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मुंबई के दादर में स्थित ऐतिहासिक कबूतरखाना को बंद किए जाने के विरोध में एक जैन साधु ने अनिश्चितकालीन उपवास शुरू किया है। साधु का कहना है कि कबूतरखाना न केवल पक्षियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल है, बल्कि यह शहर की सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है। उनके उपवास ने स्थानीय लोगों और पक्षी प्रेमियों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है।
दादर कबूतरखाना, जो दशकों से स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, पिछले कुछ समय से बंद होने के खतरे में है। स्थानीय नगरपालिका और प्रशासन ने सुरक्षा और निर्माण कारणों का हवाला देते हुए इसे बंद करने का निर्णय लिया। इस फैसले के खिलाफ जैन साधु ने सार्वजनिक रूप से विरोध जताया और उपवास की घोषणा की।
साधु का कहना है कि कबूतरखाना केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह मुंबई की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है। उन्होंने कहा कि यदि यह स्थल बंद हुआ, तो यह शहर में पक्षियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए बड़ा नुकसान होगा। उपवास के दौरान साधु ने प्रशासन से आग्रह किया है कि वे निर्णय पर पुनर्विचार करें और कबूतरखाने को संरक्षित किया जाए।
स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता भी इस उपवास के समर्थन में खड़े हुए हैं। उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि कबूतरखाना बंद करने के बजाय इसे सुधारने और सुरक्षित बनाए रखने के उपाय किए जाएं। सोशल मीडिया पर भी इस मामले ने व्यापक चर्चा शुरू कर दी है और कई लोग प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी क्षेत्रों में ऐसे प्राकृतिक स्थल तेजी से खत्म हो रहे हैं। दादर कबूतरखाना जैसे स्थल न केवल पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं, बल्कि बच्चों और युवाओं के लिए प्रकृति और पक्षियों के अध्ययन का अवसर भी प्रदान करते हैं। इसके बंद होने से शहर में जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
साधु ने स्थानीय प्रशासन से सीधे संपर्क बनाने की कोशिश की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि उनका उपवास शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेगा जब तक कि प्रशासन इस मुद्दे पर सकारात्मक निर्णय नहीं लेता। उनका उद्देश्य केवल कबूतरखाने की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, न कि किसी राजनीतिक विवाद को जन्म देना।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रशासन ने कुछ विकल्प सुझाए हैं, जैसे कि कबूतरखाने के स्थान पर नया संरक्षित क्षेत्र बनाना, लेकिन साधु और समर्थक इसे पर्याप्त नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि मौजूदा स्थल की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को किसी भी नई योजना में पूरी तरह नहीं बदला जा सकता।
मुंबई में पक्षी प्रेमियों और पर्यावरण संगठनों के लिए यह मामला चिंताजनक हो गया है। वे साधु के साथ मिलकर एक संगठित आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि प्रशासन को दिखाया जाए कि कबूतरखाना बंद करना केवल एक इमारत बंद करने जैसा नहीं है, बल्कि शहर की जैविक और सांस्कृतिक विरासत के साथ खिलवाड़ है।
इस घटना ने मुंबईवासियों के बीच जागरूकता भी बढ़ाई है। लोगों ने स्थानीय प्रशासन से अनुरोध किया है कि वे शहर के प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्थलों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं। साधु का यह उपवास इस दिशा में एक प्रतीकात्मक आंदोलन बन गया है, जो शहर और पर्यावरण के प्रति नागरिकों की जिम्मेदारी की याद दिलाता है।

		
		
		
		
		
		
		
		
		






