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    महाराष्ट्र के अर्ध-शहरी इलाकों में बढ़त की जंग: महायुति और महा विकास आघाड़ी आमने-सामने

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    महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर मुकाबला दिलचस्प मोड़ लेता दिख रहा है। राज्य के अर्ध-शहरी इलाकों में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले महायुति (भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी) तथा महा विकास आघाड़ी (शरद पवार की एनसीपी, उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना और कांग्रेस) ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। दोनों ही गठबंधन इन इलाकों को निर्णायक मान रहे हैं, क्योंकि यही सीटें सत्ता का संतुलन तय कर सकती हैं।

    राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अर्ध-शहरी क्षेत्र महाराष्ट्र की राजनीति में “किंगमेकर” की भूमिका निभाते हैं। ग्रामीण मतदाता जहां परंपरागत रूप से स्थानीय नेतृत्व के प्रभाव में वोट डालते हैं, वहीं अर्ध-शहरी मतदाता विकास, रोजगार और मूलभूत सुविधाओं के मुद्दों पर अपना फैसला देते हैं। यही कारण है कि बीजेपी और एमवीए दोनों इन क्षेत्रों में अपने अभियान पर खास ध्यान दे रहे हैं।

    महायुति का फोकस विकास और स्थिरता पर
    महायुति ने अपने अभियान की दिशा “विकास और स्थिरता” पर केंद्रित की है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में नासिक, पुणे, नागपुर और औरंगाबाद के आसपास के अर्ध-शहरी इलाकों का दौरा किया, जहां उन्होंने पिछले पांच वर्षों में राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई सड़कों, औद्योगिक कॉरिडोर और बिजली वितरण परियोजनाओं को अपनी उपलब्धि के रूप में गिनाया।

    एकनाथ शिंदे ने जनता को भरोसा दिलाया कि महायुति की सरकार महाराष्ट्र को “औद्योगिक राजधानी” बनाने की दिशा में काम कर रही है। वहीं, अजीत पवार ने अपने गुट के समर्थन में कहा कि “यह सरकार किसानों और छोटे व्यापारियों दोनों के लिए भरोसेमंद साथी है।”

    महा विकास आघाड़ी का पलटवार: ‘जनता बदलाव चाहती है’
    दूसरी ओर, महा विकास आघाड़ी (MVA) महायुति सरकार को “जनता से कटे हुए” शासन के रूप में पेश कर रही है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि “यह सरकार सिर्फ ठेकेदारों और उद्योगपतियों की सुनती है, जबकि जनता बिजली, महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है।”

    शरद पवार ने पुणे के पास एक सभा में कहा कि “अर्ध-शहरी इलाकों में युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। निवेश के दावे सिर्फ कागजों पर हैं।” कांग्रेस नेता नाना पटोले ने भी बेरोजगारी और किसानों की आय के मुद्दे को प्रमुख बनाकर महायुति को घेरा।

    राजनीतिक समीकरणों में उलटफेर की आशंका
    अर्ध-शहरी इलाकों में वोटरों की मानसिकता ग्रामीण और शहरी दोनों के बीच संतुलित रहती है। नासिक, ठाणे, कोल्हापुर, नागपुर और औरंगाबाद जैसे जिलों में करीब 60 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां परिणाम अर्ध-शहरी मतदाताओं के झुकाव पर निर्भर करते हैं।

    2024 के लोकसभा चुनाव में इन क्षेत्रों में बीजेपी-शिवसेना (शिंदे गुट) को बढ़त मिली थी, लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों में एमवीए ने अच्छा प्रदर्शन किया था। इस वजह से अब दोनों गठबंधन पूरी रणनीति के साथ मैदान में उतर चुके हैं।

    जनता के मुद्दे और सोशल मीडिया की भूमिका
    दोनों पक्षों ने सोशल मीडिया को भी अपनी राजनीतिक रणनीति का अहम हिस्सा बना लिया है। बीजेपी और महायुति जहां “विकास के काम” गिनाने वाले वीडियो साझा कर रही हैं, वहीं एमवीए “सरकार की नाकामियों” को उजागर करने वाले क्लिप्स पोस्ट कर रही है।

    नासिक, नागपुर और पुणे के अर्ध-शहरी इलाकों में मतदाताओं के बीच बिजली बिल, पेयजल संकट, बेरोजगारी और सड़क विकास सबसे बड़े चुनावी मुद्दे बने हुए हैं।

    कौन करेगा बाजी अपने नाम?
    राजनीतिक पंडितों का मानना है कि आने वाले महीनों में गठबंधनों की रणनीति, उम्मीदवारों के चयन और स्थानीय मुद्दों पर निर्भर करेगा कि जनता किसके पक्ष में जाती है। हालांकि अभी तक की राजनीतिक सरगर्मी को देखकर यह साफ है कि महाराष्ट्र की सत्ता की कुंजी एक बार फिर इन्हीं अर्ध-शहरी इलाकों के हाथों में होगी।

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