




इस वर्ष, जैन धर्म का पावन पर्व पर्युषण महापर्व गुरुवार, 21 अगस्त से शुरू हो गया है। यह पर्व श्वेतांबर संप्रदाय में 8 दिनों तक मनाया जाता है जबकि दिगंबर संप्रदाय ने इसे 10 दिनों तक मनाने की अपनी परंपरा को जारी रखा है–जिसमें 28 अगस्त से 6 सितंबर तक यह पर्व रहेगा। यह पर्व जैन धर्म की आत्मशुद्धि, तपस्या, प्रायश्चित और क्षमापना की वर्तमान परम्पराओं को प्रतिबिंबित करता है।
पर्व का महत्व — आत्मनिरीक्षण और क्षमा
पर्युषण महापर्व को ‘पर्वों का राजा’ कहा जाता है क्योंकि यह आत्मा की निजी यात्रा और शान्ति की ओर ले जाता है। इस अवधि में जैन अनुयायी उपवास, ध्यान, प्रवचन और धर्मग्रंथ के अध्ययन में संलग्न होते हैं। वे क्रोध, अहंकार, लोभ और मोह जैसे नकारात्मक गुणों का त्याग कर आत्मशुद्धि हेतु प्रयास करते हैं।
अंतिम दिन का महत्व – संवत्सरी और क्षमावाणी
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श्वेतांबर संप्रदाय
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अंतिम दिन को संवत्सरी कहा जाता है।
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इस दिन अनुयायी एक-दूसरे से ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’ कहकर बीते वर्ष में जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए क्षमा माँगते हैं।
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यह दिन क्षमादान दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसमें रिश्तों में पारदर्शिता और सौहार्द पर जोर दिया जाता है।
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दिगंबर संप्रदाय
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दिगंबर अनुयायी इस दिन को क्षमावाणी के रूप में मनाते हैं।
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क्षमावाणी का संदेश भी यही है — “मैंने यदि किसी को कष्ट पहुँचाया हो, तो मुझे क्षमा करें।”
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यह दिन आत्मचिंतन और सच्चे अर्थों में क्षमा के महत्व को समझाने का अवसर है।
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5 प्रमुख सिद्धांत: पर्युषण के आधार
लेख में बताए गए जैन धर्म के पाच प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
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अहिंसा – मन, वचन और कर्म से किसी भी जीव को हानि न पहुँचाना।
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सत्य – सत्य बोलना और दूसरे को भ्रमित या ठेस न पहुँचाना।
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अस्तेय – किसी की वस्तु बिना अनुमति या अधिकार के न लेना।
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ब्रह्मचर्य – इंद्रियों का संयम और सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग।
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अपरिग्रह – सम्पत्ति या भौतिक सुखों का मोह न रखना और आवश्यकता से अधिक में अदत्त रहना।
अनुशासन और क्षमापना — अंतिम दिन का अनुष्ठान
श्वेतांबर संप्रदाय के अनुयायी अंतिम दिन ‘संवत्सरी’ मनाते हैं, जो क्षमादान (Forgiveness) का दिन होता है। इस दिन वे ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’ कहकर एक-दूसरे से, अनजाने में हुए अपराधों के लिए क्षमा करते हैं। दिगंबर संप्रदाय में यह दिन ‘क्षमावाणी’ के रूप में मनाया जाता है, जो भी यही अर्थ प्रस्तुत करता है।
दिन-प्रतिदिन का अभ्यास – दष्लक्षण पर्व
दिगंबर जैन धर्मावलंबी इस पर्व को ‘दश्लक्षण पर्व’ के रूप में मानते हैं, जहाँ प्रत्येक दिन किसी खास गुण या लक्ष्य को आत्मसात करने का संकल्प होता है। उदाहरण के लिए: जल्दबाजी न, मधुर व्यवहार, लक्ष्य का पूरा होना, संयमपूर्ण वाणी, निस्वार्थ भाव आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: एकजुटता का वर्ष
इस वर्ष एक अनूठा अवसर भी बना है: स्वेतांबर, स्थानकवासी और दिगंबर — जैन धर्म के प्रमुख तीन संप्रदाय दशकों बाद एक साथ पर्युषण महापर्व मनाएंगे। यह ऐतिहासिक एकजुटता की मनो-स्थिति दर्शाती है। मुंबई में इस अवसर पर दो दिन तक कसाईखाने बंद रखे जाएंगे, ताकि अहिंसा का आदर और जैन समुदाय के प्रति सम्मान दिखाया जा सके।
उपवास, साधना और आत्मसंयम
पर्युषण के समय जैन अनुयायी उपवास रखते हुए सांसारिक जीवन से दूरी बनाए रखते हैं। उनका उद्देश्य इंद्रियों का संयम, आत्मनिरीक्षण और ध्यान के माध्यम से आत्मसंयम स्थापित करना होता है। साथ ही वे धार्मिक प्रवचनों और सामूहिक साधना में अधिक सक्रियता से भाग लेते हैं।
सारांश
पर्युषण महापर्व 2025 न केवल एक आराधना पर्व है, बल्कि यह आत्मनिरीक्षण, आत्मशुद्धि और क्षमादान का प्रतीक भी है। श्वेतांबर और दिगंबर दोनों संप्रदायों द्वारा मनाया जाना और इस वर्ष उनकी ऐतिहासिक एकता, जैन जीवन दर्शन की आशा और प्रेम की भावना को दर्शाती है। इस पावन पर्व के दौरान जैन अनुयायी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे सच्चे मूल्यों को अपनाकर जीवन को स्वच्छ और उच्च आत्मिकता की ओर ले जाते हैं।
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