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    “विदर्भ की शान हडपक्या गणपती को मिली राज्योत्सव में जगह, 270 साल पुरानी परंपरा को मान्यता”

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    ऐतिहासिक परंपरा को मिली नई पहचान

    नागपुर की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक परंपरा का गौरव—“हडपक्या गणपती”—अब आधिकारिक तौर पर महाराष्ट्र राज्योत्सव का हिस्सा बन गया है। यह घोषणा राज्य के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार ने हाल ही में नागपुर में आयोजित एक समारोह में की। इस निर्णय के बाद नागपुर और पूरे विदर्भ क्षेत्र में उत्साह की लहर दौड़ गई है।

    यह परंपरा लगभग 270 साल पुरानी है और आज भी नागपुरवासियों की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बनी हुई है।

    हडपक्या गणपती का इतिहास

    हडपक्या गणपती की परंपरा की शुरुआत 1755 ईस्वी में हुई थी। उस समय खांडोजी महाराज भोंसले (चिमनाबापू) ने बंगाल विजय से लौटने के बाद इस अनूठे गणेशोत्सव की नींव रखी थी।

    कहा जाता है कि जब वे लौटे तब तक पारंपरिक गणेशोत्सव का समापन हो चुका था। इसीलिए उन्होंने गणेशोत्सव को एक विशेष रूप में मनाने का निर्णय लिया और 18 भुजाओं वाले गणेश भगवान की स्थापना की। इसी अद्वितीय रूप को “हडपक्या गणपती” नाम से जाना गया।

    ‘हडपक्या’ शब्द का अर्थ मुखौटा या वेशभूषा है। इस उत्सव में लोग विभिन्न प्रकार के मुखौटे पहनकर पारंपरिक नृत्य, संगीत और लोककलाओं का प्रदर्शन करते हैं। यही इसे अन्य गणेश उत्सवों से अलग बनाता है।

    नागपुर और विदर्भ में महत्व

    स्थानीय मान्यता के अनुसार, “नागपुर में असली गणेशोत्सव की शुरुआत तभी होती है जब हडपक्या गणपती की स्थापना की जाती है।”

    इस उत्सव का आयोजन पूरे 11 दिनों तक चलता है और इसमें हजारों श्रद्धालु व स्थानीय लोग शामिल होते हैं। विदर्भ क्षेत्र की यह परंपरा अब पूरे महाराष्ट्र के सांस्कृतिक नक्शे पर एक विशेष पहचान बना रही है।

    महाराष्ट्र राज्योत्सव में शामिल होने का महत्व

    महाराष्ट्र सरकार पहले ही गणेशोत्सव को राज्योत्सव का दर्जा दे चुकी है। अब नागपुर का हडपक्या गणपती भी इसमें शामिल होने जा रहा है।

    सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार और मुधोजी राजे भोंसले के बीच हुई चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया। इसके साथ ही नागपुर के लोग और विदर्भ क्षेत्र की परंपरा अब राज्यस्तरीय मान्यता प्राप्त कर चुकी है।

    सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

    हडपक्या गणपती के राज्योत्सव में शामिल होने से न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बढ़ेगा, बल्कि इसके कई सकारात्मक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी देखने को मिलेंगे:

    1. पर्यटन को बढ़ावा – देश-विदेश से अधिक पर्यटक नागपुर आएंगे, जिससे स्थानीय व्यवसाय को लाभ मिलेगा।

    2. हस्तशिल्प और लोककला का विकास – मुखौटे और पारंपरिक सजावट से जुड़ी कला को नया बाजार मिलेगा।

    3. स्थानीय अर्थव्यवस्था का विस्तार – होटल, परिवहन और दुकानों को बढ़ा हुआ व्यापार मिलेगा।

    4. युवा पीढ़ी में सांस्कृतिक जागरूकता – परंपरा से जुड़ने का अवसर मिलेगा और नई पीढ़ी सांस्कृतिक गौरव को समझ सकेगी।

    उत्सव की विशेषताएँ

    • 18 भुजाओं वाले अद्वितीय गणेश भगवान की स्थापना।

    • मुखौटे पहनकर लोक नृत्य और धार्मिक जुलूस।

    • 11 दिनों तक चलने वाले सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम।

    • नागपुर और आसपास के जिलों से हजारों श्रद्धालुओं की भागीदारी।

    भविष्य की संभावनाएँ

    इस निर्णय के बाद हडपक्या गणपती को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलेगी।

    • यह नागपुर को महाराष्ट्र के सांस्कृतिक पर्यटन नक्शे पर प्रमुख स्थान दिलाएगा।

    • हर साल बड़े पैमाने पर भक्त और पर्यटक यहां आकर्षित होंगे।

    • स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को बड़ा मंच मिलेगा।

    निष्कर्ष

    नागपुर का 270 साल पुराना हडपक्या गणपती अब केवल एक स्थानीय परंपरा नहीं रहा, बल्कि पूरे महाराष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर बन गया है। इसे महाराष्ट्र राज्योत्सव में शामिल किया जाना न केवल विदर्भ की ऐतिहासिक परंपरा को मान्यता देता है, बल्कि इसे वैश्विक मंच पर भी पहचान दिलाने का मार्ग खोलता है।

    यह कदम सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और नई पीढ़ी को उससे जोड़ने की दिशा में ऐतिहासिक साबित होगा।

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