




त्योहारी सीजन में सोने की चमक कुछ फीकी पड़ती दिख रही है। लगातार बढ़ती कीमतों के बीच बाजार में गोल्ड की मांग में हल्की सुस्ती आई है। एक ओर निवेशक ऊंचे दामों से घबराकर खरीदारी से दूरी बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विशेषज्ञों का मानना है कि यह तेजी लंबे समय के निवेशकों के लिए सुनहरा अवसर साबित हो सकती है।
पिछले कुछ हफ्तों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें 2,400 डॉलर प्रति औंस के करीब पहुंच गई हैं, जबकि भारतीय बाजार में 10 ग्राम सोने की कीमत 71,500 रुपये के पार चली गई है। इस उछाल की वजह वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, मध्य पूर्व में तनाव और अमेरिकी डॉलर की कमजोरी बताई जा रही है।
त्योहारों का सीजन, खासकर नवरात्रि, दशहरा और दिवाली, पारंपरिक रूप से सोने की खरीदारी का समय होता है। लेकिन इस बार ऊंचे दामों ने ग्राहकों की जेब पर असर डाला है। ज्वैलर्स का कहना है कि पिछले साल की तुलना में इस बार गोल्ड की खुदरा मांग में 25–30% की कमी आई है। सोने के दामों ने ग्राहकों को या तो छोटे गहनों की ओर मोड़ा है या फिर उन्हें निवेश के दूसरे विकल्पों जैसे चांदी और म्यूचुअल फंड्स की ओर झुका दिया है।
दिल्ली के एक प्रमुख ज्वैलर राजीव अग्रवाल बताते हैं, “दिवाली पर लोग शुभ मुहूर्त में कुछ न कुछ सोना जरूर खरीदते हैं, लेकिन इस बार जो ग्राहक पहले 20 ग्राम का सेट खरीदते थे, वे अब 10 ग्राम या 8 ग्राम तक सीमित हो गए हैं।”
दूसरी तरफ, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि सोने की यह रैली शॉर्ट टर्म में कुछ ठंडी पड़ सकती है। एडेलवाइस म्यूचुअल फंड के वरिष्ठ निवेश विश्लेषक कहते हैं कि सोने के दामों में 2-3% की करेक्शन संभव है, लेकिन दीर्घकाल में सोना निवेशकों के लिए सुरक्षित विकल्प बना रहेगा।
उन्होंने कहा, “सोने की मांग कभी खत्म नहीं होती। यह एक ऐसा एसेट है जो संकट के समय सुरक्षा कवच की तरह काम करता है। अगर आप लंबी अवधि के निवेशक हैं, तो SIP यानी सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान के जरिए हर महीने थोड़ी-थोड़ी मात्रा में गोल्ड में निवेश करना बेहतर रहेगा।”
विशेषज्ञों का मानना है कि गोल्ड ETF और सोवरेन गोल्ड बॉन्ड्स (SGBs) जैसी सरकारी योजनाएं भी निवेश के लिए बेहतर विकल्प हैं। SGB में न केवल सोने की कीमतों के साथ रिटर्न मिलता है, बल्कि सालाना 2.5% ब्याज भी दिया जाता है। वहीं गोल्ड ETF में निवेशक बिना भौतिक सोना खरीदे बाजार की कीमतों से फायदा उठा सकते हैं।
भारत दुनिया के सबसे बड़े सोने के उपभोक्ता देशों में से एक है। हर साल औसतन 700 से 800 टन सोना भारत में खरीदा जाता है। ग्रामीण इलाकों में इसे अब भी सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, बढ़ती कीमतों के कारण ग्रामीण इलाकों में भी मांग में कमी आई है। भारत गोल्ड ज्वैलर्स एसोसिएशन के मुताबिक, इस साल की दूसरी तिमाही में ग्रामीण गोल्ड डिमांड में करीब 18% की गिरावट दर्ज की गई है।
हालांकि, आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि यह गिरावट अस्थायी है। जैसे ही बाजार में कीमतों में कुछ नरमी आएगी, मांग एक बार फिर उछाल ले सकती है। इसके अलावा, शादी का सीजन शुरू होने वाला है, जो सोने की बिक्री को नई गति देगा।
ग्लोबल मार्केट की बात करें तो, अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद से डॉलर कमजोर हुआ है, जिससे गोल्ड को और मजबूती मिली है। वहीं चीन और रूस जैसे देशों द्वारा सोने का लगातार भंडारण बढ़ाया जाना भी कीमतों को ऊंचा बनाए हुए है।
फाइनेंशियल एनालिस्ट चेतन पारिख के अनुसार, “गोल्ड की मौजूदा तेजी थोड़ी देर में थम सकती है, लेकिन दीर्घकालिक निवेशकों के लिए यह अब भी अच्छा सौदा है। जिन लोगों ने पिछले साल SIP शुरू की थी, वे आज औसतन 18–20% रिटर्न देख रहे हैं।”
निवेश सलाहकार यह भी सुझाव दे रहे हैं कि निवेशकों को सोने की खरीदारी को लेकर लालच या डर में निर्णय नहीं लेना चाहिए। सही रणनीति यह होगी कि अपनी कुल निवेश राशि का 10–15% हिस्सा सोने में लगाएं, ताकि बाजार की अस्थिरता के समय पोर्टफोलियो को स्थिरता मिल सके।