




बिहार की राजनीति में नई हलचल मचाते हुए प्रशांत किशोर (पीके) की पार्टी जनसुराज ने अपनी पहली उम्मीदवार सूची जारी कर दी है। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने जिस तरीके से यह सूची जारी की है, उसने बिहार के सियासी समीकरणों में हलचल पैदा कर दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह ने 51 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की, जिनमें कई ऐसे नाम शामिल हैं जो पहले जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) से जुड़े रह चुके हैं। इस सूची ने साफ कर दिया है कि जनसुराज आने वाले विधानसभा चुनावों में सीधे तौर पर जेडीयू और आरजेडी दोनों को चुनौती देने के मूड में है।
सबसे अधिक चर्चा में हैं आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह, जिन्हें नालंदा जिले की अस्थावां विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। यह उनका पहला चुनाव होगा, और उनका नाम आते ही राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। लता सिंह के मैदान में उतरने को राजनीतिक विरासत की नई शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। आरसीपी सिंह, जो कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते थे, अब जनसुराज के प्रमुख चेहरे बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में “योग्यता, जनसेवा और स्थानीय लोकप्रियता” को प्राथमिकता दी है।
प्रशांत किशोर, जो कभी जेडीयू और कांग्रेस सहित कई पार्टियों के लिए चुनावी रणनीतिकार रहे हैं, अब खुद अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में जुटे हैं। उनका यह कदम उस दिशा में बड़ा दांव माना जा रहा है। जनसुराज की पहली सूची जारी होने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि पार्टी पारंपरिक राजनीति से अलग रास्ता अपनाने जा रही है। सूची में न केवल पुराने राजनीतिक चेहरे हैं, बल्कि समाजसेवी, शिक्षक और युवाओं को भी टिकट दिया गया है।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, जनसुराज ने अपनी रणनीति के तहत पहले चरण में उन्हीं सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जहां नीतीश कुमार की जेडीयू और आरजेडी की स्थिति कमजोर मानी जा रही है। इससे यह साफ है कि पीके की नजर उन इलाकों पर है जहां जनता पारंपरिक पार्टियों से नाराज़ है।
सूत्रों के मुताबिक, पार्टी की दूसरी सूची दिवाली के बाद जारी की जाएगी, जिसमें 40 से अधिक नाम और जोड़े जाएंगे। कुल मिलाकर जनसुराज लगभग 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की योजना बना रहा है। पीके का लक्ष्य है कि वे बिहार में “विकास आधारित राजनीति” को फिर से स्थापित करें और युवाओं को राजनीति में नई भूमिका दें।
लता सिंह का टिकट चर्चा का केंद्र बना हुआ है। आरसीपी सिंह ने ऐलान करते हुए कहा कि उनकी बेटी का चयन किसी पारिवारिक वजह से नहीं बल्कि उनकी योग्यता और क्षेत्र में उनकी सक्रियता के आधार पर किया गया है। उन्होंने कहा, “जनसुराज में किसी को भी सिर्फ रिश्तेदारी के आधार पर टिकट नहीं मिलेगा, हर उम्मीदवार को जनता के बीच काम के दम पर खड़ा किया जा रहा है।”
जनसुराज की सूची में शामिल कुछ प्रमुख नामों में वे पूर्व जेडीयू नेता भी हैं जो पिछले कुछ सालों में नीतीश कुमार की नीतियों से असंतुष्ट होकर पार्टी छोड़ चुके थे। इनमें कई पूर्व ब्लॉक प्रमुख, पंचायत प्रतिनिधि और शिक्षाविद भी हैं, जिन्होंने जनसुराज के मंच से जनता के बीच अपनी नई भूमिका तय करने का निर्णय लिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीके का यह कदम जेडीयू के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है। प्रशांत किशोर ने 2015 में महागठबंधन की जीत के बाद बिहार की राजनीति से दूरी बना ली थी, लेकिन 2022 में अपने “जनसुराज अभियान” के तहत राज्य का दौरा शुरू किया। अब लगभग तीन साल बाद उनकी पार्टी ने पहली सूची जारी कर यह संदेश दे दिया है कि वे केवल वैचारिक आंदोलन नहीं बल्कि चुनावी मैदान में भी उतरने को तैयार हैं।
बिहार की जनता में पीके की छवि एक शिक्षित और योजनाबद्ध नेता की है। उन्होंने राज्य के हर जिले में जाकर जनता से सीधे संवाद किया, और उनके मुद्दों को अपने घोषणापत्र का आधार बनाया। जनसुराज की पहली सूची में महिलाओं और युवाओं को दिए गए टिकट इस बात का संकेत हैं कि पार्टी समाज के हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देना चाहती है।
जनसुराज ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करने के बाद यह भी स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। पार्टी का कहना है कि वह बिहार में एक “नई राजनीति” की शुरुआत करना चाहती है, जहां उम्मीदवार जाति या धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि जनसेवा और कार्यक्षमता के आधार पर चुने जाएं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, जनसुराज का यह कदम आगामी चुनाव में जेडीयू के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति है। खासकर उन इलाकों में, जहां नीतीश कुमार की पकड़ कमजोर हुई है, पीके का प्रभाव बढ़ सकता है।