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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और राज्य की राजनीति एक बार फिर से गर्मा गई है। इस बार की सबसे चर्चित सीटों में से एक है हरनौत विधानसभा, जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गढ़ माना जाता है। यहां से जनता दल यूनाइटेड (JDU) के हरिनारायण सिंह लगातार तीन बार विधायक रह चुके हैं और अब चौथी बार मैदान में उतरकर ‘जीत का चौका’ लगाने की कोशिश में हैं।
हालांकि, इस बार का मुकाबला आसान नहीं दिख रहा है। कांग्रेस, जनसुराज पार्टी (प्रशांत किशोर की पार्टी) और राजद (RJD) भी इस सीट पर अपनी ताकत आजमा रही हैं। जनता में इस बार मुद्दों और बदलाव की चर्चा तेज है, जिससे हरनौत की लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है।
जानकारी के मुताबिक, JDU ने पहले हरिनारायण सिंह का टिकट काटने का विचार किया था, लेकिन अंतिम समय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हस्तक्षेप से उनका नाम दोबारा उम्मीदवारों की सूची में शामिल कर लिया गया। नीतीश कुमार का हरनौत से गहरा नाता रहा है — वे खुद इसी सीट से राजनीति की शुरुआत कर चुके हैं। यही वजह है कि JDU के लिए यह सीट “प्रतिष्ठा की लड़ाई” बन गई है।
हरिनारायण सिंह का राजनीतिक सफर भी काफी रोचक रहा है। वे 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में लगातार जीत दर्ज कर चुके हैं। उनकी छवि एक जमीनी नेता की है, जो संगठन से जुड़ाव और विकास कार्यों के जरिए जनता तक पहुंचने का दावा करते हैं। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि पिछले दस वर्षों में क्षेत्र के विकास की रफ्तार धीमी पड़ी है और जनता अब बदलाव चाहती है।
कांग्रेस ने इस बार युवा चेहरे पर दांव लगाने का फैसला किया है। पार्टी का दावा है कि हरनौत में लोगों का झुकाव अब विकल्प की ओर है और इस बार जनता “विकास के साथ जवाबदेही” चाहती है। वहीं, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने यहां अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। जनसुराज की रैलियों और जनसंवाद कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में युवा जुड़ रहे हैं। प्रशांत किशोर ने अपने हालिया दौरे में हरनौत को “परिवर्तन का प्रतीक” बताया था।
स्थानीय समीकरणों की बात करें तो हरनौत में कुर्मी, यादव और अतिपिछड़ा वर्ग की आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है। यही वजह है कि सभी पार्टियां इस वर्ग को लुभाने में जुटी हैं। JDU का परंपरागत वोटबैंक अब तक मजबूती से टिका रहा है, लेकिन जनसुराज के बढ़ते जनाधार ने समीकरणों में नई चुनौती खड़ी कर दी है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, हरनौत सीट पर इस बार तीन-तरफा मुकाबले की संभावना है। JDU जहां अपने “विकास मॉडल” और नीतीश कुमार की छवि पर भरोसा कर रही है, वहीं कांग्रेस “स्थानीय मुद्दों” को उठाकर जनसमर्थन जुटाने की कोशिश में है। जनसुराज पार्टी युवाओं और पहली बार वोट देने वाले मतदाताओं को लक्ष्य बना रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. अरविंद मिश्रा का कहना है, “हरनौत का चुनाव सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह नीतीश कुमार के नेतृत्व की परीक्षा भी है। अगर JDU यहां कमजोर पड़ी तो यह पार्टी के भविष्य के लिए संकेतक साबित होगा।”
वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बार वोट विकास और रोजगार पर पड़ेगा। एक किसान ने बताया, “हमने हर बार नीतीश जी के उम्मीदवार को जिताया है, लेकिन इस बार सड़क और सिंचाई की हालत खराब है। हम सोच-समझकर वोट देंगे।”
हरनौत में प्रचार अभियान जोरों पर है। हरिनारायण सिंह लगातार गांव-गांव जाकर जनता से संवाद कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस और जनसुराज ने युवाओं को जोड़ने के लिए डिजिटल कैंपेन शुरू किया है। RJD ने भी कुछ बूथों पर संगठन मजबूत करने की दिशा में काम किया है।
इस बार की वोटिंग में हरनौत के मतदाताओं के सामने कई विकल्प हैं। सवाल यह है कि क्या JDU का यह गढ़ बरकरार रहेगा, या फिर कांग्रेस और जनसुराज इस किले में सेंध लगाने में कामयाब होंगे?
नतीजा जो भी हो, इतना तय है कि हरनौत विधानसभा सीट इस बार बिहार की सियासत का केंद्र बनने जा रही है। यहां का फैसला न केवल एक उम्मीदवार की किस्मत तय करेगा, बल्कि यह भी बताएगा कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता अब भी पहले जैसी बरकरार है या नहीं।








