




नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए ग्रीन पटाखों के निर्माण की अनुमति दे दी है, लेकिन साथ ही दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में इनकी बिक्री पर रोक को भी बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि केवल वही निर्माता ग्रीन पटाखे बना सकेंगे जिनके पास NEERI (नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) और PESO (पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन) से वैध प्रमाण पत्र (Certificate) होगा।
कोर्ट के इस फैसले का उद्देश्य एक तरफ जहां पर्यावरण की रक्षा करना है, वहीं दूसरी ओर पटाखा उद्योग में कार्यरत लाखों लोगों की आजिविका को भी सुरक्षित रखना है। त्योहारों विशेषकर दिवाली के समय दिल्ली‑NCR में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है। बीते कुछ वर्षों से सरकार और अदालतें इस पर नियंत्रण के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रही हैं।
ग्रीन पटाखे वे पटाखे होते हैं जिनमें पारंपरिक पटाखों के मुकाबले कम ध्वनि और रासायनिक उत्सर्जन होता है। इनका निर्माण ऐसे रसायनों से किया जाता है जो बेरियम जैसे हानिकारक तत्वों से मुक्त होते हैं। वैज्ञानिक संस्थान NEERI ने ग्रीन क्रैकर्स का फॉर्मूला तैयार किया है और PESO द्वारा इन्हें प्रमाणित किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह पटाखा उद्योग से जुड़े लाखों श्रमिकों की रोज़गार संबंधी चुनौतियों को समझती है, लेकिन वायु प्रदूषण से जनता के स्वास्थ्य को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसलिए, एक मध्य मार्ग निकालते हुए कोर्ट ने यह आदेश जारी किया है कि निर्माण की अनुमति होगी लेकिन बिक्री और उपयोग पर फिलहाल पाबंदी रहेगी, खासकर दिल्ली‑NCR क्षेत्र में।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ उन्हीं कंपनियों को निर्माण की अनुमति मिलेगी, जो NEERI और PESO से ग्रीन पटाखों के लिए प्रमाणित हैं। साथ ही, यह भी शर्त रखी गई है कि इन निर्माताओं को यह साबित करना होगा कि उनके उत्पाद वाकई “ग्रीन” हैं, यानी उनसे पर्यावरण को न्यूनतम हानि होती है।
इस फैसले के बाद पटाखा उद्योग से जुड़े कई संगठनों ने इसे आंशिक राहत बताया है। कई निर्माताओं ने कहा कि पिछले वर्षों से लगातार प्रतिबंधों के चलते उद्योग बंदी की कगार पर पहुंच गया था। कोर्ट के इस आदेश से उन्हें उम्मीद है कि वे कम से कम निर्माण शुरू कर सकेंगे और जब भविष्य में बिक्री की अनुमति मिलेगी, तब तक स्टॉक तैयार रहेगा।
हालांकि, दिल्ली‑NCR में बिक्री पर रोक के कारण व्यापारियों और थोक विक्रेताओं में नाराजगी है। उनका कहना है कि अगर निर्माण होगा और बिक्री नहीं, तो यह आर्थिक बोझ बन जाएगा और निवेश डूब सकता है।
वहीं दूसरी ओर, पर्यावरण कार्यकर्ता और स्वास्थ्य विशेषज्ञ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को संतुलित मान रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण से हर साल हजारों लोगों को स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से बुजुर्गों, बच्चों और दमा के मरीजों पर पटाखों का बुरा असर पड़ता है। ग्रीन क्रैकर्स एक व्यवहारिक समाधान हो सकते हैं, बशर्ते कि उनका वास्तव में पर्यावरण पर कम प्रभाव हो।
दिल्ली सरकार ने पूर्व में दिवाली जैसे पर्वों के दौरान पटाखों की बिक्री और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस नए आदेश के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राज्य सरकार अपनी नीति में कोई ढील देती है या नहीं। कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप, राज्य सरकारों को स्थानीय स्तर पर नियमों का पालन सुनिश्चित करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिए हैं कि बिक्री और उपयोग को लेकर भविष्य में समीक्षा की जा सकती है, बशर्ते कि ग्रीन पटाखों के प्रभाव और प्रदर्शन को लेकर वैज्ञानिक रूप से सकारात्मक डेटा सामने आए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस पर निगरानी रखें और यह सुनिश्चित करें कि निर्माण की प्रक्रिया में किसी प्रकार की अनियमितता न हो।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उस समय आया है जब दिल्ली‑NCR एक बार फिर त्योहारी सीज़न और सर्दियों के प्रदूषण संकट की ओर बढ़ रहा है। अदालत ने एक संवेदनशील और संतुलित निर्णय लेते हुए यह दिखाया है कि पर्यावरण की रक्षा और आजीविका दोनों को एक साथ संतुलित करना संभव है — यदि नियमन सख्त हो और तकनीकी समाधान पारदर्शी हों।
अब यह जिम्मेदारी संबंधित एजेंसियों, उद्योग और सरकारों की है कि वे कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन करें और ग्रीन क्रैकर्स को वास्तव में “ग्रीन” बनाए रखने में सहयोग करें। आने वाले त्योहारों में यह देखा जाएगा कि यह नीति कितनी कारगर साबित होती है और क्या इससे दिल्ली की हवा में कोई बदलाव आता है।