




महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में काम कर रहे गिग वर्कर्स के लिए एक सामाजिक सुरक्षा बोर्ड बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। अनुमान है कि इस फैसले से राज्य के करीब 10 लाख गिग वर्कर्स को प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा।
गिग वर्कर्स में डिलीवरी बॉय, कैब ड्राइवर, ऑनलाइन फ्रीलांसर, ऐप-आधारित सेवाएँ देने वाले लोग और अस्थायी अनुबंध पर काम करने वाले लाखों श्रमिक शामिल हैं। अभी तक इन वर्कर्स को न तो बीमा मिलता है और न ही पेंशन या चिकित्सा जैसी बुनियादी सुरक्षा सुविधाएँ।
गिग इकॉनॉमी क्या है?
“गिग इकॉनॉमी” वह प्रणाली है जिसमें लोग स्थायी नौकरी की जगह अस्थायी अनुबंध या काम-काज (gigs) पर काम करते हैं। इसमें ऑनलाइन फूड डिलीवरी, कैब बुकिंग, ई-कॉमर्स डिलीवरी, फ्रीलांस काम और डिजिटल सेवाएँ शामिल हैं।
भारत में तेजी से बढ़ रही गिग इकॉनॉमी का सबसे बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र में है, खासकर मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे बड़े शहरों में।
सामाजिक सुरक्षा बोर्ड की जरूरत क्यों?
गिग वर्कर्स लंबे समय से असुरक्षा और असमानता की समस्या झेल रहे हैं।
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उन्हें स्थायी कर्मचारियों जैसी सुविधाएँ नहीं मिलतीं।
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कोई निश्चित कार्य समय नहीं होता, जिससे स्वास्थ्य और परिवार प्रभावित होता है।
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दुर्घटना या बीमारी की स्थिति में उनके पास कोई सहायता नहीं होती।
सरकार का मानना है:
यदि इन वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा नहीं दी गई, तो भविष्य में यह एक बड़ी सामाजिक समस्या बन सकती है।
प्रस्तावित योजना की मुख्य बातें
महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए जाने वाले सामाजिक सुरक्षा बोर्ड के तहत:
- बीमा और स्वास्थ्य सुविधाएँ
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सभी गिग वर्कर्स को स्वास्थ्य बीमा मिलेगा।
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दुर्घटना या मौत की स्थिति में परिवार को आर्थिक सहायता दी जाएगी।
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पेंशन और रिटायरमेंट बेनिफिट्स
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बोर्ड एक पेंशन स्कीम लाने की तैयारी कर रहा है, ताकि उम्र बढ़ने पर वर्कर्स को न्यूनतम आय मिल सके।
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मातृत्व लाभ और छात्रवृत्ति
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महिला गिग वर्कर्स को मातृत्व अवकाश और लाभ दिए जाएंगे।
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वर्कर्स के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति योजना शुरू की जाएगी।
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आपातकालीन सहायता कोष
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किसी भी आकस्मिक परिस्थिति जैसे महामारी, प्राकृतिक आपदा या नौकरी छूटने की स्थिति में वर्कर्स को आर्थिक सहायता दी जाएगी।
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सरकार की ओर से बयान
श्रम मंत्री ने कहा:
“गिग इकॉनॉमी हमारे राज्य की रीढ़ बन चुकी है। लाखों युवा इस क्षेत्र से जुड़े हैं। उन्हें सुरक्षा देना हमारी जिम्मेदारी है। सामाजिक सुरक्षा बोर्ड की स्थापना इसी दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।”
विपक्ष और विशेषज्ञों की राय
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विपक्ष ने इस पहल का स्वागत किया, लेकिन यह भी कहा कि इसे सिर्फ घोषणा तक सीमित न रखा जाए।
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विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह योजना ठीक से लागू हुई, तो महाराष्ट्र अन्य राज्यों के लिए मॉडल बन सकता है।
श्रमिक संगठनों ने भी कहा कि बोर्ड में वर्कर्स के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि योजनाओं का सही क्रियान्वयन हो सके।
चुनौतियाँ
हालांकि, इस बोर्ड को स्थापित करने और इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ होंगी:
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गिग वर्कर्स का रजिस्ट्रेशन कैसे होगा?
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कौन सा डिजिटल प्लेटफॉर्म डेटा उपलब्ध कराएगा?
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फंडिंग का स्रोत क्या होगा? (राज्य सरकार, केंद्र या कंपनियों का योगदान?)
गिग वर्कर्स की प्रतिक्रियाएँ
मुंबई के एक फूड डिलीवरी वर्कर ने कहा:
“हम 10–12 घंटे काम करते हैं, लेकिन कोई छुट्टी, बीमा या सुरक्षा नहीं है। अगर सरकार सच में यह योजना लाती है तो हमें बहुत राहत मिलेगी।”
पुणे की एक महिला कैब ड्राइवर ने कहा:
“महिलाओं के लिए यह बहुत जरूरी है। मातृत्व अवकाश और सुरक्षा मिलने से हमारा आत्मविश्वास बढ़ेगा।”
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
भारत में गिग वर्कर्स की संख्या 2025 तक लगभग 3 करोड़ होने का अनुमान है। इनमें से महाराष्ट्र अकेले करीब 10 लाख वर्कर्स को रोजगार देता है।
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नीति आयोग ने भी 2022 में रिपोर्ट जारी कर कहा था कि गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था जरूरी है।
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केंद्र सरकार ने भी ‘कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी, 2020’ में गिग वर्कर्स का जिक्र किया है।
महाराष्ट्र सरकार की यह पहल गिग इकॉनॉमी के लाखों श्रमिकों के लिए नई उम्मीद है। अगर यह योजना सफलतापूर्वक लागू होती है तो न केवल गिग वर्कर्स का जीवन स्तर सुधरेगा, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था भी और मजबूत होगी।
यह कदम साबित कर सकता है कि डिजिटल युग में श्रम सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है जितनी पारंपरिक रोजगार में।