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    केस जीतने से ज्यादा जरूरी है न्याय मिलना: सुप्रीम कोर्ट के अगले चीफ जस्टिस सूर्यकांत की कानून छात्रों को नसीहत

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    सुप्रीम कोर्ट के अगले चीफ जस्टिस जस्टिस सूर्यकांत ने कानून की पढ़ाई कर रहे छात्रों को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि किसी भी केस को जीतना या हारना उतना मायने नहीं रखता, जितना यह मायने रखता है कि न्याय हुआ या नहीं। उन्होंने न्याय को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि एक सच्चा वकील वही है जो अदालत में केवल अपने मुवक्किल की जीत नहीं, बल्कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए लड़ता है।

    दिल्ली स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि “कानून का असली उद्देश्य न्याय है, न कि केवल तकनीकी जीत या हार।” उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे कोर्ट में अपने करियर की शुरुआत करते हुए यह याद रखें कि कानून का इस्तेमाल केवल अपनी सुविधा के लिए नहीं, बल्कि समाज के सुधार और न्याय के लिए होना चाहिए।

    जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आज के समय में वकीलों और न्यायाधीशों की भूमिका पहले से कहीं अधिक जिम्मेदारी भरी हो गई है। तकनीक, सोशल मीडिया और जनमत के दौर में न्यायिक संस्थानों की प्रतिष्ठा को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है। उन्होंने कहा कि “कानून के छात्र भविष्य में इस न्यायिक प्रणाली की रीढ़ होंगे, इसलिए उनमें संवेदनशीलता, धैर्य और ईमानदारी का होना बेहद जरूरी है।”

    उन्होंने यह भी कहा कि मुकदमों को केवल कोर्ट रूम की बहस या तर्क के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। “हर केस एक व्यक्ति की जिंदगी, उसकी उम्मीदों और उसके संघर्ष से जुड़ा होता है। अगर हम यह समझ लें कि कोर्ट का हर निर्णय किसी इंसान के भविष्य को प्रभावित करता है, तो हम न्याय के असली अर्थ को समझ पाएंगे।”

    जस्टिस सूर्यकांत ने छात्रों को अति आत्मविश्वास से बचने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि “ज्ञान जरूरी है, लेकिन विनम्रता उससे भी ज्यादा जरूरी है। जब आप कानून की गहराई में उतरेंगे तो समझेंगे कि हर नियम, हर प्रावधान एक मानवीय मूल्य से जुड़ा हुआ है। इसलिए किसी केस में जीत को ही सफलता का पैमाना न मानें। न्याय मिलना ही सबसे बड़ी उपलब्धि है।”

    कार्यक्रम के दौरान उन्होंने न्यायपालिका में बढ़ती पारदर्शिता और तकनीक के इस्तेमाल पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि आने वाले वर्षों में कोर्ट प्रक्रियाओं में डिजिटल तकनीक का दखल और बढ़ेगा, जिससे न्याय सुलभ और तेज़ हो सकेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि तकनीक का प्रयोग जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए ताकि न्याय के मूल स्वरूप पर कोई असर न पड़े।

    जस्टिस सूर्यकांत के इस वक्तव्य को न्यायिक जगत में बेहद सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। कई वरिष्ठ वकीलों ने इसे आने वाले समय के लिए प्रेरणादायक बताया है। उनका कहना है कि जस्टिस सूर्यकांत की सोच बताती है कि भारतीय न्यायपालिका केवल तकनीकी तर्कों पर नहीं, बल्कि नैतिकता और मानवीय मूल्यों पर आधारित दिशा में आगे बढ़ रही है।

    कार्यक्रम के अंत में छात्रों ने उनसे कई सवाल पूछे, जिनका उन्होंने धैर्यपूर्वक जवाब दिया। उन्होंने कहा कि “कानून की पढ़ाई केवल किताबों से नहीं, बल्कि समाज को देखकर सीखिए। एक अच्छे वकील को अदालत से पहले इंसान होना चाहिए।”

    जस्टिस सूर्यकांत की यह प्रेरक बात कानून के विद्यार्थियों के लिए एक सीख है कि अदालत की दीवारों के भीतर न्याय सिर्फ एक फैसला नहीं होता, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी होती है।

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