




छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि माओवादी विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों द्वारा की गई कार्रवाइयों की SIT जांच केवल असाधारण परिस्थितियों में ही होनी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि SIT जांच सामान्य परिस्थितियों में कर दी गई तो यह भारत के संघीय ढांचे के तहत राज्यों के पुलिसिंग अधिकारों को कमजोर करने जैसा होगा।
इस फैसले की बेंच में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और न्यायाधीश बिभु दत्ता गुरु शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि माओवादी उग्रवाद के खिलाफ राज्य और केंद्र की सुरक्षा एजेंसियां संवैधानिक और कानूनी अधिकारों के दायरे में काम कर रही हैं, इसलिए उन पर SIT जांच तब ही लागू होनी चाहिए जब कोई असाधारण या गंभीर परिस्थितियां उत्पन्न हों।
भारत की संघीय व्यवस्था के तहत राज्यों को अपनी पुलिस व्यवस्था चलाने का पूर्ण अधिकार है। छत्तीसगढ़ जैसे माओवादी प्रभावित राज्यों में राज्य पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बल संवेदनशील सुरक्षा मामलों को प्राथमिकता से संभालते हैं। ऐसे मामलों में अनावश्यक बाहरी जांच से राज्यों के अधिकारों पर खतरा मंडराने लगता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि माओवादी विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों का मनोबल और कार्यक्षमता बनाए रखना बेहद जरूरी है। SIT की जांच के नाम पर बार-बार हस्तक्षेप से न केवल ऑपरेशनों की गोपनीयता प्रभावित होती है, बल्कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता भी कम होती है।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि सुरक्षा बलों द्वारा संचालित माओवादी विरोधी अभियानों की SIT जांच तभी होनी चाहिए, जब किसी गंभीर आरोप या संदिग्ध गतिविधि का प्रमाण मिले, अन्यथा बिना वजह हस्तक्षेप करने से संघीय ढांचे के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।
न्यायालय ने यह भी माना कि यदि SIT जांच को सामान्य तौर पर लागू किया गया तो इससे केंद्र और राज्य के बीच सहमति और भरोसा प्रभावित होगा। इससे सुरक्षा तंत्र की प्रभावशीलता कम हो सकती है और माओवादी समस्या के समाधान में बाधा आ सकती है।
यह निर्णय केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखने का भी संदेश है। भारत में आंतरिक सुरक्षा मामलों में दोनों के बीच स्पष्ट जिम्मेदारी और सहयोग होना जरूरी है। छत्तीसगढ़ जैसे माओवादी प्रभावित राज्यों में स्थानीय परिस्थितियों को बेहतर समझना और उसी के अनुसार कार्रवाई करना राज्य सरकार का दायित्व है।
इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि बिना उचित कारण के SIT जांच के आदेश से राज्यों के पुलिसिंग अधिकारों को कमजोर करने का जोखिम रहता है, जो संघीय व्यवस्था के खिलाफ होगा।
सुरक्षा और संविधान विशेषज्ञ इस फैसले को संघीय ढांचे की रक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण मान रहे हैं। उनका कहना है कि आंतरिक सुरक्षा मामलों में केंद्र और राज्य के बीच बेहतर समन्वय और भरोसा ही स्थायी समाधान की कुंजी है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि यह राज्य की संप्रभुता और सुरक्षा बलों की कार्यक्षमता को सम्मान देने वाला निर्णय है। सरकार ने आश्वासन दिया कि माओवादी उन्मूलन के लिए आवश्यक कार्रवाई निरंतर जारी रहेगी।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह आदेश माओवादी विरोधी अभियानों की जांच के संदर्भ में एक संतुलित और संवेदनशील दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह संघीय ढांचे में राज्यों के पुलिसिंग अधिकारों की अहमियत को रेखांकित करता है और केंद्रीय जांच एजेंसियों के हस्तक्षेप के लिए स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करता है।