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महाराष्ट्र के नासिक जिले में पिछले कई दिनों से चल रहे किसानों के आंदोलन ने फिलहाल विराम ले लिया है। यह आंदोलन प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे “अतिक्रमण हटाओ अभियान” के विरोध में शुरू हुआ था। किसानों का आरोप था कि प्रशासन बिना पर्याप्त नोटिस दिए उनकी कृषि भूमि और सिंचाई से जुड़ी संरचनाओं को हटाने की कार्रवाई कर रहा है, जिससे उनका जीवन प्रभावित हो रहा है। हालांकि अब जिला प्रशासन और किसान प्रतिनिधियों के बीच हुई बातचीत के बाद किसानों ने आंदोलन को अस्थायी रूप से रोकने का फैसला किया है।
नासिक में यह विवाद तब शुरू हुआ जब जिला प्रशासन ने कृषि भूमि से सटे नालों, नदियों और सरकारी भूमि पर हो रहे कथित अतिक्रमण को हटाने की पहल की। प्रशासन का कहना था कि यह कदम पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और अवैध कब्जों को रोकने के लिए जरूरी है। लेकिन किसानों ने इसे “अन्यायपूर्ण कार्रवाई” बताते हुए विरोध शुरू कर दिया।
पिछले हफ्ते सैकड़ों किसान नासिक कलेक्टर कार्यालय के बाहर एकत्र हुए थे। उन्होंने प्रशासन पर आरोप लगाया कि कई परिवारों की आजीविका उन जमीनों पर निर्भर है जिन पर अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है। किसानों ने मांग की थी कि उन्हें पहले उचित नोटिस दिया जाए और वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत किया जाए।
सोमवार को प्रशासनिक अधिकारियों और किसान नेताओं के बीच करीब तीन घंटे लंबी बैठक हुई। इस बैठक में किसान संगठनों ने अपनी मांगों की सूची सौंपी, जिसमें मुख्य रूप से अतिक्रमण की परिभाषा को स्पष्ट करने, कृषि भूमि की सुरक्षा, और न्यायसंगत पुनर्वास नीति लागू करने की मांग शामिल थी।
जिला कलेक्टर ने किसानों को आश्वासन दिया कि जब तक सभी मामलों की जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी भी किसान की भूमि पर बुलडोज़र नहीं चलेगा। प्रशासन ने यह भी कहा कि जिन जमीनों पर वास्तविक खेती हो रही है, उन्हें अतिक्रमण के दायरे में नहीं लाया जाएगा। इस आश्वासन के बाद किसान संगठनों ने अपने आंदोलन को अस्थायी रूप से रोकने की घोषणा की।
किसान नेता संदीप पाटिल ने कहा, “हमने आंदोलन स्थगित किया है, खत्म नहीं किया। अगर सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए, तो हम दोबारा सड़कों पर उतरेंगे। हमें खेती करने का हक चाहिए, न कि नोटिस और बुलडोज़र।”
प्रशासन की ओर से बताया गया कि कई नालों और तालाबों के किनारे अवैध कब्जे बढ़ गए हैं, जिसके चलते बारिश के मौसम में जलभराव और बाढ़ जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। अधिकारियों का कहना है कि उनका उद्देश्य किसानों को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना है।
कई स्थानीय नागरिकों ने भी इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी है। कुछ ने कहा कि सरकार को किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए योजना बनानी चाहिए, जबकि कुछ लोगों ने प्रशासन के कदम का समर्थन किया है, यह कहते हुए कि “अगर अवैध कब्जे नहीं हटाए गए, तो भविष्य में जलसंकट और बाढ़ की स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।”
राज्य सरकार ने भी मामले पर नजर रखी हुई है। सूत्रों के मुताबिक, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कार्यालय ने जिला प्रशासन से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है ताकि भविष्य में किसी भी तरह के टकराव को रोका जा सके।
वहीं, कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के विवादों से बचने के लिए सरकार को पहले से स्पष्ट भूमि अभिलेख और सीमांकन सुनिश्चित करना चाहिए। इससे यह तय हो सकेगा कि कौन सी जमीन खेती योग्य है और कौन सी सरकारी या पर्यावरणीय संरक्षित श्रेणी में आती है।
फिलहाल नासिक में माहौल शांत है, लेकिन किसान संगठनों ने यह साफ कर दिया है कि अगर प्रशासन ने अपने वादे से पीछे हटने की कोशिश की, तो आंदोलन दोबारा शुरू किया जाएगा। यह पूरा मामला न केवल स्थानीय प्रशासनिक निर्णयों का परिणाम है, बल्कि यह महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में भूमि और जीविका से जुड़े व्यापक मुद्दों को भी उजागर करता है।
नासिक में किसानों का यह आंदोलन फिलहाल थमा जरूर है, लेकिन सवाल अब भी कायम है — क्या सरकार और प्रशासन के बीच यह अस्थायी समझौता किसानों की पीड़ा का स्थायी समाधान बन पाएगा?








