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भारत की परमाणु शक्ति को लेकर दुनिया भर में चर्चाएं तेज हो गई हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान की लगातार मिल रही धमकियों के बीच अब खबर सामने आई है कि भारत अपनी रक्षा क्षमता को इतना मजबूत बना रहा है कि वह किसी भी परिस्थिति में दुश्मन को जवाब देने में सक्षम है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत ने अब तक इतनी उन्नत न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी विकसित कर ली है कि वह 1000 से अधिक परमाणु बमों के निर्माण की क्षमता हासिल कर चुका है।
अमेरिका की डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी और “फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स” की रिपोर्ट के अनुसार, भारत न केवल अपने परमाणु हथियारों के भंडार को लगातार आधुनिक बना रहा है, बल्कि मिसाइल डिलीवरी सिस्टम को भी नई तकनीक से लैस कर रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के पास अब तीन स्तरीय परमाणु हमला प्रणाली है — यानी ज़मीन से, हवा से और समुद्र से परमाणु हमला करने की पूरी क्षमता।
पाकिस्तान, जो दशकों से भारत के खिलाफ परमाणु हमले की धमकियां देता आया है, उसकी तुलना में भारत की ताकत अब कई गुना अधिक मानी जा रही है। भारत के पास फिलहाल 160 से ज्यादा तैनात करने योग्य परमाणु हथियार हैं, जबकि पाकिस्तान के पास लगभग 170 बताए जाते हैं। लेकिन फर्क सिर्फ संख्या का नहीं, बल्कि तकनीक का है। भारत की मिसाइलें और रिएक्टर सिस्टम अब अत्याधुनिक और अधिक विनाशकारी क्षमता वाले बन चुके हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत की “एटॉमिक एनर्जी कमिशन” और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से काम करते हुए ऐसी परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता तैयार की है, जो आने वाले वर्षों में 1000 परमाणु वारहेड्स तक का निर्माण संभव बना सकती है। यह वही क्षमता है जिसे अमेरिका ने पहले ही अपने रिपोर्ट में “साइलेंट प्रोग्रेस” कहा था — यानी भारत ने बिना किसी प्रचार के धीरे-धीरे खुद को दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु शक्तियों में शामिल कर लिया है।
भारत की परमाणु नीति हमेशा से “नो फर्स्ट यूज़ (NFU)” यानी पहले इस्तेमाल न करने के सिद्धांत पर आधारित रही है। लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने अपने सैन्य ढांचे को इतना सशक्त बना लिया है कि यदि पाकिस्तान या कोई अन्य देश हमला करने की सोचता भी है, तो उसे मिनटों में जवाब मिलेगा।
भारत की “अग्नि” श्रृंखला की मिसाइलें जैसे अग्नि-V और अग्नि-P, 5000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक सटीक प्रहार करने में सक्षम हैं। वहीं, समुद्र से दागे जाने वाले के-15 और के-4 मिसाइल सिस्टम भारत की “साइलेंट न्यूक्लियर डिफेंस लाइन” माने जाते हैं। ये मिसाइलें किसी भी दिशा से दुश्मन के ठिकानों को मिनटों में नेस्तनाबूद कर सकती हैं।
भारत के पास मौजूद परमाणु पनडुब्बियां (Nuclear Submarines) उसकी तीसरी और सबसे घातक न्यूक्लियर लेयर हैं। INS अरिहंत और INS अरिघाट जैसी पनडुब्बियां गहरे समुद्र में रहते हुए दुश्मन पर हमला करने में सक्षम हैं। यह क्षमता पाकिस्तान या चीन के पास इतनी विकसित नहीं है, जिससे भारत को रणनीतिक बढ़त मिलती है।
रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि भारत के पास इतना यूरेनियम और प्लूटोनियम भंडार है, जिससे वह आने वाले वर्षों में 1000 से अधिक परमाणु वारहेड्स तैयार कर सकता है। भारत का फोकस सिर्फ संख्या पर नहीं, बल्कि क्वालिटी पर है। यानी हथियार कम हों लेकिन अत्याधुनिक और सटीक हों।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और तकनीकी सीमाओं के कारण उसकी परमाणु विकास रफ्तार अब काफी धीमी हो चुकी है। जबकि भारत ने अपने सिविल न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम को भी रक्षा जरूरतों के साथ जोड़ दिया है। अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे देशों के साथ किए गए न्यूक्लियर समझौते ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई तकनीकों तक पहुंच दी है।
भारत की इस प्रगति से पाकिस्तान के साथ-साथ चीन में भी चिंता बढ़ गई है। वहीं, अमेरिकी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत अपने परमाणु हथियारों की सुरक्षा और कमांड कंट्रोल सिस्टम को विश्व के सर्वोत्तम मानकों के अनुसार बनाए हुए है, जिससे किसी भी आकस्मिक स्थिति में गलत इस्तेमाल की संभावना बेहद कम है।
दरअसल, यह पूरा घटनाक्रम तब चर्चा में आया जब पाकिस्तान के कुछ सैन्य विश्लेषकों ने दावा किया कि भारत “न्यूक्लियर सुपरपावर” बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इस पर अमेरिकी रक्षा रिपोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से पुष्टि करते हुए कहा कि भारत ने पिछले एक दशक में अपने न्यूक्लियर इन्फ्रास्ट्रक्चर में सबसे तेज़ विस्तार किया है।
अंततः, भारत की यह परमाणु नीति स्पष्ट करती है कि वह युद्ध नहीं, बल्कि शांति में विश्वास रखता है। लेकिन यदि कभी कोई दुश्मन उसकी सीमाओं या संप्रभुता को चुनौती देता है, तो भारत के पास ऐसा “न्यूक्लियर जवाब” होगा जो किसी भी विरोधी देश को इतिहास बना देगा।

		
		
		
		
		
		
		
		
		






