कि डिजिटल और साइबर अपराध पर नजर रखना केवल पुलिस और न्यायपालिका का काम नहीं बल्कि सभी सरकारी विभागों और वित्तीय संस्थानों की जिम्मेदारी है।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के स्कैम से निपटने के लिए तकनीकी समाधान जैसे ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर, डिजिटल फॉरेंसिक और बैंकिंग सुरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करना होगा। इसके साथ ही, लोगों को चेतावनी और सलाह देना जरूरी है कि वे किसी भी अनजान कॉल या ईमेल में व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी साझा न करें।
कुल मिलाकर, डिजिटल अरेस्ट स्कैम सुप्रीम कोर्ट के लिए चिंता का विषय बन गया है। न्यायालय ने सरकार को साफ निर्देश दिए हैं कि 3000 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी करने वाले अपराधियों को तुरंत पकड़कर कानून के तहत सजा दिलाई जाए। साथ ही, जनता को इस प्रकार के साइबर अपराध से सुरक्षित रखने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाए।
इस मामले में अब केंद्र और राज्य सरकारों के कदम और कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों के प्रभाव पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं। इस घटना ने यह संदेश दिया है कि साइबर अपराध में तेजी से बढ़ती घटनाओं के खिलाफ सख्ती और तकनीकी तैयारियां आवश्यक हैं, ताकि भविष्य में आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।








