




मध्य प्रदेश के इंदौर से एक चौंकाने वाला और भयावह खुलासा सामने आया है जिसने देशभर में दवा निर्माण की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इंदौर स्थित ARC फार्मास्युटिकल कंपनी पर हुई सरकारी छापेमारी में यह सामने आया कि कंपनी कफ सिरप (Cough Syrup) बनाने में गटर और फंगस युक्त दूषित पानी का इस्तेमाल कर रही थी। यह वही दवा थी जो आम जनता, बच्चों और बुजुर्गों तक को बेची जा रही थी।
राज्य औषधि प्रशासन (Drug Control Department) की टीम ने जब फैक्ट्री का निरीक्षण किया, तो वहां 216 नियम उल्लंघन पाए गए। इनमें से 23 उल्लंघन ऐसे थे जो सीधे तौर पर जानलेवा साबित हो सकते थे। रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकार ने तत्काल प्रभाव से कंपनी को दवा उत्पादन, बिक्री और वितरण बंद करने के आदेश दे दिए हैं।
जांच में खुला भयावह सच
जानकारी के अनुसार, ARC फार्मास्युटिकल कंपनी में बनाई जा रही खांसी की दवाओं में शुद्ध पानी की जगह प्रदूषित जल का इस्तेमाल किया जा रहा था। लैब में किए गए परीक्षणों से यह भी पता चला कि इस्तेमाल किया गया पानी बैक्टीरिया, फंगस और जैविक अपशिष्टों से भरा हुआ था। यही नहीं, सिरप में मिलाई जाने वाली चाशनी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शुगर सॉल्यूशन को भी किसी वैज्ञानिक मानक के अनुसार नहीं तैयार किया गया था।
दवा निर्माण इकाई में स्वच्छता की स्थिति इतनी खराब थी कि जगह-जगह गंदगी, जंग लगे टैंक, टूटे पाइप और खुले कंटेनरों में रासायनिक पदार्थ रखे मिले। कर्मचारियों के लिए भी न तो सेफ्टी गियर उपलब्ध था और न ही स्वच्छ वातावरण में उत्पादन किया जा रहा था।
216 शर्तों का उल्लंघन, 23 जानलेवा निकले
सरकारी जांच टीम ने फैक्ट्री में 216 तकनीकी और गुणवत्ता संबंधी खामियां दर्ज कीं। इनमें से 23 ऐसे गंभीर उल्लंघन थे जो प्रत्यक्ष रूप से दवा की सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। उदाहरण के तौर पर, सिरप बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली मशीनों की सफाई महीनों से नहीं हुई थी, निर्माण इकाई में तापमान और नमी नियंत्रण के मानक पूरे नहीं हो रहे थे, और दवाओं के नमूनों की गुणवत्ता जांच केवल कागजों पर की जा रही थी।
प्रशासन की सख्त कार्रवाई
राज्य सरकार ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए कंपनी के सभी लाइसेंस तत्काल रद्द कर दिए हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, “यह आम जनता के स्वास्थ्य से सीधा खिलवाड़ है। किसी भी कंपनी को इस तरह की लापरवाही की अनुमति नहीं दी जाएगी। दोषियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाएगा।”
दवा विभाग के अधिकारियों ने ARC फार्मास्युटिकल से जुड़े कच्चे माल, तैयार सिरप और रासायनिक नमूनों को सील कर लिया है। साथ ही, कंपनी से जुड़े अन्य वितरकों और थोक विक्रेताओं पर भी निगरानी रखी जा रही है।
जनता की सेहत पर बड़ा खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि फंगस युक्त या प्रदूषित पानी से बनी दवाएं शरीर में संक्रमण, एलर्जी, लीवर और किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।
एक वरिष्ठ फार्माकोलॉजिस्ट ने बताया, “दवाएं तभी सुरक्षित होती हैं जब उन्हें पूरी तरह वैज्ञानिक और स्वच्छ वातावरण में बनाया जाए। गंदे या फफूंदी युक्त पानी का इस्तेमाल सिरप में जहर घोलने जैसा है।”
पिछले मामलों से भी सबक नहीं लिया गया
गौरतलब है कि हाल के वर्षों में कई देशों में भारत से निर्यात की गई खांसी की दवाओं पर सवाल उठे थे। कुछ मामलों में अफ्रीकी देशों में बच्चों की मौत के पीछे खराब गुणवत्ता वाली भारतीय दवाएं जिम्मेदार पाई गईं। इसके बाद भी कुछ कंपनियां लापरवाही से उत्पादन जारी रखे हुए हैं।
ARC फार्मास्युटिकल का मामला बताता है कि अभी भी भारत में कई छोटे स्तर के दवा निर्माता क्वालिटी स्टैंडर्ड्स की अनदेखी कर रहे हैं, जिससे दवा उद्योग की साख और जनता की सुरक्षा दोनों पर खतरा मंडरा रहा है।
स्वास्थ्य विभाग ने बढ़ाई निगरानी
इस घटना के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने पूरे राज्य में फार्मा कंपनियों की सघन जांच शुरू करने का निर्णय लिया है। राज्य औषधि विभाग की टीम अगले दो सप्ताह में सभी सक्रिय दवा निर्माण इकाइयों का निरीक्षण करेगी। इसके साथ ही, केंद्र सरकार ने भी इस रिपोर्ट की कॉपी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) को भेजी है ताकि राष्ट्रीय स्तर पर भी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।
सवालों के घेरे में दवा उद्योग की पारदर्शिता
ARC फार्मास्युटिकल जैसी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि भारत के दवा उद्योग में गुणवत्ता नियंत्रण की सख्त निगरानी की अब तत्काल आवश्यकता है। फार्मा सेक्टर भारत की अर्थव्यवस्था का एक अहम स्तंभ है, लेकिन यदि उत्पादन प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्वच्छता सुनिश्चित नहीं की गई, तो यह देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
इंदौर की इस फैक्ट्री में मिला यह भयावह सच न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी स्वास्थ्य सुरक्षा प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करता है। सरकार की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन असली सुधार तभी होगा जब हर दवा निर्माण इकाई पर नियमित निगरानी और गुणवत्ता ऑडिट अनिवार्य किए जाएं।