




प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरुआत में Goods and Services Tax (GST) के प्रस्ताव को नकारा था, लेकिन बाद में इसके ‘एक राष्ट्र, एक कर’ के सिद्धांत से प्रभावित होकर उन्होंने इसे समर्थन दिया। यह खुलासा प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने हाल ही में किया।
नृपेंद्र मिश्रा ने बताया कि जब वित्त मंत्री अरुण जेटली और उनके अधिकारी GST पर प्रस्तुति देने आए थे, तो प्रधानमंत्री मोदी ने इसे सीधे तौर पर नकार दिया। उन्होंने कहा था, “नहीं…नहीं…इसमें कई मुद्दे हैं और मुझे उत्पादक राज्यों और उपभोक्ता राज्यों से परामर्श करना होगा, इसलिए मैं इसे मंजूरी नहीं दे सकता।” यह सुनकर टीम थोड़ी निराश हुई, लेकिन जेटली ने मिश्रा को अपने कमरे में बुलाया और रणनीति पर चर्चा की।
मिश्रा ने बताया कि दो और प्रस्तुतियों के बाद, प्रधानमंत्री मोदी को ‘एक राष्ट्र, एक कर’ और ‘आर्थिक स्वतंत्रता’ जैसे शब्दों से प्रभावित किया गया। इन शब्दों ने उन्हें GST के समर्थन में विचार करने के लिए प्रेरित किया।
यह घटना दर्शाती है कि प्रधानमंत्री मोदी ने निर्णय लेने से पहले विभिन्न पहलुओं पर विचार किया और अंततः देश की आर्थिक स्वतंत्रता और एकीकृत कर प्रणाली के दृष्टिकोण से GST को समर्थन दिया।
नृपेंद्र मिश्रा ने इस निर्णय प्रक्रिया को प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता और निर्णय लेने की क्षमता का उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि मोदी का दृष्टिकोण हमेशा उच्च लक्ष्यों की ओर होता है, और कभी-कभी उनके दृष्टिकोण में अंतर होता है, लेकिन अंततः वे देशहित में निर्णय लेते हैं।
इस खुलासे से यह स्पष्ट होता है कि GST का मार्ग आसान नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने इसे लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए, जिससे आज भारत की कर प्रणाली में सुधार हुआ है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में GST का कार्यान्वयन एक महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार के रूप में देखा जाता है, जिसने देश की कर प्रणाली को सरल और पारदर्शी बनाया है।
नृपेंद्र मिश्रा के इस खुलासे से यह भी पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा देश की भलाई को प्राथमिकता दी है और उनके निर्णय देश की आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं।
इस प्रकार, GST के कार्यान्वयन की कहानी प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता का प्रतीक है, जिसने भारत को एकीकृत कर प्रणाली की दिशा में अग्रसर किया।