




लद्दाख के लेह में राज्य की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं। प्रशासन ने पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया है। हालांकि अब इंटरनेट सेवाएं बहाल कर दी गई हैं, लेकिन मुख्य मार्गों पर सन्नाटा पसरा हुआ है और आम जनजीवन ठप पड़ा है।
इस आंदोलन की शुरुआत शांतिपूर्ण तरीके से हुई थी। प्रदर्शनकारी लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे थे। लेकिन धीरे-धीरे इस प्रदर्शन ने उग्र रूप ले लिया, जिसके बाद हालात बेकाबू हो गए।
प्रदर्शनकारियों की मांग है कि लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा मिले ताकि स्थानीय लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की सुरक्षा हो सके। साथ ही छठी अनुसूची में शामिल कर क्षेत्र को स्वायत्त प्रशासन की सुविधा दी जाए।
शुरुआत में प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, लेकिन अचानक कुछ समूहों ने उग्रता अपना ली। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी इमारतों, राजनीतिक दलों के कार्यालयों और वाहनों को नुकसान पहुंचाया। हिंसा इस कदर फैल गई कि कई स्थानों पर आगजनी और पथराव की घटनाएं हुईं।
प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए कर्फ्यू लागू किया और भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। पुलिस की जवाबी कार्रवाई में चार लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हुए।
हिंसा के बाद लेह की सड़कों पर सुरक्षा बलों की भारी तैनाती कर दी गई है। मुख्य मार्गों पर बैरिकेड्स लगा दिए गए हैं। पुलिस और अर्धसैनिक बलों की गश्त लगातार जारी है। प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी है, जिसके तहत चार से अधिक लोगों के एक साथ इकट्ठा होने पर पाबंदी है।
शहर की सड़कों पर वीरानी छाई हुई है। बाज़ार बंद हैं, स्कूल-कॉलेजों की छुट्टियां कर दी गई हैं और सरकारी कार्यालयों में उपस्थिति बेहद कम रही। लोगों में दहशत का माहौल है और अधिकांश नागरिक अपने घरों में ही कैद हैं।
हिंसा के दौरान अफवाहों और भ्रामक सूचनाओं को फैलने से रोकने के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थी। अब स्थिति में थोड़ी स्थिरता आने के बाद इंटरनेट सेवा बहाल कर दी गई है, लेकिन प्रशासन इसकी कड़ी निगरानी कर रहा है।
कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अभी भी पाबंदी बरकरार है और इंटरनेट स्पीड को सीमित किया गया है। यह कदम इसलिए उठाया गया ताकि गलत सूचनाएं दोबारा माहौल को न बिगाड़ें।
लेह में हुई हिंसा को लेकर केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन दोनों गंभीर नजर आ रहे हैं। प्रशासन का कहना है कि प्रदर्शनकारियों की मांगों को सुना जाएगा लेकिन हिंसा किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सरकार के मुताबिक, स्थिति को सामान्य बनाने के लिए संवाद की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। इसके लिए केंद्र और स्थानीय नेताओं के बीच बैठक की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं ताकि विवाद का समाधान लोकतांत्रिक तरीके से हो।
प्रदर्शन के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़पों में 70 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। कई लोगों को गंभीर चोटें आई हैं और उन्हें स्थानीय अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
वहीं प्रशासन ने अब तक करीब 50 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया है, जिन पर शांति भंग करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और पुलिस पर हमला करने के आरोप हैं। गिरफ्तार लोगों से पूछताछ जारी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि आंदोलन का उद्देश्य सही था लेकिन हिंसा ने माहौल को बिगाड़ दिया। आम नागरिक चाहते हैं कि सरकार उनकी मांगों को माने, लेकिन साथ ही यह भी कि किसी तरह की उग्रता या बाहरी हस्तक्षेप न हो।
कई सामाजिक संगठनों ने भी अपील की है कि सभी पक्षों को शांति बनाए रखनी चाहिए और हिंसा की बजाय वार्ता के ज़रिए समाधान निकालना चाहिए।
लेह की स्थिति फिलहाल तनावपूर्ण बनी हुई है। इंटरनेट सेवाएं भले ही बहाल कर दी गई हों, लेकिन शहर की सड़कों पर सन्नाटा और भय का वातावरण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आंदोलन के पीछे स्थानीय जनता की वास्तविक चिंताएं और मांगें हैं, लेकिन हिंसा के चलते इन मांगों का प्रभाव कमज़ोर पड़ सकता है।
प्रशासन को चाहिए कि जल्द से जल्द संवाद की प्रक्रिया शुरू करे और लोगों की आशंकाओं को शांतिपूर्ण तरीके से दूर करे। साथ ही नागरिकों को भी ज़िम्मेदारी से काम लेते हुए अफवाहों और भ्रामक सूचनाओं से बचना होगा।
आने वाले कुछ दिन तय करेंगे कि लद्दाख का भविष्य किस दिशा में जाएगा — संवाद और समाधान की ओर या और अधिक टकराव की ओर।