




गणेश चतुर्थी (26 अगस्त को) के प्रकट होने के साथ ही, लखनऊ में गणेश भक्तों में एक अनूठा चलन तेजी से उभर रहा है—“Customised Ganesh Idols”, यानी आधिकारिक मांग के अनुसार बनाई गई व्यक्तिगत गणेश प्रतिमाएँ। ये मात्र मूर्तियाँ नहीं, बल्कि भक्तों की विशिष्ट भावनाओं, कलात्मक दृष्टिकोण और पारंपरिक सम्मान का संगम हैं।
स्थानीय कलाकारों का क्रिएटिव योगदान
— आशीष पाल, जो इस शिल्प में दो दशक से सक्रिय हैं, ने नीले रंग की 12 फुट ऊँची “Neelkanth Ganesh” प्रतिमा बनाई है। इसे पूरा करने में उन्होंने लगभग 7 महीने का समय लगाया और इसका मूल्य ₹1.33 लाख है, जो इस रीतिशील दायरे में असाधारण माना जा रहा है।
— नमिता पाल ने कोलकाता से जुड़े कारीगरों के सहयोग से मात्र 4 महीनों में 7 फुट ऊँची “Lal Raja” प्रतिमा बनाई—जो शैली और विशिष्टता में अद्वितीय है।
— धीरेज साहू ने कई रचनात्मक डिज़ाइनों की श्रृंखला तैयार की—जिसमें पॉकेट साइज की मूर्तियाँ और एक 6-सिर वाला कदम भी शामिल है। उनका सबसे बड़ा निर्माण है 9 फुट ऊँचा “Murshak par Bappa”—जो इको-फ्रेंडली सामग्रियों से बना है, इसको तैयार करने में उन्हें 5 महीने लगे और इसकी कीमत ₹90,000 रही।
बढ़ती मांग का आलोक
ये कलाकार पुष्टि करते हैं कि लखनऊ में बड़ी संख्या में ऐसे भक्त हैं जो व्यक्तिगत अनुरोध और पसंद के अनुसार मूर्तियों का निर्माण चाहते हैं। यही रुझान इस उत्सव में व्यक्तिगत और कलात्मक जुड़ाव को प्रोत्साहित कर रहा है।
संस्कृति में बदलाव: परंपरा और निजी पसंद का मिलन
पारंपरिक उत्सव की वर्तमान रूपरेखा
गणेश चतुर्थी के दिनों में पारंपरिक रूप से बाजारों में तैयार गणेश प्रतिमाओं की आम उपलब्धता रही है। मगर इस वर्ष, यह बदलाव स्पष्ट है—अब भक्त वास्तविकता का हिस्सा बनना चाहते हैं, न कि केवल दर्शक। निजी अनुकूलित मूर्तियाँ इस बदलाव का प्रतीक बन रही हैं।
काल हृदय की कला और व्यक्तिगत भावनाएँ
कला में कितने अनुभवी या जाने-माने कलाकार हों—उनकी कला तभी पूरी होती है जब वह भक्ति, व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और पारंपरिक आदर्शों का सार पोषित करती है। यहां लखनऊ के कलाकारों ने ठीक यही किया है—उनकी मूर्तियों में न केवल आकार और सामग्री की प्रारूपबद्धता है, बल्कि उनमें व्यक्ता के सपने, श्रद्धानुबंध और सांस्कृतिक समझ छिपी है।
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इन मूर्तियों की आकृतियाँ और रंग संयोजन इस बात को दर्शाते हैं कि कला केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि आस्था और आत्मिक जुड़ाव का माध्यम भी है।
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किसी ने भगवान गणेश को नीलकंठ रूप में प्रस्तुत किया, तो किसी ने उन्हें लाल राजा के रूप में सजाया—यह केवल कलात्मक प्रयोग नहीं, बल्कि भक्त की विशेष भावना और व्यक्तिगत कथा को मूर्त रूप देने का प्रयास था।
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हर रेखा, हर रंग और हर शिल्पकारी में कलाकारों ने उस परिवार की संवेदनाओं और परंपराओं को उतारने की कोशिश की, जिन्होंने मूर्ति का ऑर्डर दिया।
यही कारण है कि इन प्रतिमाओं को देखकर लोगों को केवल पूजा का अनुभव नहीं होता, बल्कि ऐसा लगता है मानो उनकी आत्मिक आकांक्षाएँ और व्यक्तिगत सपने मूर्ति में जीवंत हो गए हों।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह बेहद महत्वपूर्ण है। जहाँ एक ओर पारंपरिक गणेश मूर्तियाँ सदियों से एक जैसी बनाई जाती रही हैं, वहीं इन कस्टमाइज्ड प्रतिमाओं ने यह साबित कर दिया कि परंपरा और आधुनिकता प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि पूरक हो सकते हैं। भक्तों की इच्छाओं के अनुरूप कला को ढालकर कलाकारों ने यह दिखाया कि संस्कृति जीवित और गतिशील है—जो समय के साथ बदलती रहती है, लेकिन अपनी जड़ों से कभी अलग नहीं होती।
आर्थिक और भावनात्मक महत्व
— कीमत: ₹90,000 से ₹1.33 लाख तक—ये आंकड़े केवल व्यय नहीं, बल्कि भक्ति की महत्ता और मूर्ति की अनोखी विशेषता को दर्शाते हैं।
— समय और शिल्प: इन मूर्तियों में दो से सात महीनों तक मेहनत, दक्षता और कल्पना समाहित है।
— भावनात्मक जुड़ाव: जिन भक्तों ने अपने अनुरूप गणेश तैयार करवाए, उन्होंने सामान्य पूजा से परे, एक संस्कारात्मक और व्यक्तिगत अनुभव की चाह व्यक्त की है।
पर्यावरणीय जागरूकता
खासकर “Murshak par Bappa” के निर्माण में इस्तेमाल सामग्री इको-फ्रेंडली है—जो वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण के संदेश को भी सशक्त बनाता है। यह संकेत देता है कि धार्मिक उत्सव अब प्रकृति और परंपरा के बीच सामंजस्य की अद्भुत पहचान बन गए हैं।
निष्कर्ष
लखनऊ की यह खबर एक छोटे शहर का दृश्य नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक बदलाव का संदेश है। यह दर्शाता है कि:
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भक्त अब केवल पूजा नहीं चाहते, बल्कि अपने हृदय की चाह के अनुरूप कलात्मक अभिव्यक्ति चाहते हैं।
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कला और शिल्प में नए आयाम खुल चुके हैं—जहाँ केवल शक्ल-रंग नहीं, बल्कि भाव, प्रार्थना और संकल्प भी संजोये जाते हैं।
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परंपरा, आध्यात्मिकता और आधुनिक कलात्मकता का मिलन इस उत्सव को एक नए युग में ले जा रहा है।
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