




चीन लंबे समय से Rare Earth Elements यानी रेयर अर्थ एलिमेंट्स के क्षेत्र में वैश्विक दबदबे का मालिक रहा है। ये मिनरल्स आधुनिक तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, ऑटोमोबाइल और रक्षा उद्योगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। चीन का लगभग 60-70 प्रतिशत वैश्विक बाजार पर नियंत्रण है, जिससे विश्व की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री पर उसका दबदबा कायम है।
हालांकि, भारत अब इस स्थिति को बदलने की योजना बना रहा है। भारतीय सरकार और औद्योगिक विशेषज्ञों के अनुसार, देश जल्द ही एक विशेष प्रोग्राम शुरू करने जा रहा है, जिसके तहत रेयर अर्थ एलिमेंट्स की खुद की खदानों और संसाधनों का दोहन करके घरेलू उत्पादन बढ़ाया जाएगा। इस कदम से न केवल चीन पर दबाव पड़ेगा, बल्कि भारत की तकनीकी और औद्योगिक आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी।
भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स की पर्याप्त मात्रा मौजूद है, लेकिन अब तक इनका पूरी तरह से दोहन नहीं हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सही रणनीति और निवेश किया जाए तो भारत वैश्विक बाजार में चीन के दबदबे को चुनौती दे सकता है। इसके लिए खनिज संसाधनों की खोज, प्रोसेसिंग प्लांट्स का निर्माण और उच्च तकनीक का उपयोग अनिवार्य होगा।
भारतीय योजना के तहत कुछ चुनिंदा खानों में आधुनिक तकनीक के माध्यम से खनन और प्रोसेसिंग की जाएगी। इसके साथ ही, अनुसंधान और विकास (R&D) पर विशेष ध्यान दिया जाएगा ताकि एलिमेंट्स का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरी निर्माण, हाइब्रिड वाहन और रक्षा उपकरणों में किया जा सके।
चीन के लिए यह निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण साबित होगा। विश्व की टेक्नोलॉजी और ग्रीन एनर्जी इंडस्ट्री में चीन का दबदबा हमेशा रेयर अर्थ एलिमेंट्स के निर्यात पर आधारित रहा है। यदि भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में सफल रहता है, तो चीन को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा में कड़ी टक्कर मिल सकती है।
भारत सरकार के अधिकारी इस योजना को देश की आर्थिक और सुरक्षा रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं। REE के उत्पादन और प्रोसेसिंग में आत्मनिर्भरता से भारत को केवल औद्योगिक लाभ ही नहीं मिलेगा, बल्कि यह रक्षा और उच्च तकनीक क्षेत्रों में रणनीतिक बढ़त भी देगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को इस योजना के तहत खनन से लेकर प्रोसेसिंग और अंतिम उत्पाद निर्माण तक हर चरण में अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करना होगा। इसके लिए विदेशी निवेश, तकनीकी सहयोग और घरेलू अनुसंधान संस्थानों को जोड़ना आवश्यक होगा।
इसके अलावा, भारत के लिए यह कदम वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसकी स्थिति को मजबूत करने में भी मदद करेगा। आज के समय में टेक्नोलॉजी और ग्रीन एनर्जी क्षेत्रों में रेयर अर्थ एलिमेंट्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। भारत यदि इस मांग को पूरा कर पाता है, तो वह वैश्विक सप्लाई चेन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाएगा।
भारत की इस योजना से चीन को निश्चित रूप से वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। चीन जो लंबे समय से रेयर अर्थ एलिमेंट्स के उत्पादन और निर्यात में नेता रहा है, उसे अब भारत की बढ़ती उत्पादन क्षमता को नजरअंदाज नहीं करना पड़ेगा।
विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि भारत की इस पहल से घरेलू उद्योगों और स्टार्टअप्स को भी फायदा होगा। REE का स्थानीय उत्पादन तकनीक और ग्रीन एनर्जी सेक्टर में नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और देश की आर्थिक वृद्धि दर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
भारत के लिए यह कदम केवल आर्थिक या तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। रक्षा, अंतरिक्ष, एयरोस्पेस और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए REE का उत्पादन और प्रोसेसिंग बेहद जरूरी है।
इस प्रोजेक्ट की सफलता से भारत वैश्विक टेक्नोलॉजी मार्केट में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। इसके साथ ही, देश चीन के दबदबे को चुनौती दे कर वैश्विक मंच पर अपनी प्रभावशीलता बढ़ा सकता है।