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    बिहार चुनाव 2025: सुशांत सिंह राजपूत की बहन दिव्या गौतम मैदान में, दीघा सीट से लड़ सकती हैं मुकाबला

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    बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की राजनीति में एक अप्रत्याशित और चर्चा में रहने वाली खबर सामने आई है — दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की बहन दिव्या गौतम ने चुनावी मैदान में कदम रखने का फैसला किया है। बिहार में महागठबंधन के भीतर अभी सीटों का बंटवारा औपचारिक रूप से तय नहीं हुआ है, लेकिन भागीदार दलों ने अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणाएँ शुरू कर दी हैं। इस बीच, CPI(ML) लिबरेशन ने दीघा विधानसभा सीट से दिव्या गौतम को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है।

    दिव्या गौतम की घोषणा ऐसे समय हुई है, जबकि महागठबंधन (IN­DIA ब्लॉक) में अभी भी सीटों के विभाजन को लेकर असमंजस बना हुआ है। इस चुनिंदा पॉलिटिकल रणनीति में, उनसे उम्मीद की जा रही है कि उनका पदार्पण विशेष प्रभाव डालेगा, खासकर उन मतदाताओं और युवा वर्ग के बीच जो सुशांत सिंह राजपूत से भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं। उनकी पार्टी ने कहा है कि दिव्या 15 अक्टूबर को नामांकन दाखिल करेंगी, और उन्होंने स्थानीय जनसमर्थन जुटाने में तेजी दिखाई है।

    दिव्या गौतम मूल रूप से पटना की निवासी हैं। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और पहले एक कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत रही थीं। बाद में उन्होंने बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) द्वारा सप्लाई निरीक्षक की सरकारी नौकरी हासिल की, लेकिन सामाजिक कार्यों और जनसुविधा फैलाने की चाह ने उन्हें इसे त्यागने का निर्णय दिया।
    उनकी शिक्षा, सामाजिक गतिविधियाँ और स्थानीय स्तर पर सक्रियता ने उन्हें स्थानीय जनता से जोड़ने का लाभ दिया है, और उन्हें उम्मीद है कि यह कनेक्शन दीघा क्षेत्र में उन्हें समर्थन दिलाएगा।

    दीघा विधानसभा सीट पटना जिले की एक महत्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठित सीट मानी जाती है। यहाँ अभी तक भाजपा के संजीव चौरसिया का दबदबा रहा है। लेकिन दिव्या की आमद से इस क्षेत्र की राजनीति में नया विवर्तन आया है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह कदम भाजपा को चिंतित कर सकता है, क्योंकि दिव्या का नाम और परिवारिक पृष्ठभूमि स्थानीय भावनाओं को प्रभावित कर सकती है।

    CPI(ML) लिबरेशन ने इस कदम को पार्टी की ओर से ताज़ी और युवा छवि को बढ़ावा देने की कोशिश माना है। पार्टी के लिए यह अवसर है कि वे पुराने नेता-प्रत्याशियों के साथ साथ नए चेहरों को मैदान में उतारें। दिव्या की उम्मीदवारी इसे एक नयी दिशा देती है — वह एक प्रतीक बन सकती है, न कि केवल एक सामान्य प्रत्याशी।

    हालाँकि, चुनौतियाँ कम नहीं हैं। पहली चुनौती यह है कि महागठबंधन के अन्य दलों — RJD, कांग्रेस आदि — उनकी उम्मीदवारी से संतुष्ट होंगे या नहीं। यदि गठबंधन के भीतर सीटों का बंटवारा विवादित बना रहता है, तो दिव्या की स्थिति प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, दीघा क्षेत्र में पार्टी संगठन, चुनाव प्रबंधन, संसाधन जुटाना और मीडिया एक्सपोज़र उनकी सफलता के लिए निर्णायक होंगे।

    दूसरी चुनौती यह है कि जनता के बीच केवल नाम या प्रसिद्धि ही मायने नहीं रखती; उन्हें यह दिखाना होगा कि वे क्षेत्र की समस्याओं को समझती हैं और उसे हल करने की योजना रखती हैं। लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि वह सिर्फ कलाकार या राजनीति में नया चेहरा नहीं हैं, बल्कि एक सशक्त प्रतिनिधि बन सकती हैं।

    तीसरी चुनौती विपक्षी दलों की रणनीति है — भाजपा, जदयू या अन्य दल संभवतः इस सीट पर अधिक मेहनत करेंगे, संसाधन लगाएंगे और प्रचार में सक्रिय होंगे। दिव्या को न सिर्फ स्थानीय आधार को मजबूत करना होगा, बल्कि पार्टी व गठबंधन सहयोगियों का समर्थन भी सुनिश्चित करना होगा।

    राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि दिव्या की उम्मीदवारी चुनाव को और रोचक बनाएगी। यदि वह अच्छे प्रदर्शन के साथ मुकाबला करती हैं, तो यह भविष्य में युवा और जनता केंद्रित राजनीति के दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकती है। पार्टी के लिए भी यह एक संकेत है कि वह नए और सशक्त चेहरे लोगों के बीच उतारने की सोच रही है।

    इस बीच, महागठबंधन और अन्य दलों में सीट बंटवारे की चर्चाएँ जारी हैं। कांग्रेस, RJD और अन्य घटक दलों ने अभी तक किसी स्थानिक विभाजन की औपचारिक घोषणा नहीं की है। सूत्रों के अनुसार, सीट-सूची को अंतिम रूप देने में अभी और चर्चा होनी बाकी है। इसके बावजूद, उम्मीदवारों की घोषणाएँ तेज हो गई हैं, जिससे जनता और मीडिया दोनों में उत्सुकता बढ़ी है।

    अगले कुछ दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि दिव्या गौतम को किस तरह का जनसाया प्राप्त होगा, और क्या उन्हें प्रतियोगियों से मुकाबला करने में सफलता मिलेगी। दीघा सीट पर उनकी घोषणा ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को एक नया राजनीतिक मोड़ दिया है — इस चुनावी लड़ाई में न सिर्फ पार्टियों की राजनीति, बल्कि नाम, पहचान और भावनात्मक जुड़ाव महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

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