




भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में बैंकों से आग्रह किया है कि वे डेबिट कार्ड उपयोग, न्यूनतम बैलेंस उल्लंघन और देर से भुगतान जैसी सेवाओं पर लगने वाले शुल्कों में कमी करें। यह कदम विशेष रूप से निम्न-आय वर्ग के ग्राहकों को राहत देने और बैंकिंग सेवाओं को अधिक सुलभ बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
बैंकों द्वारा सेवा शुल्क में वृद्धि और RBI की चिंता
पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय बैंकों ने खुदरा ऋणों के क्षेत्र में तेजी से विस्तार किया है, जिससे व्यक्तिगत ऋण, वाहन वित्तपोषण और छोटे व्यवसायों के ऋणों में वृद्धि हुई है। हालांकि, इस वृद्धि के साथ ही बैंकों ने विभिन्न सेवाओं पर शुल्क भी बढ़ाए हैं, जैसे कि डेबिट कार्ड उपयोग, न्यूनतम बैलेंस उल्लंघन और देर से भुगतान। इन शुल्कों का प्रभाव विशेष रूप से निम्न-आय वर्ग के ग्राहकों पर पड़ता है, जो पहले से ही वित्तीय दबाव का सामना कर रहे हैं।
RBI की अपील और बैंकों की प्रतिक्रिया
RBI ने बैंकों से आग्रह किया है कि वे इन शुल्कों की समीक्षा करें और उन्हें उचित स्तर तक कम करें। हालांकि, RBI ने किसी विशेष शुल्क सीमा का निर्धारण नहीं किया है, जिससे बैंकों को अपनी नीतियों में लचीलापन मिला है। इस कदम से बैंकों को अपनी आय में कमी का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन यह ग्राहकों के हित में एक सकारात्मक परिवर्तन हो सकता है।
डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने की दिशा में कदम
RBI का यह कदम डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने की दिशा में भी महत्वपूर्ण है। कम शुल्कों के कारण ग्राहक डिजिटल भुगतान प्रणालियों का अधिक उपयोग करेंगे, जिससे नकद लेन-देन की निर्भरता कम होगी और वित्तीय समावेशन में वृद्धि होगी।
भारतीय रिजर्व बैंक का यह निर्णय बैंकों और ग्राहकों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह कदम न केवल ग्राहकों को वित्तीय राहत प्रदान करेगा, बल्कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली की पारदर्शिता और समावेशन को भी बढ़ावा देगा।