




मुंबई में गणेशोत्सव केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि भावनाओं, संस्कृति और आस्था का ऐसा संगम है जो करोड़ों दिलों को जोड़ता है। इस वर्ष, Lalbaugcha Raja 2025 की पहली झलक ने उस आस्था को फिर से जीवंत कर दिया, जिसका इंतजार भक्त पूरे साल करते हैं। रविवार शाम को जैसे ही प्रतिमा का परदा उठा, वातावरण भक्तिभाव, उल्लास और उत्साह से गूंज उठा।
भव्य स्वरूप जिसने भक्तों का मन मोह लिया
इस वर्ष का ‘लालबागचा राजा’ अपने दिव्य और अद्वितीय स्वरूप में सामने आया। बप्पा के एक हाथ में चक्र, सिर पर चमकता मुकुट और गहरे बैंगनी रंग की धोती ने प्रतिमा को और भी आकर्षक बना दिया। बप्पा का यह अद्वितीय रूप न केवल आँखों को भाया, बल्कि मन में श्रद्धा की ऐसी लहर दौड़ा गया कि पूरा मंडप “गणपति बप्पा मोरया” के गगनभेदी नारों से गूंज उठा।
आर्थिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस स्वरूप ने देखने वालों में “अलौकिकता और शक्ति” की भावना जगाई और यह क्षण गणेशोत्सव की आधिकारिक शुरुआत जैसा बन गया।
इतिहास की जड़ों से जुड़ा ‘नवसाला पावणारा गणपती’
लालबागचा राजा का इतिहास 1934 से शुरू होता है, जब लालबाग के कोली समुदाय ने इसे पहली बार स्थापित किया। तब से लेकर आज तक, यह प्रतिमा केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं रही बल्कि मुंबई की सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहर बन गई।
इसे लोग प्यार से “नवसाला पावणारा गणपती” कहते हैं — यानी वह गणेश जो हर मन्नत पूरी करता है। यही कारण है कि लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए उमड़ते हैं और कुछ तो अपनी मन्नतों के लिए 30-40 घंटे तक कतार में खड़े रहते हैं।
श्रद्धालुओं का हुजूम और भावनाओं का सागर
इस साल भी भक्तों की भीड़ में वही पुराना उत्साह और प्रेम देखने को मिला। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरों और वीडियोज़ में स्पष्ट दिखा कि कैसे लोग प्रतिमा के दर्शन करते ही भावुक हो गए। Instagram पर एक श्रद्धालु ने लिखा—“The divine first look… we simply can’t take our eyes off Bappa’s glory!”
यही नहीं, ट्विटर और फेसबुक पर भी #LalbaugchaRaja2025 ट्रेंड करने लगा, जहां श्रद्धालु अपने अनुभव साझा कर रहे थे।
सामाजिक एकता का अद्भुत संदेश
इस बार का एक और खास आकर्षण रहा मखमली पर्दा जिसे मुस्लिम कारीगरों ने श्रद्धा और प्रेम से तैयार किया। यह केवल कला का नमूना नहीं बल्कि सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है।
मुंबई जैसे बहु-सांस्कृतिक शहर में, जहां हर धर्म और समुदाय साथ रहते हैं, यह पहल इस संदेश को और प्रबल करती है कि बप्पा केवल हिंदुओं के ही नहीं, बल्कि सभी के हैं।
उद्घाटन समारोह — संगीत और परंपरा का संगम
प्रतिमा का अनावरण केवल एक दृश्य नहीं, बल्कि एक संपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव था। पारंपरिक लोकनृत्य, ढोल-ताशे की गूंज और भक्तों के जयघोष ने वातावरण को जीवंत बना दिया। बप्पा के स्वागत में गाए गए भजन और आरती ने हर किसी को आंसुओं से भर दिया।
गणेशोत्सव 2025 की तैयारियाँ
इस बार गणेशोत्सव 27 अगस्त 2025 से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी पर गिरगांव चौपाटी में भव्य विसर्जन के साथ समाप्त होगा। दस दिनों तक चलने वाला यह पर्व न केवल पूजा और भक्ति का समय है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी महाकुंभ है।
मंडलों में सजावट, सामाजिक संदेश देने वाले थीम, और बच्चों व बुजुर्गों की सहभागिता इस उत्सव को और भी खास बना देती है।
निष्कर्ष — आस्था और एकता का पर्व
Lalbaugcha Raja 2025 की प्रथम झलक ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बप्पा केवल एक मूर्ति नहीं बल्कि जीवित आस्था हैं। हर साल उनकी भव्यता, सामाजिक संदेश और भक्तों की उमंग पूरे देश और दुनिया को जोड़ देती है।
इस बार बैंगनी धोती और चक्रधारी रूप में बप्पा ने यह संदेश दिया कि वे केवल भक्तों की रक्षा करने वाले नहीं, बल्कि एकता, विश्वास और शक्ति के प्रतीक भी हैं।
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