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मध्य प्रदेश में किसानों को दी जाने वाली बिजली के मुद्दे पर हाल ही में एक बड़ा विवाद सामने आया। बिजली विभाग ने एक आदेश जारी किया था जिसमें कहा गया कि यदि किसी किसान को 10 घंटे से अधिक बिजली मिले तो फीडर मैन की सैलरी काट दी जाएगी। इस आदेश के बाद किसानों और आम जनता में काफी नाराजगी फैल गई और सामाजिक और राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया।
आदेश की आलोचना का मुख्य कारण यह था कि इसे लागू करने पर किसानों को पर्याप्त समय तक बिजली नहीं मिल पाएगी, जिससे कृषि कार्य प्रभावित होंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई और खेतों में पानी देने के लिए बिजली का समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। किसानों ने यह कदम अन्यायपूर्ण और असंवेदनशील बताया क्योंकि इससे उनके मेहनत की उपज और कृषि कार्य प्रभावित हो सकते थे।
विवाद बढ़ने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। उन्होंने तुरंत बिजली विभाग को आदेश रद्द करने के निर्देश दिए और स्पष्ट किया कि किसानों को किसी भी परिस्थिति में बिजली की सुविधा से वंचित नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने यह भी कहा कि किसानों की हितों को प्राथमिकता देना राज्य सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
सीएम के निर्देश पर, विवादित आदेश को तुरंत रद्द कर दिया गया और बिजली विभाग में सुधार की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। इसके साथ ही, विवाद के लिए जिम्मेदार चीफ इंजीनियर को पद से हटा दिया गया। अधिकारियों का कहना है कि इस कदम से विभाग में जवाबदेही और प्रशासनिक जिम्मेदारी को मजबूती मिलेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह घटना यह दिखाती है कि कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति न केवल तकनीकी मुद्दा है बल्कि किसानों के जीवन और अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसानों को पर्याप्त बिजली उपलब्ध कराना और विभागीय कर्मचारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी बन गई है।
इस मामले ने यह भी संकेत दिया कि प्रशासनिक निर्णयों में किसानों और आम जनता के हित को ध्यान में रखना कितना आवश्यक है। मुख्यमंत्री मोहन यादव की त्वरित प्रतिक्रिया ने विवाद को शांत किया और किसानों के मन में विश्वास जगाया कि उनकी समस्याओं और हितों पर सरकार संवेदनशील है।
विद्युत विभाग ने आदेश रद्द होने के बाद बताया कि किसानों को निर्बाध बिजली आपूर्ति जारी रहेगी। फीडर मैन और अन्य कर्मचारियों को उनके कार्यों के आधार पर ही सैलरी दी जाएगी, और किसानों की सेवा बाधित नहीं होगी। यह निर्णय ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों के लिए राहत का कारण बना है।
इस विवाद ने यह भी उजागर किया कि कृषि और ग्रामीण विकास में बिजली की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। बिना बिजली के किसान अपने खेतों में सिंचाई और अन्य कृषि कार्यों को समय पर नहीं कर पाते, जिससे उनकी फसल और जीवनयापन प्रभावित होता है। इस घटना ने विभागीय कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए भी एक सबक दिया कि आदेश जारी करने से पहले किसानों के हित और प्रभाव को अवश्य ध्यान में रखा जाए।
अंततः कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव की त्वरित और संवेदनशील प्रतिक्रिया ने विवाद को समाप्त कर दिया। किसानों को 10 घंटे से अधिक बिजली की सुविधा दी जाएगी और विभागीय सुधार की प्रक्रिया जारी रहेगी। चीफ इंजीनियर को हटाकर जवाबदेही तय करना भी प्रशासनिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। इस घटना ने यह स्पष्ट किया कि किसानों का हित और उनकी सुविधा हमेशा सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।








