




भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबे समय से सुर्खियों में रहते आए हैं, लेकिन अब दोनों देशों के बीच एक नया संकट गहराने की संभावना है—जल विवाद। चीन ने यारलुंग जांग्बो नदी (भारत में प्रवेश करने के बाद जिसे ब्रह्मपुत्र कहा जाता है) पर एक विशाल मेगा बाँध बनाने की योजना का ऐलान किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाँध न सिर्फ़ पर्यावरण के लिए, बल्कि भारत की जल सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती साबित हो सकता है।
चीन की योजना और उसका प्रभाव
चीन इस बाँध को दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक बताता है। इसकी मदद से चीन लाखों मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखता है। लेकिन भारत के लिए यह परियोजना कई मायनों में खतरे की घंटी है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, यह बाँध सूखे मौसम में ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का प्रवाह लगभग 85% तक कम कर सकता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषकर अरुणाचल प्रदेश और असम, की जीवनरेखा कही जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर इतना बड़ा असर सीधा-सीधा कृषि, सिंचाई, पेयजल और पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा।
भारत की चिंता
भारत लंबे समय से चीन की इस नीति को लेकर चिंतित है। भारत का कहना है कि चीन नदी के ऊपरी हिस्से को नियंत्रित कर downstream क्षेत्रों (भारत व बांग्लादेश) में पानी के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। यह स्थिति भविष्य में एक तरह के जल युद्ध का रूप ले सकती है।
भारत की संसद में कई बार यह मुद्दा उठ चुका है। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन का यह कदम सिर्फ ऊर्जा परियोजना नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव बनाने की नीति का हिस्सा भी हो सकता है।
भारत की रणनीति
इस खतरे से निपटने के लिए भारत ने भी अपने कदम तेज़ किए हैं। अरुणाचल प्रदेश में भारत सरकार ने ऊपरी सियांग बहुउद्देशीय बाँध परियोजना को मंज़ूरी दी है। यह बाँध न केवल बिजली उत्पादन में सहायक होगा, बल्कि पानी के प्रवाह को भी नियंत्रित करने का काम करेगा।
हालांकि, इस परियोजना के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर स्थानीय लोगों में चिंता है। अनुमान है कि इस परियोजना के कारण 10,000 से अधिक लोग विस्थापित होंगे और लगभग 1 लाख लोग प्रभावित होंगे।
पर्यावरणीय संकट
विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का मानना है कि ब्रह्मपुत्र नदी पर इतने बड़े पैमाने पर बाँध बनाने से नदी की प्राकृतिक धारा बदल जाएगी। इससे न सिर्फ़ जैव विविधता पर असर पड़ेगा, बल्कि निचले इलाकों में बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ भी बढ़ सकती हैं।
अरुणाचल और असम के स्थानीय संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार को इस तरह के मेगा प्रोजेक्ट से पहले पारिस्थितिक संतुलन और जनजीवन पर असर का गहन अध्ययन करना चाहिए।
भू-राजनीतिक पहलू
जल संकट केवल पर्यावरणीय या सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा भू-राजनीतिक हथियार भी बन चुका है। चीन पहले ही दक्षिण चीन सागर, व्यापार मार्ग और सीमाओं पर अपनी आक्रामक नीतियों के लिए जाना जाता है। अब जल संसाधनों पर उसका नियंत्रण पड़ोसी देशों के लिए नई चुनौती बन गया है।
भारत और बांग्लादेश दोनों ही ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्भर हैं। अगर चीन इस बाँध के जरिए पानी के प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो यह भारत के लिए एक रणनीतिक खतरा होगा।
विशेषज्ञों की राय
जल विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की परिस्थितियों से बचने के लिए भारत और चीन को जल साझेदारी समझौते (Water Sharing Treaty) की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। वर्तमान में दोनों देशों के बीच ऐसा कोई औपचारिक समझौता नहीं है।
भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस मुद्दे को उठाना चाहिए, ताकि चीन पर दबाव बनाया जा सके।
चीन के मेगा बाँध की योजना ने भारत के सामने जल संकट की आशंका खड़ी कर दी है। यह सिर्फ़ एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि आने वाले समय में भू-राजनीतिक टकराव का कारण भी बन सकती है। भारत को जहां अपनी जल परियोजनाओं को मज़बूत करना होगा, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के खिलाफ रणनीतिक कदम भी उठाने होंगे।
भविष्य में ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह और उस पर नियंत्रण न केवल भारत-चीन संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता पर भी असर डालेगा।